स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के हटाए जाने को सरकार का कोविड मैनेजमैंट में गलती मानो जैसा है. जिस तरह से स्वास्थ्य मंत्री अनापशनाप भाषण और क्लेश करते फिरे हैं और वक्त पर नदारद हो गए हो थे उस की असली जिम्मेदारी चाहे प्रधानमंत्री की खुद की हो, स्वास्थ्य मंत्री की भी थी. उन्हें उसी समय मान लेना चाहिए था कि मेरा आयुर्वेद वगैरा का क्लेम गलत है.
हर्षवर्धन एलोपैथिक डाक्टर हुए भी कभी लोगों में भरोसा नहीं दिला पाए कि कोविड की अपादा में सरकार आप के साथ है. जनता को खुद रेमेडेसिविर या डौक्सी की खोज, अस्पताल के आईसीयू बैड़ों, औक्सीजन सिलेंडरों ही नहीं शमशानों तक का इंतजाम नहीं कर पाए.
ट्विटर और सोशल मीडिया जून से ही हर्षवर्धन को हटाने की मांग कर रहा था पर ट्विटर के वीर यह सवाल उठा रहे थे कि एक अधपड़ा दूसरे अधपढ़े को कैसे हटा सकता है.
पहले लौकडाउन के दिनों में बजाए मंत्रालय का कााम देखने के हर्षवर्धन ने खुशीखुशी घर में भिंडी या मटर छीलते हुए फोटो खिचवाए थे. पक्की बात है कि नैशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथौरिटी ने जिस के चैयरमैंन नरेंद्र मोदी हैं, पहले दौर में हर्षवर्धन को इस लायक भी नहीं समझा कि उन के अस्पतालों को बनवाते हुए खड़े हुए दिखाया जाए. ..... के डाक्टर डा. हर्षवर्धन ने नाक भी बंद रखी कान भी और आंख पर तो पक्की भक्ति का चश्मा चढ़ा ही रखा था. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था तो पूजापाठ के भरोसे थी कि बच गए तो ठीक वरना शमशान का ही सहारा है.
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