कोरोना की वैक्सीन अब तैयार सी है और कई कंपनियां जल्द ही इन्हें बंटवाना शुरू कर देंगी. सरकारों ने खरीदने के और्डर भी दे दिए हैं और हवाईअड्डे, हवाईर्जहाज, ट्रक, कैमिस्ट इन्हें रखने के इंतजाम में जुट गए हैं.
करोड़ों में बांटी जाने वाली वैक्सीन को बहुत ही ठंडे वातावरण में रखना जरूरी होगा और शायद लैब से आने के थोड़े दिनों में इस्तेमाल भी कर लेना होगा. इसलिए लाखों की गिनती में हर रोज बनने वाली दवाओं की शीशियों को लाना, ले जाना और ढंग से आम लोगों को देना टेढ़ी खीर होगा.
कोरोना ने वैसे मंदिर, मसजिद, चर्च, तीर्थ बंद कर भला काम किया है पर फिर भी धर्म का डर तो हावी रहेगा ही. भारत के अनपढ़ों को तो छोडि़ए अमेरिका के गोरे व पढ़ेलिखे भी कह रहे हैं कि वे कोई वैक्सीनभैक्सीन नहीं लेंगे, क्योंकि उन्हें भगवान पर भरोसा है. वे पूजा करेंगे.
भारत में या कहीं भी ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो सोचते हैं कि जीनामरना ऊपर वाले के हाथों में है. वे आज भी चिपक कर खड़े होते हैं, भीड़ बनाते हैं, मास्क नहीं पहनते. वे खुद भी बीमार हो सकते हैं और ज्यादा परेशानी की बात यह है कि उन्हें भी बीमार कर सकते हैं, जो पूरी सावधानी बरत रहे हैं.
छठ पर शहरों में घाट बंद हुए थे तो बहुत से लोग पड़ोस के राज्यों में पहुंच गए. वे कहां से कोरोना को कहां ले जाएंगे पता नहीं. जेब में चार पैसे हैं तो कोरोना से अकड़ लिए.
यह वैक्सीन के साथ भी होगा. बहुत से लोग वैक्सीन जिद कर के नहीं लेंगे और वे समाज में बम की तरह घूमेंगे जो कहीं भी फट कर उन की जान तो ले ही सकता है, दूसरों की भी ले सकता है.