भारत जैसे देश अपनी सरकारों की गलत नीतियों के कारण वर्ल्ड लेबर सप्लायर बनने जा रहे हैं. आज भारत के ही सब से अधपढ़े या अच्छे पढ़े युवा विदेशों में जा रहे हैं और हर देश इन के लिए दरवाजे खोल रहा है क्योंकि उन की अपनी जनता बढऩी बंद हो गई है, वहां बच्चे कम हो रहे हैं, लेबर फोर्स सिकुड़ कर रही है. भारत में इस बात को कई बार प्राइड से कहा जाता है, पर है शर्म की बात. भारत के युवाओं को विदेशों में लगभग दोगुने पैसे मिलते हैं. किसीकिसी देश में 3-4 गुना भी हो जाते हैं. ठीक है कि वहां खाना, ट्रांसपोर्ट महंगा है पर लाइफस्टाइल अच्छी है, महंगा किराया है पर कई ऐसी फैसिलिटीज हैं जो उन के सपनों में भी नहीं आतीं.
कनाडा ने अब स्टूडैंट्स को एक छूट दी है जिसे वरदान माना जा रहा है. अब तक स्टूडैंट वीसा पर आने वाले सप्ताह में 20 घंटे काम कर के पैसे का जुगाड़ कर सकते थे. अब 31 दिसंबर, 2023 तक छूट दी गई है कि वे जितना भी चाहें काम कर लें. इन-डायरैकक्टली समझें कि यूथ अपनी पढ़ाई का खर्च पार्टटाइम काम कर के निकाल सकते हैं. इन स्टूडैंट्स में ज्यादातर भारत के ही हैं.
यह वह टेलैंट है जिस का एक्सपोर्ट हम लगातार कर रहे हैं क्योंकि हमारे यहां का सोशल व एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर ही ऐसा है कि हर काम हर जना नहीं कर सकता. वहां स्टूडैंट्स अपना बैकग्राउंड भूल कर सैनिटरिंग, ???… लीडर…???,
डिलीवरी पर्सन का काम ऐक्सैप्ट कर रहे हैं. यहां भारत में उन के मांबाप नहीं जानते पर यदि वे वहां कहीं भूलेभटके चले जाएं तो मिलने वाले डौलरों की वजह से मुंह बंद कर लेते हैं.
ह्यूमन कैपिटल आज भी किसी देश की सब से बड़ी कैपिटल है पर हमारी सोसायटी पौपुलेशन को बोझ मानती है. कनाडा, अमेरिका, यूरोप, जापान और यहां तक कि चीन भी अब समझने लगे हैं कि लाइफस्टाइल बनाए रखने के लिए, जीडीपी ग्रोथ के लिए वर्कर चाहिए ही. भारत उन वर्कर्स का एक अच्छा सोर्स है क्योंकि अफ्रीका के बाद भारत ही ऐसा देश है जहां अनएंपलौयमैंट सब से ज्यादा है. वैसे भी, यूरोपियन व अमेरिकी रंगभेद की वजह से ब्लैक की जगह ब्राउन्स को प्रैफर किया जाता है. हमारा लौस, उन का गेन है. पर क्या करें? इस देश का यूथ इस देश में नारे तो लगाता है पर काम की अपौर्चुनिटी उस के पास नहीं है.