जबलपुर के कटरा इलाके में रहने वाले महेश रैकवार एक वकील के यहां मुंशीगिरी करते हैं. उन की पत्नी उमा टिफिन सैंटर चलाती हैं. दोनों की आमदनी से घर खर्च तो पूरा हो जाता था, लेकिन बचत नहीं हो पाती थी. कोविड-19 के दौरान उमा का टिफिन का काम बंद हो गया, जिस से घर में पैसों की किल्लत होने लगी. इस किल्लत को दूर करने के लिए उमा ने मानसरोवर कालोनी में रहने वाली सपना प्रजापति से ₹50 हजार और काकुल प्रजापति से ₹30 हजार ब्याज पर लिए.
ब्याज 10 फीसदी महीने की दर से तय हुई. उमा सपना को ₹5 हजार महीना और काकुल को ₹3 हजार महीना चुकाने को तैयार हो गई इस उम्मीद के साथ कि जल्द ही टिफिन सैंटर का काम फिर चल निकलेगा जिस की आमदनी से वह इन दोनों की पाईपाई चुका देगी.
वक्त गुजरता गया और उमा ने सपना को डेढ़ लाख और काकुल को ₹60 हजार चुकाए यानी मूल रकम से दोगुना और 3 गुना, फिर भी मूल रकम ज्यों की त्यों थी और ब्याज का पहिया घूमता जा रहा था. जब उमा और ब्याज नहीं दे पाई तो काकुल ने उस के घर वसूली के लिए फूटा ताल निवासी गोवर्धन कश्यप उर्फ जीतेंद्र को भेजना शुरू कर दिया जो पैसा वसूलने में माहिर था. उस का पेशा ही ऐसे इज्जतदार लोगों से पैसा वसूलना था.
जितेंद्र उसे आए दिन डरानेधमकाने लगा कि पैसा दो नहीं तो अंजाम भुगतने को तैयार हो जाओ. मैं तुम्हारे पूरे परिवार की हत्या कर दूंगा. डरीसहमी उमा कुछ सोचसमझ पाती उस के पहले ही एक दिन सपना भी उस के यहां आ धमकी और धमकी दी कि 11 जनवरी तक पूरी रकम नहीं चुकाई तो तेरे घर पर हम कब्जा कर लेंगे. जीतेंद्र ने भी इसी धमकी के साथ पैसा चुकाने की तारीख 15 जनबरी मुकर्र कर रखी थी.
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