शैड्यूल कास्ट ऐंड शैड्यूल ट्राइब्स (प्रिवैंशन औफ ऐट्रोसिटीज) ऐक्ट में शिकायत पर ऊंची जाति के व्यक्ति की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने जो अंकुश लगाया था, उस पर देश भर के दलित बुरी तरह भड़क गए हैं. 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान न केवल 10 लोग मारे गए, जगहजगह आगजनी हुई और कितने ही शहर ठप्प पड़े रहे. कुछ शहरों में तो यह फसाद कई दिनों तक चला.
नरेंद्र मोदी की सरकार, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी जीत मान कर चल रही थी, सकते में आ गई कि सदियों के सताए दलितों में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि उन्होंने पूरे देश में हल्ला बोल दिया और उन के जानेपहचाने 2-3 नेता नजर तक नहीं आए.
सरकार भागती हुई सुप्रीम कोर्ट पहुंची कि माईबाप बचा लो पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप की सुन लेंगे पर गिरफ्तारी बेबात की हो यह कोर्ट को मंजूर नहीं. अत: कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
यह मामला असल में राजनीतिक नहीं धार्मिक है. छुआछूत वोट की राजनीति की देन नहीं, हिंदू धर्म की देन है. हिंदू धर्म को बिना परखे मानने वाले लोग छुआछूत को किसी भी तरह से छोड़ने को तैयार नहीं हैं और उन के धर्मगुरु भी उसे धर्मजनित पापपुण्य व प्रायश्चित्त की संज्ञा देते हैं. अगर कुछ उदार इसे छोड़ना भी चाहें तो उन के घरों की औरतें ही इस बात पर दबाव डालती हैं कि धर्मजनित भेदभाव तो मानना ही होगा, कानून या संविधान चाहे कुछ भी कहे.
भारतीय जनता पार्टी ने जो जीतें हासिल की हैं वे इस कट्टर धर्म की वापसी के लिए की हैं और कट्टरपंथी इस मामले में जो भी ढीलढाल सह रहे हैं वह जबरन है, वोट बैंक की देन है. असल में जातिगत भेदभाव राजनीति, सत्ता की शक्ति, व्यापार, सामाजिक गठन से ज्यादा औरतों