भारत की सांकेतिक भाषा यानी इंडियन साइन लैंग्वेज (आईएसएल) को देश की 23वीं आधिकारिक भाषा बनायी जाए, इन दिनों यह मांग पूरे देश में बधिर समुदाय कर रहा है. वैसे यह मांग नई नहीं है, पिछले कई सालों से यह मांग हो रही है. लेकिन अचानक इस मांग ने अगर पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है तो इसके दो बड़े कारण है. पहला कोरोना के चलते हुए लाॅकडाउन में बधिरों को आयी जबरदस्त समस्या और दूसरा उनके इस अभियान को मशहूर बाॅलीवुड अभिनेता रणबीर सिंह से मिला समर्थन. गौरतलब है कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 1 करोड़ 30 लाख लोग बहरे हैं, जो कुछ भी नहीं सुन सकते. हालांकि ‘नेशनल एसोसिएशन आॅफ डेफ’ का आंकलन है कि देश में 1 करोड़ 80 लाख यानी 1 फीसदी से कहीं ज्यादा भारतीय सुनने की क्षमता से वंचित हैं. भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में, जो कि भाषाओं से संबंधित है, कुल 22 भाषाएं दर्ज हैं, जिनमें अधिकृत रूप से पढ़ाई, लिखाई होती है.
भारत के बधिर समुदाय का मानना है कि अगर उनकी सांकेतिक भाषा को भी संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है तो पूरे देश में बधिरों को इसी भाषा से शिक्षा देना संभव हो सकेगा, जिसके बाद बधिर समुदाय जिंदगी की तमाम जद्दोजहद में असहाय नहीं दिखेगा, जैसे कि लाॅकडाउन के दिनों में कदम कदम पर देखा गया. लाॅकडाउन के दिनों में अपनी बात कम्युनिकेट न कर पाने के कारण देश के बधिर समुदायों को जबरदस्त परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसी कारण आईएसएल को देश की 23वीं आधिकारिक भाषा बनाये जाने की मांग तेज हो गई है. मांग की जा रही है कि आईएसएल को भारत की अधिकृत भाषा माने जाने के साथ ही इसके प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ बधिर प्रशिक्षकों को दी जाए.
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