अपना कोर्ई अजीज बीमार हो और सरकारी आल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मैडिसिन जैसे सरकारी अस्पताल में जा पहुंचा हो और न डाक्टर बात करने को तैयार हो, न लैब अस्सिटैंट तो कितनी घुटन और परेशानी होती है यह युक्तभोगी ही जानते है. देशभर में सरकारी अस्पतालों का जाल बिछा है पर जहां मंदिर में जाने पर तुरंत प्रवेश मिल जाता है (या कुछ घंटों में सही) अस्पताल अभी भी इतने कम हैं कि उन में बैड मिलना और इलाज का समय निकालना एवेस्ट पर चढऩे समान होता है.
दिल्ली एम्स ने सर्कुलर जारी किया है कि वहां कौरीडोरों में मरीजो, उन के रिश्तेदारों के अलावा जो भी उसे यूनिफौर्म और आईडी का डिस्पले करते रहना होगा क्योंकि कौरीडोर प्राइवेट लैबों, क्लीनिकों के एजेंटों से भरे हैं. ये लोग पहले मरीज में रिजल्ट सप्ताहों में आएगा, सर्जरी महीनों में होगी, डाक्टर के लिए नंबर दिनों में आएगा तो क्यों न प्राइवेट जगह चला जाए.
यह बहुत बड़ी देश की दुर्गति है कि हर नागरिक को समय पर इलाज न मिल पाए. गरीब को अनाज मिले, सही इलाज मिले और जेंब में पैसे हो या न हों, इलाज हो ही, यह तय करना सरकार का पहला काम न कि फला जगह मंदिर के लिए कौरीडोर बनाना और फलां जगह दूसरे धर्म स्वाच को ले कर डिस्प्यूट खड़ा करना. सरकार को 4 लेन, 6 लेन सडक़ों से ज्यादा अस्पतालों को ठीक करना होगा.
आज जो भी मेडिकल इलाज वैज्ञानिकों की शोध से मिल रहा है, वह कुछ को 5 स्टार के पैसे देने पर ही मिले, देश के लिए सब से ज्यादा दर्दनाक स्थिति है.