दिल्ली के रहने वाले प्रेम कुमार ने उत्तर प्रदेश में नैमिषारण्य का बहुत नाम सुना था. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रचारप्रसार में भी नैमिषारण्य तीर्थ का बहुत जिक्र था. दिसंबर माह में प्रेम कुमार दिल्ली से 5 दिन की छुट्टी ले कर उत्तर प्रदेश घूमने गए तो अपने सफर की शुरुआत उन्होंने नैमिषारण्य से करना तय किया. कोहरे के कारण दिल्ली से लखनऊ पहुंचने में काफी समय लग गया.
लखनऊ में रात रुकने के बाद अगले दिन सुबह उन्होंने बस द्वारा नैमिषारण्य का सफर शुरू किया. लखनऊ के कैसरबाग बस स्टेशन से सुबह 7 बजे की बस मिल गई. 3 घंटे बाद बस ने नैमिषारण्य पहुंचा दिया. बस से उतरते ही दानदक्षिणा और भीख मांगने वालों ने उन्हें घेर लिया. प्रेम कुमार की पत्नी ने कहा कि दर्शन करने से पहले स्नान हो जाए. ऐसे में उन लोगों को धर्मशाला में एक कमरा लेना पड़ा. नैमिषारण्य में मंदिर के आसपास कोई अच्छा होटल या धर्मशाला उन लोगों को नहीं मिली. मजबूरी में एक साधारण धर्मशाला में कमरा लेना पड़ा.
कमरे में इंडियन स्टाइल का बाथरूम था. बड़ी मुश्किल से प्रेम कुमार और उन की पत्नी स्नान कर पाए. वहां से वे मंदिर पहुंचे तो प्रसाद खरीदने के लिए दुकानों में लोग उन को अपनी ओर खींचने लगे.
प्रेम कुमार की समझ में नहीं आ रहा था कि कहां और किस दुकान से प्रसाद खरीदें. लोगों से बचतेबचाते वे एक साफसुथरी दिखने वाली दुकान पर गए और प्रसाद के बारे में पूछा तो छत्र वाला प्रसाद कम से कम 51 रुपए का था. जब तक प्रेम कुमार 51 रुपए का प्रसाद देने को कहते तब तक दुकानदार ने 51-51 रुपए का प्रसाद प्रेम कुमार और उन की पत्नी को पकड़ा दिया.
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