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दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर होने के नाते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस विषय में दिलचस्पी स्वाभाविक बात है लेकिन इस का प्रदर्शन बीते 2 सालों से जिस तरह से वे कर रहे हैं वह प्रदेश को सिर्फ बरबाद कर रहा है.

साल 2005 से ले कर 2014 तक शिवराज सिंह की लोकप्रियता किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी, क्योंकि इस वक्त तक वे धार्मिक पाखंडों को व्यक्तिगत स्तर तक सीमित रखते थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो धर्म का दर्शन उन के सिर इस तरह चढ़ कर बोलने लगा कि तब से ले कर अब तक का अधिकांश वक्त उन्होंने धार्मिक यात्राओं व समारोहों में जाया किया.

भाजपाई और हिंदूवादियों का धर्मप्रेम आएदिन तरहतरह से उजागर होता रहता है. इस के बिना उन्हें सत्ता और जीवन व्यर्थ लगने लगते हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने धर्म को सीधे पाखंडों और कर्मकांडों के जरिए कम थोपा इस के बजाए यह कहना सटीक साबित होगा कि उन्होंने दर्शनशास्त्र और पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दों की ओट ले कर धर्म को अभिजात्य तरीके से थोपने की कोशिश की और ऐसी उम्मीद है कि पूरे चुनावी साल वे यही करते रहेेंगे.

इस के पीछे उन का मकसद सिर्फ यह है कि जनता बहुत बड़े पैमाने पर सूबे की बदहाली के बाबत सवालजवाब न करने लगे कि बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है, राज्य बिकने की हद तक कर्ज में क्यों डूबा है, प्रदेशभर में अपराधों का ग्राफ तेजी से क्यों बढ़ा है और किसान क्यों आत्महत्याएं कर व आंदोलनों के जरिए अपना दुखड़ा रो रहे हैं.

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