नजरिया बदलने भर से बहुत कुछ बदल जाता है. उदास सी दिखने वाली जिंदगी में भी फूलों की बगिया महक उठती है. इस के लिए संयम, विवेक और उचित संतुलन की दरकार होती है. जो ऐसा नहीं कर पाते वे उदासी के सागर में डूबतेउतराते रहते हैं. जब आप जीत के इरादे से आगे बढ़ते हैं, तो विपरीत परिस्थितियों को भी अनुकूल बना लेते हैं, लेकिन जो वक्त से पहले हार जाते हैं वे न सिर्फ डिप्रैशन का शिकार होते हैं, बल्कि अपने परिवार को भी न भूलने वाला दुख दे जाते हैं. उस परिवार को जिस की खुशियों के लिए जीते रहे होते हैं. समाज में भी गलत संदेश जाता है. लोग बुजदिल, कायर जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे शब्द या बातें किसी के जिंदा रहते या बाद में पहचान बनें तो यह उन परिवारों के लिए और भी पीड़ादायक होता है, जिन्हें पछताने के लिए छोड़ दिया जाता है.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की 46 वर्षीय नीता गुलाटी पेशे से सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं. वे इतनी सुंदर थीं कि सभी उन की तारीफ करते थे. उन के पति भी सरकारी कर्मचारी थे. उन का एक बेटा और एक बेटी उच्च शिक्षा हासिल कर रहे थे. परिवार में खुशियों का बसेरा था. बाहरी तौर पर देखने में सब ठीक था. पतिपत्नी के बीच न मनमुटाव था न ही परिवार में किसी चीज की कमी थी. इस सब से अलग नीता अंदरूनी तौर पर किसी अलग दुनिया में जी रही थीं. वे डिप्रैशन का शिकार थीं, जिस की भनक उन के पति को नहीं थी.
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