भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को जब उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया तो उन्होंने सरकारी आवास में प्रवेश से पहले वहां का शुद्घीकरण कराया. इस के लिए बाकायदा गोरखपुर के मंदिर से पुजारी बुलाए गए. मुख्यमंत्री आवास के प्रवेशद्वार से ले कर सड़क तक को गंगाजल से शुद्घ किया गया.
मुख्यमंत्री के दौरे के समय भी इस बात का ध्यान रखा जाने लगा कि उन को कहीं परेशानी न हो. गौतमबुद्घ की निर्वाणनगरी कुशीनगर में आदित्यनाथ के कार्यक्रम में अधिकारियों ने वहां के दलित परिवारों को शैंपू, मंजन और साबुन दिया. उन से कहा गया कि सभी लोग नहाधो कर, साफसुथरा हो कर आएं. इन सभी को मुख्यमंत्री के टीकाकरण कार्यक्रम में बुलाया गया था. यह बात सामने आते ही पूरे देश में भाजपा सरकार की मुखालाफत होने लगी. गुजरात के दलित संगठनों ने तो साबुन से तैयार महात्मा बुद्घ की 125 किलो की मूर्ति आदित्यनाथ को, लखनऊ आ कर, सौंपने का कार्यक्रम बनाया लेकिन उन को झांसी स्टेशन पर रोक कर वापस भेज दिया गया. लखनऊ में दलित अत्याचार और निदान विषय पर संगोष्ठी करने का प्रयास किया गया तो उस कार्यक्रम को भी होने नहीं दिया गया.
इन घटनाओं से साफ है कि समाज में दलितों के हालात बहुत खराब हैं. आज भी सामान्य वर्ग उन से मिलना पसंद नहीं करता. यह घटना छुआछूत और जातिप्र्रथा की पोल को खोलने के लिए पर्याप्त है. दलित चिंतक एस आर दारापुरी कहते हैं, ‘‘कुशीनगर में जिस तरह से सरकारी संरक्षण में छुआछूत की भावना को बढ़ावा मिला, उस से पूरे दलित समाज में क्षोभ है. दलित अत्याचार और निदान विषय पर आयोजित संगोष्ठी में दलितों के वर्तमान हालात पर चर्चा होनी थी पर सरकारी लोगों ने इसे होने नहीं दिया. दलित संगठनों की सोच है कि सरकार दलितों को गंदा मानती है. इसलिए मुख्यमंत्री से मिलने से पहले दलितों से नहा कर आने के लिए कहा गया. यह बाबा भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती चल रही है. इसलिए गौतमबुद्घ की 125 किलो की साबुन की मूर्ति बनाने का काम शुरू हुआ. सरकार को पता था कि विचार गोष्ठी में जो तथ्य सामने आएंगे उन का जवाब देना सरकार के लिए मुश्किल होगा. ऐसे में विचारगोष्ठी को होने से ही रोक दिया गया.’’