27 अक्तूबर, 2018 को राजधानी में आयोजित इंडिया मोबाइल कांग्रेस 5जी नैटवर्क का डंका पीट रहे एक डाक्टर बता रहे थे कि किस तरह एक रिमोट लोकेशन पर बैठ कर हम किसी मरीज का लाइव अल्ट्रासाउंड कर सकेंगे. साथ में दूसरे टैक्निकल ऐक्सपर्ट 5जी नैटवर्क के जरिए वर्चुअली एक आदमी को एक जगह से दूसरी जगह होलोग्राम फौर्म में भेजने की तकनीकी क्रांति का हवाला दे रहे थे. हालांकि भारत में इस तकनीक के लिए 2020 तक का इंतजार करना पड़ेगा, तब तक 2 या 3जी से ही काम चलाना पड़ेगा.

वर्चुअल दीवार के उस पार

फिलहाल देश में इंटरनैट सस्ता है और बड़ी तादाद में लोग इस का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फ्री इंटरनैट ने देशदुनिया में एक डिजिटल डिवाइड को जन्म दे दिया है यानी एक तरफ वे लोग हैं जो इंटरनैट और गैजेट के  इस्तेमाल से दूर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे हैं जो दिनरात स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटौप, टैब, आईपैड पर नजरें गड़ाए आभासी दुनिया में खोए रहते हैं.

इस सिनैरियो ने घर के अंदर और बाहर एक डिजिटल डिवाइडर पैदा कर दिया है और इस का खमियाजा युवा और बच्चे भुगत रहे हैं. अमेरिका की न्यू प्यू रिसर्च एनालिसिस रिपोर्ट 2018 बताती है कि इंटरनैट के इस डिजिटल डिवाइड के चलते

5 में से 1 युवा होमवर्क गैप का शिकार हो रहा है यानी लाखों स्टूडैंट्स अपना क्लास असाइनमैंट सिर्फ इसलिए पूरा नहीं कर पाते, क्योंकि उन के हाथ में स्मार्टफोन और इंटरनैट की बेलगाम डोर थमा दी गई है.

होमवर्क गैप के शिकार युवा

होमवर्क गैप की चोट 13 से 17 साल के किशोरों को लग रही है. ये वही किशोर हैं जो इंटरनैट की असुरक्षित गलियों में आवारा घूमते रहते हैं और अपना क्लास होमवर्क पूरा नहीं करते. फिर यह होमवर्क गैप उन के एकेडैमिक कैरियर को घुन की तरह धीरेधीरे खाने लगता है.

इसी साल हुए इस शोध में करीब 17 प्रतिशत टीनएजर्स मानते हैं कि उन्होंने डिजिटल एक्सेस की वजह से कई बार अपना क्लास असाइनमैंट पूरा नहीं किया, जबकि 13 प्रतिशत टीन्स ऐसे भी थे जो यह कहते हैं कि इंटरनैट की वजह से वे अकसर अपना होमवर्क कंप्लीट करना भूल जाते हैं. यह हाल सिर्फ अमेरिकी युवाओं का ही नहीं है बल्कि, समूची दुनिया में इंटरनैट की चपेट में आए युवा अपनीअपनी असल जिंदगी से कनैक्शन तोड़ कर वर्चुअल दुनिया में जी रहे हैं.

भारत में तो हाल और भी बदतर हैं. नितिन अरोड़ा कहते हैं, ‘‘एक साल पहले मैं ने बेटे को यह सोच कर स्मार्टफोन दिला दिया कि वह इस पर अपना होमवर्क और क्लास असाइनमैंट से जुड़ी जानकारियां हासिल करेगा, क्योंकि वह अकसर मुझ से क्लास असाइनमैंट पूरा करने के लिए मोबाइल मांगता था, लिहाजा, उसे नया स्मार्टफोन और इंटरनैट कनैक्शन दिलवा दिया. लेकिन उस के बाद से वह हम लोगों से कटता चला गया. न समय पर डिनर और लंच करता और न ही घर आए किसी मेहमान से मिलता. जब देखो, तब उस के हाथ में मोबाइल चिपका रहता. यहां तक कि बाथरूम में भी वह उसे अपने साथ ले जाता. मना करने पर चिड़चिड़ा हो जाता. एक दिन उस के स्कूल से शिकायत आई कि आप का बेटा कोई भी असाइनमैंट पूरा नहीं करता.’’

पीछा छुड़ा रहे हैं पेरैंट्स

नितिन अकेले नहीं हैं, उन के जैसे कई पेरैंट्स हैं जिन के बच्चे अनजाने में वर्जुअल दुनिया में जीने के आदी हो जाते हैं. पढ़ाई से उन का मन उचट जाता है और इंस्टाग्राम, ट्विटर और पोर्नबाजी में उन के दिन गुजरते हैं.

सालदरसाल ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आजकल बच्चों के साथ उन के असाइनमैंट कंप्लीट करने का पेरैंट्स के पास समय नहीं होता. जब बच्चे उन से बारबार स्कूल और होमवर्क पूरा कराने का दबाव डालते हैं तो वे बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें यह कह कर इंटरनैट की दुनिया में ढकेल देते हैं कि यहां से देख कर अपना होमवर्क कंप्लीट कर लो, लेकिन होता इस के उलट है. बच्चा होमवर्क तो दूर, वहां कुछ और ही सर्च करने लगता है.  इसी तरह बच्चे जब अपने पेरैंट्स को बैठा कर शतरंज, कैरम, जैसे इंडोर गेम्स या पार्क में क्रिकेट खेलने के लिए कहते हैं तो पेरैंट्स ‘मोबाइल में गेम्स खेल लो,’ कह कर पीछा छुड़ा लेते हैं. जब तक इन के साइडइफैक्ट्स समझ आते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है.

किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें

यह बात सही है कि आजकल बच्चों के स्कूल होमवर्क से ले कर प्रोजैक्ट तक अब औनलाइन ही कंपलीट व जमा किए जाते हैं लेकिन यह सब पेरैंट्स और टीचर्स की निगरानी में हो, तो ठीक है. बच्चों को किताबें, पत्रपत्रिकाएं पढ़ने के लिए कहिए, जिन में असल जिंदगी की व्यावहारिक जानकारियों से वे रूबरू होते हैं. इंटरनैट का अधकचरा ज्ञान उन्हें बीच राह में भटकने के लिए छोड़ देगा.

दुनियाभर के देशों में इंटरनैट की लत से लोगों को निकालने के लिए स्पैशलिस्ट सैंटर्स होते हैं, भारत में ऐसे सैंटर्स खुलने अब शुरू हुए हैं. क्या आप भी अपने बच्चों को स्कूल या कालेज की जगह ऐसे सैंटर्स में भेजना चाहते हैं?

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