अमेरिका के एक शहर सीएटल में एक भारतीय मूल की नगर पार्षद की मेहनत से जाति के नाम पर भेदभाव को धर्म, रंग, रेस, सैक्स, शिक्षा, पैसे के साथ जोड़ दिया गया है. हालांकि अमेरिका में भारतीय मूल के लोग ही कम हैं और सिएटल में तो और भी कम पर इस से भी भारतीय मूल के ऊंची जातियों के भारतीय बहुत खफा हैं.
भारतीय मूल के ऊंची जातियों वाले बड़ी कंपनियों में अक्सर दिखते हैं. तमिल ब्राह्मïणों की एक बड़ी लौवी वहां टैक कंपनियों में है जहां रटतुपीरों की बहुत जरूरत होती है और ब्राह्मïणों के मंत्रों की याद रखने की सदियों की आदत है. इन्होंने इस सिएटल के कानून को भारत और भारतीयता के खिलाफ होने की जंग छेड़ी हुई है.
भारत सरकार दलितों के प्रति भेदभाव को हमेशा से छिपाती रही है पर असल में हमारी समस्या वही नहीं है, हमारी एक बड़ी समस्या सवर्ण औरतों के प्रति देश और विदेश में हो रहे भेदभाव है. सती प्रथा क्या थी. सती महिला क्या है. दहेज प्रथा क्या है. भोगलिक होने का दोष क्या है. 16 शुक्रवारों के व्रत अच्छे पति को पाने के लिए क्या हैं. करवाचौथ क्या है. विधवाओं की मांगलिक कामों में अलग रखना क्या है. यह सवर्ण औरतों के साथ होने वाला भेदभाव है जो आज भी औरतें सह रही हैं. सासससुर की सेवा, पति का आदरसम्मान करना, कामकाजी हैं तो सारा वेतन पति के पास में रख देना, केवल पत्नी ही रसोई में जाए, यह सोचना, ये सब स्वर्ण औरतों के प्रति भेदभाव हैं.
जब औरतों के नाम पर जाति व्यवस्था आज खुलेआम पनप रही है तो देशभर में फैली हुई जाति व्यवस्था का एक्सपोर्ट नहीं हुआ होगा. यह कैसा तर्क है. हर भारतीय जब एयरक्राफ्ट में बैठना ही उस के सिर पर एक अदृश्य गठरी होती है जिस में अंधविश्वास, रीतिरिवाज, पूजापाठ, दानपुण्य के साथ जातिगत अहम अहंकार या जातिगत दयनीयता साथ होती है. अमेरिका में भारतीय मजदूर कम गए हैं पर जो गए हैं वे ऊंची जातियों के शिक्षिकों के साथ उठतेबैठते नहीं हैं. उन के घर मोहल्ले अलगथलक हैं.