Mom Goals :  17 साल की मुसकान 12वीं में पढ़ती थी. वह अपने पेरैंट्स के साथ रहती थी. मुसकान पढ़ने में काफी तेज थी और छोटी उम्र से ही वह फैशनेबल भी थी. उसे स्टाइलिश कपड़े पहनने का काफी शौक था. ड्रैसेज सिलैक्ट करने में उस की मां मदद करती थी. दोनों मांबेटी दोस्त की तरह रहती थीं. लेकिन मुसकान हर छोटीछोटी कामों के लिए अपनी मां पर डिपैंड रहती थी. अगर उस की मां जरा भी किसी काम में देरी करती तो वह नाराज हो जाती थी, यहां तक कि उस की मां अपनी बेटी को मनाने के लिए सौरी तक बोलती थी और प्यारा सा गिफ्ट भी देती थी.

सिर्फ मुसकान ही नहीं, ऐसे कई बेटेबेटियां हैं, जो अपने हर काम के लिए मां पर डिपैंट रहते हैं और अगर जरा भी देरी हो जाए, तो मुंह फूला कर बैठ जाते हैं और बाद में मां ही उन्हें सौरी बोलती है.

मां का जवाब नहीं

हर किसी को लगता है कि मां का फर्ज है अपने बच्चों के लिए करना. अगर मां की तबियत खराब हो जाए या कोई काम करने में उसे टाइम लग जाए, तो दुनिया की तो छोड़िए, अपने बच्चे ही 10 शिकायतें करते हैं कि मां, तुम्हें ढंग से काम करना नहीं आता, अपनी तबियत खराब कर ली हो, हमारा खयाल कौन रखेगा वगैरहवगैरह…

मां भी इंसान होती है, वह भी तकलीफ से गुजरती है, उस की भी सेहत खराब हो सकती है. वह बिना किसी तनख्वाह के हर काम पर हाजिर रहती है.

मां है तो सबकुछ सहना पड़ेगा

कुछ लोग तो ऐसे होते हैं, जो अपनी मां को Taken For Granted ले लेते हैं. उन की सोच यही होती है कि मां है, तो उसे सबकुछ सहना ही पड़ेगा. मां की गलती है, तो वह माफी मांगेगी. अपनी गलतियां भी अपनी मां पर ही थोप देते हैं.

दुनिया में ऐसे भी महानुभाव हैं, जो किसी से भी लड़ाई कर के आते हैं और उस के बदले उन की मां लोगों से माफी मांगने जाती है.

बच्चों की गलती के लिए मां क्यों मांगे माफी

मां है तो अपनी गलती हो या बच्चों की, माफी तो मांग ही सकती है. वह मां है, बिना उफ किए अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती है.

क्या आप एक बेटे/बेटी होने का फर्ज निभा पाते हैं

जितनी आसानी से एक मां को अपना फर्ज याद रहता है, काश वैसे ही आप एक बेटी या एक बेटा होने का फर्ज भी निभा पाते. मां की भी अपनी जिंदगी है. जब बच्चा जन्म लेता है तो उस समय से मां उसे बड़ा करने तक अपनी आधी उम्र खपत कर देती है.

जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो वे मां को ही जीवन का पाठ पढ़ाने लगते हैं. उम्मीद करते हैं कि उन की मां ही सारी गलतियों के लिए मांफी मांगे. इस तरह के लोगों से यह कहना है कि मां से कभी भी सौरी न बुलवाएं.

मां की भी खुद की जिंदगी है

अगर एक दिन आप की मम्मी ने खुद के लिए समय निकाला और कहीं बाहर चली गई शौपिंग करने या घूमने, तो उन्हें गिल्ट फिल न करवाएं और उन्हें इस तरह की बातें भी न कहें कि आज आप ने मेरा यह काम नहीं किया, मुझे बहुत दिक्कत हुई, ताकि आप की मां मजबूर हो कर आप से माफी मांगनी पड़े और वह आगे से आप के बारे में सोच कर कहीं बाहर भी न निकले.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की करीब आधी महिलाएं कभीकभी दिन में एक बार भी बाहर नहीं निकल पाती हैं. सिर्फ 47% महिलाओं ने माना कि वे दिन में एक बार घऱ से बाहर निकल पाती हैं.

मां ही होती है, जो बीमार होने के बावजूद भी अपने बच्चों के सामने स्वस्थ होने का दिखावा करती है और उस समय भी उन के पसंद का ही खाना तैयार करती है. लेकिन जब इस तरह की स्थिति आए, तो आप अपनी मां का खयाल रखें और आप खुद उन के लिए खाना बनाएं और उन से यह कहें कि आप का बेटा/बेटी बड़े और समझदार हो गए हैं, हम सभी काम कर लेंगे, आप आराम करें.

ये जो शब्द होते हैं न, किसी भी मां के लिए सुनना बहुत ही सुखदायक साबित हो सकता है.

मां है कोई नौकरानी नहीं

यह जरूरी नहीं है कि मां हर समय आप के इर्दगिर्द घूमती रहें. हालांकि वह तो अपने बेटेबेटियों को पूरी दुनिया मान लेती है. मगर आप का फर्ज है कि आप अपनी मां को उन की जिंदगी जीने का समय दें, उन्हें यह एहसास कराएं कि मां की भी अपनी जिंदगी होती है. जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो वे अपना काम खुद कर सकते हैं, मां को हर छोटीछोटी कामों में फंसा कर रखना उन की जिंदगी कंट्रोल करने जैसा है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...