दिल्ली विश्वविद्यालय के अच्छे पर सस्ते कालेजों में एडमीशन पाना अब और टेढ़ा हो गया है क्योंकि केंद्र सरकार ने 12वीं की परीक्षा लेने वाले बोर्डों को नकार कर एक और परीक्षा कराई. कौमन यूनिवर्सिटी एंट्रैस टैस्ट और इस के आधार पर दिल्ली विश्वविद्यालय और बहुत से दूसरे विश्वविद्यालयों के कालेजों में एडमीशन मिला. इस का कोई खास फायदा हुआ होगा यह कहीं से नजर नहीं आ रहा.

दिल्ली विश्वविद्यालय में 12वीं परीक्षा में बैठे सीबीएसई की परीक्षा के अंकों के आधार पर पिछले साल 2021, 59,199 युवाओं को एडमिशन मिला था तो इस बार 51,797 को. पिछले साल 2021 में बिहार पहले 5 बोटों में शामिल नहीं था पर इस बार 1450 स्टूडेंट के रहे जिन्होंने 12वीं बिहार बोर्ड से की और फिर क्यूइटी का एक्जाम दिया. केरल और हरियाणा के स्टूडेंट्स इस बार पहले 5 में से गायब हो गए.

एक और बदलाव हुआ कि अब आट्र्स, खासतौर पर पौलिटिकल साइंस पर ज्यादा जोर जा रहा है बजाए फिजिक्स, कैमिस्ट्री, बायोलौजी जैसी प्योर साइंसेस की ओर यह थोड़ा खतरनाक है कि देश का युवा अब तार्किक न बन कर मार्को में बहने वाला बनता जा रहा है.

क्यूयूइटी परीक्षा को लाया इसलिए गया था कि यह समझा जाता था कि बिहार जैसे बोर्डों में बेहद धांधली होती है और जम कर नकल से नंबर आते हैं. पर क्यूयूइटी की परीक्षा अपनेआप में कोई मैजिक खजाना नहीं है जो टेलेंट व भाषा के ज्ञान को जांच सके. औवजैक्टिव टाइप सवाल एकदम तुक्कों पर ज्यादा निर्भर करते हैं.

क्यूयूइटी की परीक्षा का सब से बड़ा लाभ कोचिंग इंडस्ट्री को हुआ जिन्हे पहले केवल साइंस स्टूडेंट्स को मिला करते थे तो नीट की परीक्षा मेडिकल कालेजों के लिए देते थे और जेइई की परीक्षा इंजीनियरिंग कालेजों के लिए. अब आर्ट्स कालेजों के लाखों बच्चे कोचिंग इंडस्ट्री के नए कस्टमर बन गए हैं.

देश में शिक्षा लगातार मंहगी होती जा रही है. न्यू एजूकेशन पौलिसी के नाम पर जो डौक्यूमैंट सरकार ने जारी किया है उस में सिवाए नारों और वादों के कुछ नहीं है ओर बारबार पुरातन संस्कृति, इतिहास, परंपराओं का नाम ले कर पूरी युवा कौम को पाखंड के गड्ढ़े में धकेलने की साजिश की गई है. शिक्षा को एक पूरे देश में एक डंडे से हांकने की खातिर इस पर केंद्र सरकार ने कब्जा कर लिया है. देश में विविधता गायब होने लगी है. लाभ बड़े शहरों को होने लगा है, ऊंची जातियों की लेयर को होने लगा है.

क्यूयूइटी ने इसे सस्ता बनाने के लिए कुछ नहीं किया. उल्टे ऊंची, अच्छी संस्थाओं में केवल वे आए जिन के मांबाप 12वीं व क्यूयूइटी की कोचिंग पर मोटा पैसा खर्च कर सकें. यह इंतजाम किया गया है. अगर देशभर में इस पर चुप्पी है तो इसलिए कि कोचिंग इंडस्ट्री के पैर गहरे तक जम गए हैं और सरकारें खुद कोचिंग आस्सिटैंस चुनावी वायदों में जोडऩे लगी हैं.

12वीं के बोर्ड ही उच्च शिक्षा संस्थानों के एडमीशन के लिए अकेले मापदंड होने चाहिए. राज्य सरकारों को कहा जा सकता है कि वे बोर्ड परीक्षा ऐसी बनाएं कि बिना कोचिंग के काम चल सके. आज के युवा को मौर्टक्ट की औवजैक्टिव टैस्ट नहीं दिया जाए  बल्कि उन की समझ, भाषा पर पकड़, तर्क की शक्ति को परखा जाए. आज जो हो रहा है वह शिक्षा के नाम पर रेवड़ी बांटना है जो फिर अपनों को दी जा रही है.

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