ऐक्स्पर्ट्स मानते हैं कि मात्र 5 वर्ष की आयु तक बच्चे के लगभग 75% मस्तिष्क का विकास हो जाता है. ऐसे में सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बचपन जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण होता है. बच्चा सब से पहले घर के सदस्यों के बीच रह कर वहीं से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करता है. भाषा, संस्कार व कुछ मूलभूत जानकारियां उसे घर से ही मिलती हैं. तभी तो अमेरिका में बच्चों को अंगरेजी नहीं सिखानी पड़ती और भारतीय बच्चों को हिंदी खुदबखुद आ जाती है. फिर धीरेधीरे बच्चा बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है. इस के अलावा स्कूल की भी बच्चे के जीवन में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. यह जरूरी है कि बच्चे के पूर्ण विकास के लिए उन की नींव ठोस हो.
सोचसमझ कर बोलें
अकसर पेरैंट्स सोचते हैं कि वे जो बातें करते हैं बच्चे की समझ में नहीं आती. जबकि इस से उलट बच्चा अपने आसपास के लोगों की सभी बातें बड़ों से ज्यादा औब्जर्व करता है. इसलिए बच्चे के सामने शिष्ट व्यवहार व सोचसमझ कर बात करनी चाहिए. बच्चा वही सीखता है, जो वह देखता व सुनता है.
गुणों को पहचानिए
हर बच्चे में कोई न कोई गुण अवश्य होता है. अगर उसे सही समय पर पहचान लिया जाए, तो बच्चा जीवन में बहुत आगे जाता है. उदाहरण के लिए प्रसिद्ध चैस खिलाड़ी तान्या सचदेव मात्र 7 साल की आयु में चैस के बारे में पिता से प्रश्न करने लगी और तभी उन के पिता ने पहचान लिया कि तान्या में यह प्रतिभा छिपी है. फिर उस की प्रतिभा को उभारने के प्रयत्न किए गए और आज वे किसी पहचान की मुहताज नहीं. बच्चे की हर क्रिया को ध्यान से देखें. उसे क्या करना अच्छा लगता है, क्या नहीं, पहचानें. इस का उस के भविष्य पर निश्चय ही प्रभाव पड़ेगा.