दुनियाभर में नए बच्चों के पैदा होने की दर तेजी से घट रही है. 50 साल पहले जो डर पौलिसी मेर्क्स को सता रहा था कि 100-200 साल बाद यह पृथ्वी कैसे बढ़ती पौपुलेशन का बो?ा संभालेगी, आज डर लग रहा है कि वीरान होते गांवशहरों का दुनिया के अमीर देश क्या करेंगे? आज अफ्रीका को छोड़ दें तो सब जगह औरतें इतने बच्चे पैदा नहीं कर रहीं जिस से कि पौपुलेशन स्थिर रह सके.

कोरिया और जापान जैसे देशों में 2त्न का जरूरी टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) 0.7 व 0.6 पर आ गया है. भारत के अधिकांश राज्यों में यह दर 1.7 के आसपास है. बिहार और उत्तर प्रदेश अभी 2.4 के आसपास हैं पर तेजी से भारत भी पटरी पर आ रहा है जबकि दुनिया में कहीं भी अब पौपुलेशन कंट्रोल स्टेट पौलिसी नहीं है.

20 साल से कम उम्र की लड़कियों में बच्चे पैदा करने की दर हर जगह बुरी तरह कम हुई है. औरतें अपने सुखों के लिए या बच्चों को पालने के बोझ व खर्च के कारण 1 या 2 बच्चों से बहुत खुश हैं. भारत में भी औसत इसीलिए 1.7 की है क्योंकि बहुत औरतें 1 भी बच्चा पैदा नहीं कर रहीं.

कुछ देशों ने बच्चों को पैदा होते ही मोटी रकम देनी शुरू की है जो माओत्सतुंग के चीन के 2 से ज्यादा बच्चा करने पर जुरमाने का उलटा है. फिर भी औरतें हैं कि मान नहीं रहीं. कैरियर वाली औरतें भी अब पैसे की वजह से बच्चे पैदा नहीं कर रहीं. उन्हें लगता है कि सरकार अगर कुछ सहायता कर भी देगी तो भी जो फाइनैंशियल व फिजिकल बर्डन उन पर बढ़ेगा वह कहीं ज्यादा होगा. 50 साल में चीजों को खुदबखुद ठीक करना ह्यूमन इनोवेशन की एक और निशानी है जो अपनी जरूरतों और अपनी पहुंच के बीच अपनेआप तालमेल बैठा लेता है.

कम बच्चों का मतलब है पर्यावरण पर घटता बो?ा एक और मुसीबत का कम होना. कम बच्चों से परेशान सरकारें बेकार की लड़ाइयों में नहीं उल?ोंगी. रूस और यूक्रेन दोनों को लड़ाई में सैनिकों की कमी हो रही है. लोग देश छोड़ कर भाग रहे हैं ताकि उन्हें अपनी सरकार की बेमतलब की लड़ाई में बंदूकें न उठानी पड़ें.

कम बच्चों का नुकसान तो दादाओं और नानाओं को होगा जिन्हें संभालने वाले नहीं रहेंगे.

उन्हें देर तक काम करना होगा. अब 50-55 में रिटायर होने का सपना लोग छोड़ दें. पहले तो उन्हें अपने बेटेबेटियों के बच्चे पालने में साथ देना होगा और जब ग्रांड चिल्ड्रन बड़े हो जाएंगे, उन्हें काम करते रहना होगा ताकि दूसरों पर मुहताज न हों. लाइफस्टाइल भी ऐसा होता जा रहा है कि लोग पड़ोसी को भी नहीं जानते तो दोस्त कहां बनेंगे.

सरकारें चाहे जितना पैसा दे दें यह पक्का है कि नए बच्चे थोक में तो नहीं मिलेंगे. जल्द ही भारत, बंगलादेश, पाकिस्तान, दक्षिणी अमेरिका और फिलीपींस से अमीर देशों में काम करने के लिए छटपटाने वालों की भी कमी हो जाएगी क्योंकि जहां बच्चे 1-2 होंगे वे मांबाप को नहीं छोड़ेंगे. अब क्लाईमेट को छोड़ो पौपुलेशन की चिंता सताएगी.

इस का नुकसान धर्म के दुकानदारों को होगा क्योंकि हर बच्चे से धर्म पैसा कमाना शुरू कर देता है. हर धर्म में बच्चों को ले कर हर दूसरेतीसरे साल कोई आयोजन होता है जिस में धर्म का बिल्ला लगाए कोई वसूलदार आ जाता है.

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