आज के दौर में यह धारणा बढ़ रही है कि पत्नी वर्किंग होनी चाहिए तभी गृहस्थी ठीक से चल पाती है. महंगाई के साथसाथ इस की एक वजह यह भी है कि हाउसवाइफ के काम को नौकरी करने वालों के बराबर नहीं माना जाता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए बड़ी टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हाउसवाइफ का काम नौकरी कर सैलरी लाने वाले साथी से कम नहीं होता है. कोर्ट ने हाउसवाइफ के योगदान को ‘अमूल्य’ बताया है.

रुपएपैसों से नहीं तोल सकते काम

जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि परिवार की देखभाल करने वाली महिला का विशेष महत्त्व है. परिवार में उस के योगदान का रुपएपैसों से आकलन नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने यह टिप्पणी मोटर दुर्घटना मामले में क्लेम को ले कर सुनवाई करते हुए की.

यह है मामला

दरअसल, 2006 में एक सड़क हादसे में उत्तराखंड की एक महिला की मौत हो गई थी. वह जिस गाड़ी में सफर कर रही थी, उस का बीमा नहीं था. परिजनों ने बीमे का दावा किया तो ट्रिब्यूनल ने महिला के पति और नाबालिग बेटे को ढाई लाख रुपए की क्षतिपूर्ति देने का फैसला किया. परिवार के अनुसार महिला को मिलने वाली बीमा राशि को ट्रिब्यूनल ने कम आंका था.

परिवार ने अधिक मुआवजे के लिए

ट्रिब्यूनल के इस फैसले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल का फैलसा सही है. महिला गृहिणी थी इसलिए मुआवजा जीवन प्रत्याशा और न्यूनतम अनुमानित आय के आधार पर तय किया गया. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में संबंधित महिला की आय किसी दिहाड़ी मजदूर से भी कम मानी थी जिस के बाद परिवार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले कर पहुंचा.

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