लॉक डाउन की वजह से लोगों को समस्याएं तो बहुत आई, लेकिन पर्यावरण को साफ़ होने में इससे काफी हद तक मदद मिली, इस काम के लिए सरकारों ने करोड़ों रुपये बजट में हर साल गवाएं, पर वे इस मुहिम में सफल नहीं हो सकें. लॉक डाउन ने इसे सफल कर दिखाया है. सड़कों पर वाहनों और फैक्ट्रियों के न चलने से धूएँ कम हुएं, निर्माण काम कम होने से धूल का कम होना और विषैले पदार्थो के जलाशयों में न फेकें जाने की वजह से वातावरण ने राहत की सांस ली है. जीव जंतु जो सालों से अपनी आज़ादी को भूल चुके थे वे इस माहौल में खुश होकर अपनी आज़ादी का भरपूर फायदा उठा रहे है. जानकारों की माने तो सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि के स्तर में भी काफी गिरावट आई है. ये सही है कि पिछले 4 दशक से व्यक्ति जीवन की आपाधापी में पर्यावरण का ख्याल रखना भूल चुका था, जिसे कोरोना वायरस ने याद दिलाया. पूरे विश्व में वैज्ञानिक भी इसी विषय पर लगातार काम कर रहे है, क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण से केवल मानव ही नहीं, बल्कि पूरे सृष्टि को खतरा है.

डिस्कवरी चैनल पर द वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे पर ‘द स्टोरी ऑफ़ प्लास्टिक में प्लास्टिक्स की बढते प्रयोग की वजह से केवल धरती ही नहीं, बल्कि जन्तु जानवर भी खतरे में है. इस बारें में एनवायरनमेंटलिस्ट भारती चतुर्वेदी से बात हुई, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-स्टोरी ऑफ़ प्लास्टिक क्या बताने की कोशिश कर रही है?

प्लास्टिक की पहले और बाद की कहानी दोनों ही भयानक है. जिस आयल से प्रोसेस के बाद प्लास्टिक निकलता है, उसको धरती में गलाना बहुत मुश्किल होता है इसलिए वह धरती के लिए हानिकारक होती है. अम्फान साइक्लोन भी इसी का एक रूप है, जिससे इतनी तबाही हुई है. ध्यान न रखने पर आगे ऐसी कई तबाही होने का डर है, इसलिए हमारी पृथ्वी को बचाना बहुत जरुरी है.

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