शादियों पर आजकल जम कर खर्च होने लगा है. खर्च तो पहले भी हुआ करता था पर तब जेवरों, कपड़ों और संपत्ति पर होता था, अब सजावट पर और खाने की वैरायटी और परोसने के ढंग पर होने लगा है. लोगों का बजट अब लाखों रुपए से बढ़ कर क्व10-20 करोड़ हो गया है और बाकायदा मैरिज कंसलटैंटों की भीड़ उमड़ आई है, जो लाइटिंग, भोजों, फूल, पलपल के इंतजाम से ले कर दूल्हादुलहन के ही नहीं पूरे परिवार के कपड़ों के स्टाइल व रंगों का हिसाब भी रखने लगे हैं.
जिन के पास पैसा है उन्हें खर्च करने का हक है, पैसा काला है या सफेद, इस से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि देश में ऐसे लोगों की गिनती अब काफी होनी लगी है जिन के पास क्व100-200 करोड़ पूरे सफेद हैं और जो शादियों में कम से कम 10-20 करोड़ आराम से खर्च कर सकते हैं.
शादियों की सजावट के बारे में एक ही आपत्ति है कि इस तड़कभड़क की शादी और दूल्हादुलहन के जीवन पर क्या असर पड़ता है? उन्हें अपने अच्छे कपड़े मिल जाएं, अच्छा घर मिल जाए, शादी के बाद घूमने की जगह मिल जाए यह मुख्य होना चाहिए न कि दूल्हे और दुलहन के घर वालों, रिश्तेदारों, मित्रों पर फालतू का खर्च, जो आएंगे और बनावटी हंसी के साथ लाइन में लग कर हाथ मिलाएंगे, फोटो ख्ंिचवाएंगे और चलते बनेंगे.
शादी तो युवकयुवती की होती है. उस में बेगानों का क्या काम? नाचनागाना तो सारे साल हो सकता है, सारी जिंदगी हो सकता है. विवाह पर लंबाचौड़ा खर्च शादी को पक्का नहीं कर सकता. यह मातापिताओं को रौब मारने का काम कर सकता है पर जितना बड़ा आयोजन होगा उतनी ज्यादा समस्याएं होंगी. उन का काम बेटेबेटी की शादी के लिए तैयार करने की जगह, लोगों को इनवाइट करने, डैकोरेशन व कैटरिंग का हिसाब करने, हौल बुक करने और हजार दूसरी बेकार की बातों में लग जाएगा.
शादी का मतलब है युवकयुवती के संबंध को सामाजिक मान्यता मिलना. वैसे तो धर्म ने टांग अड़ा कर फालतू में इस सामान्य सी प्रक्रिया को लंबाचौड़ा कर दिया है ताकि उस की पत्ती बन सके और वह जीवनभर पतिपत्नी से वसूलता रहे वरना शादी बच्चे पैदा करने, एकदूसरे के साथ रहने और एकदूसरे की सुरक्षा का नाम है जो नैसर्गिक होना चाहिए न कि मैरिज इवेंट कंसल्टैंट के हाथों पैसे व समय की बरबादी का बहाना.
बात ईर्ष्या की उतनी नहीं है. जिस के पास पैसा है वह खर्च करेगा. पर बात यह है कि क्या शादी पर खर्च हो? शादी का महत्त्व क्या पंडाल की डैकोरेशन से फीका हो जाने दिया जाए? ब्यूटीफुल दिखने के लिए क्या हफ्तों ब्यूटीपार्लरों के चक्कर काटे जाएं? सही पोशाकों के लिए क्या बाजारों और टेलरों के यहां बारबार जाया जाए?
शादी से पहले होने वाले पतिपत्नी एकदूसरे को भूल जाते हैं और उन का पूरा ध्यान शादी के प्रबंध में लग जाता है. एक भी चीज मन के हिसाब से न हो तो एक कड़वाहट मन के किसी कोने में
बैठ जाती है जिस का एकदूसरे के व्यवहार से कोई मतलब नहीं होता. शादी को प्रेम का महल बना रहने दीजिए, महल से पंडाल में शादी कर के दूल्हादुलहन को छोटा न करिए.