बेटे पैदा करने का दबाव औरतों पर कितना ज्यादा होता है इस का नमूना दिल्ली के एक गांव में मिला जिस में एक मां ने अपनी 2 माह की बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी और फिर उसे कुछ नहीं सुझा तो एक खराब ओवन में छिपा कर बच्ची के चोरी होने का ड्रामा करने लगी. इस औरत के पहले ही एक बेटा था और आमतौर पर औरतें एक बेटे के बाद और बेटी से खुश ही होती हैं.

हमारा समाज चाहे कुछ पढ़लिख गया हो पर धार्मिक कहानियों का दबाव आज भी इतना ज्यादा है कि हर पैदा हुई लडक़ी एक बोझ ही लगती है. हमारे यहां पौराणिक कहानियों में बेटियों को इतना अधिक कोसा जाता है कि हर गर्भवती बेटे की कल्पना करने लगती है. रामसीता की कहानी में राम तो सजा बने पर सीमा के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा. महाभारत काल की कहानी में कुंती हो या द्रौपदी या हिडिवा सब को वे काम करने पड़े थे जो बहुत सुखदायी नहीं थे.

ये कहानियां अब हमारी शिक्षा का अंग बनने लगी हैं. औरतों को त्याग की देवी का रूप कहकह कर उन का जम कर शोषण किया जाता है और वे जीवन भर रोती कलपति रहती हैं. कांग्रेसी शासन में बने कानूनों में औरतों को हक मिले पर उन का भी खमियाजा औरतों को भुगतना पड़ता है क्योंकि हर हक भोगने के लिए पुलिस और अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और भाई या पिता को उस के साथ जाना पड़ता है तो वे उस दिन को कोसते हैं जब बेटी पैदा हुई थी. हर औरत के अवचेतन मन में इन पौराणिक कहानियों और औरतों के व्रतों, त्यौहारों से यही सोच बैठी है कि वे कमतर हैं और उन्हें ही अपने सुखों का बलिदान करना है.

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