जनता और पीडि़त पुरुषों के दबाव में आ कर सरकार आखिर दहेज विरोधी कानून, जो इंडियन पीनल कोड की धारा 498ए में है, में संशोधन करने को तैयार हो गई है. यह कानून बहुओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने और दहेज के लिए बहुओं को जलाने से रोकने के लिए बनाया गया था. पर इस बीमारी को जिस दवा से रोकना चाहा था वही दवा जहर बन गई और आज सैकड़ों परिवारों के हजारों लोग इस की वजह से जेलों में बंद हैं और बहुएं रानी लक्ष्मीबाई बनी सीना तान कर खड़ी तो हैं पर वे खद भी अपने ही मातापिताओं, भाइयोंभाभियों के तानों की शिकार हैं.इस कानून ने न केवल एक औरत के पति को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई वरन उस को मायके में पटकवा कर उस का वर्तमान और भविष्य भी चौपट कर दिया. कानूनी हथियार तो धारा 498ए ने दे दिया पर यह ऐसा हथगोला साबित हुआ जो फेंकने वाले के कदमों पर ही फटता है और पति व उस के घर वालों को तारतार करता है तो फेंकने वाले के भी वह कपड़े जला डालता है.

आधेअधूरे आंकड़ों के अनुसार 2013 में 1,98,866 व 2012 में 1,06,527 मामले धारा 498ए के अंतर्गत देश के थानों में दर्ज किए गए. कम से कम 10% मामले तो पुलिस ने ही झूठे पाए. कुल कितने मामलों में वास्तव में सजा हुई यह पता नहीं चलेगा, क्योंकि दर्ज किए मामलों का अंतिम फैसला आतेआते 10-12 साल तो लग ही जाते हैं.इस दौरान पति और उस के मातापिता, भाईबहन, भानजा, ननदोई, चाचा, दादा, दादी और न जाने कौनकौन जेल काट आए होते हैं. हर मजिस्ट्रेट पहले दिन तो जेल भेज ही देता है चाहे औरत की शिकायत सच्ची हो या झूठी. जो मामले चले उन से कई  गुना ज्यादा मामले ऐसे हैं, जिन में इस एटम बम को फोड़ने की धमकी दे कर पति को ब्लैकमेल किया जाता है या उसे मातापिता से अलग रहने को मजबूर किया जाता है या फिर मोटी रकम दे कर तलाक के लिए दबाव डाला जाता है.

इस कानून की वजह से लाखों परिवार हर साल भूकंप पीडि़त जैसे हो जाते हैं और इन भूकंपों में उस औरत की दुर्दशा ही होती है जिस ने इस का दुरुपयोग किया हो.सरकार जो संशोधन कर रही है, वह आधाअधूरा है. असल में यह प्रावधान ही हटना चाहिए, क्योंकि घरेलू मारपीट, ताने देने आदि पर वैसे ही दूसरे कई कानून हैं. यह मामला पारिवारिक है और अगर परिवार में नहीं सुलझ सकता तो कहीं नहीं सुल झेगा. अगर विवाह ही तोड़ना है तो जेल की क्या जरूरत? सीधा कानून बना दो कि अगर दहेज की मांग की गई तो तलाक 1 माह में पत्नी को मिल जाएगा. अगर पत्नी को डर होगा कि उसे घर छोड़ना पड़ेगा तो उस की हिम्मत न होगी. आज उसे उसी के मातापिता चढ़ा देते हैं कि लड़ती रहो हम साथ हैं, जेल में चक्की पिसवा देंगे. जो मातापिता, भाईभाभी हजारोंलाखों खर्च कर के विवाह कराते हैं वे बेटी के घर में आग लगाने में हिचक नहीं दिखाते, क्योंकि उन्हें गलतफहमी रहती है कि धमकी से पति व उस के घर वाले दुम दबा लेंगे.

घरपरिवार डर से नहीं प्यार से चलते हैं. पति के घर वाले साथ रहते हैं, तो आर्थिक जबरदस्ती होती है. आज कोई जना बेटेबहू के साथ तब तक नहीं रहना चाहता जब तक उस में अपना दम है. पति के मातापिता के साथ रहना बोझ नहीं नेमत है. वहां की खटपट को, अपने मातापिता की रोकटोक लड़कियां समझें तो ही वे सुखी रह सकती हैं. इस तोड़क कानून को तो गंगा की गंदगी में मिला कर बहा दिया जाना चाहिए

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