अगर आप का यह मानना है कि सिर्फ पुरुष ही शक्तिप्रदर्शन कर सकते हैं, अपनी ताकत दिखा सकते हैं तो आप को अपनी यह सोच बदलनी होगी, क्योंकि हम आप की मुलाकात करवाने जा रहे हैं एक ऐसी महिला से जो पुरुषप्रधान देश में पुरुषों को चुनौती दे कर इस सोच को झूठा साबित कर रही हैं. जी हां, ये महिला कोई और नहीं देश की पहली इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट विजेता दीपिका चौधरी हैं. दीपिका से हाल ही में दिल्ली के सर शंकर लाल हौल में आयोजित जेरई स्ट्रौंग मैन व जेरई क्लासिक प्रतियोगिता के दौरान मुलाकात हुई. जेरई फिटनैस प्राइवेट लिमिटेड व बौडी पावर इंडिया इस तरह की प्रतियोगिताएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समयसमय पर कराते रहते हैं. भारत में यह पहला मौका था जब इतने बड़े स्तर पर इस तरह की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जहां पुरुषों के साथसाथ महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

दीपिका चौधरी पुणे के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ वायरोलौजी में बतौर टैक्निकल रिसर्च असिस्टैंट कार्य कर रही हैं. उन्होंने अप्रैल, 2015 में अमेरिका में आयोजित इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट प्रतियोगिता में न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया था, बल्कि उस प्रतियोगिता में जीत भी हासिल की थी. विश्व स्तर पर आयोजित इस प्रतियोगिता को जीतने वाली दीपिका चौधरी भारत की पहली महिला हैं. वे इस से पहले 2013 में अमेरिका के फ्लोरिडा में आयोजित ऐथलीट कैंप में भी शामिल हो चुकी हैं. फिगर ऐथलीट 31 वर्षीय दीपिका अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभा रही हैं. जब उन से पूछा कि पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली तो उन्होंने बताया, ‘‘2012 में जब मैं ने विश्वप्रसिद्ध फिटनैस कोच शेनोन डे द्वारा आयोजित सेमिनार अटैंड किया और वहां इंटरनैशनल फिगर ऐथलीट्स को स्टेज पर प्रदर्शन करते देखा तो मैं ने तय किया कि मुझे भी उन के जैसा बनना है. तब से आज तक मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.’’

पुणे की रहने वाली दीपिका चौधरी ने बताया कि उन के मातापिता ने उन के भाई व उन में कभी कोई अंतर नहीं किया. उन्हें अपने व्यक्तिगत निर्णय लेने की पूरी आजादी थी. आज दीपिका विवाहित हैं और अपने बंगाली पति व सासससुर के साथ पुणे में रहती हैं. दीपिका कहती हैं कि शुरू में उन के इस प्रोफैशन को ले कर उन की ससुराल वालों द्वारा विरोध हुआ, लेकिन अब व तब की स्थिति में जमीनआसमान का फर्क है. उन के पति तनुजीत उन्हें पूरापूरा सहयोग देते हैं. शुरू में जब आप लीक से हट कर कुछ करने की कोशिश करते हैं तो समाज, परिवार को उसे स्वीकारने में थोड़ी कठिनाई होती ही है. मगर जहां कुछ लोग आप का विरोध करते हैं वहीं कुछ लोग समर्थन भी करते हैं.

दीपिका कहती हैं, ‘‘आज स्थिति बिलकुल विपरीत है. आज लड़कियां मेरे घर मुझ से फिजिकल और साइकोलौजिकल ऐडवाइज लेने आती हैं. वजन अधिक होने के कारण जब पति या घर वाले उन्हें टोकते हैं तो वे वजन कम करने के अपने उद्देश्य पर टिक नहीं पातीं. मोटापा उन में हीनभावना भर देता है, जिस से वे मनचाहा परिणाम पाने में कामयाब नहीं हो पातीं. ऐसे में वजन कम करने में साइकोलौजिकल ऐडवाइज महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह उन्हें मैंटली स्ट्रौंग बनाता है. इस से उन्हें यह एहसास हो जाता है कि कोई भी लक्ष्य तभी पाया जा सकता है जब आप की इच्छाशक्ति मजबूत हो.’’

फैमिनिटी पर असर

हमारे समाज की सोच है कि जो लड़कियां अथवा महिलाएं गेम्स खेलती हैं या फिर बौडी बिल्डिंग करती हैं उन की फिगर खराब हो जाती है, उन की खूबसूरती में कमी आ जाती है और उन की फैमिनिटी पर नकारात्मक असर पड़ता है. लेकिन दीपिका को देख कर यह सोच गलत साबित होती है. जब यह सवाल दीपिका से पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘जैसे प्रकृति के अनेक रंग हैं वैसे ही हर पुरुष में भी कुछ फैमिनिटी व हर महिला में कुछ मस्क्यूलैरिटी होती है. जो पुरुष फैशन व ब्यूटी इंडस्ट्री से जुड़े होते हैं उन में फैमिनिटी दिखाई देती है. मुझे समझ नहीं आता अगर कोई उस खास स्टाइल, उस बौडी टाइप में कंफर्टेबल है तो समाज को क्यों आपत्ति होती है? हमारे आसपास के लोगों में कोई गोरा, कोई सांवला, कोई लंबा, कोई छोटा, कोई मोटा तो कोई पतला होता है और लोग उन्हें उसी रूप में स्वीकाते हैं. वैसे भी हरेक की अपनी पसंद होती है. हरेक को अपनी पसंद के अनुसार जीने का अधिकार होना चाहिए.’’

अगर आप दीपिका के फेसबुक अकाउंट पर जाएंगे तो वहां उन के स्टाइल, उन के प्रोफैशन को ले कर शायद ही आप को 1 प्रतिशत भी नैगेटिविटी नजर आए. यह गलत सोच है कि बौडी बिल्डिंग सिर्फ पुरुषों के लिए है. दीपिका कहती हैं कि हमें समाज को बदलने की जरूरत नहीं है. जो अच्छा लगता है वही करना चाहिए. अगर कोई महिला या लड़की इस क्षेत्र में कैरियर बनाना चाहती है तो समाज को इस से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए.

फिगर ऐथलीट व फिजीक ऐथलीट में अंतर

हर उस महिला को, जिस के ऐब्स, मसल्स व बाइसेप्स होते हैं, बौडी बिल्डर नहीं कहा जाता. दीपिका बौडी बिल्डिंग की प्रतियोगिताओं में ऐथलीट फिगर श्रेणी में आती हैं. इंटरनैशनल फैडरेशन औफ बौडी बिल्डिंग के तहत खेलने वाली दीपिका की सभी प्रतियोगिताएं अमेरिका में होती हैं. वे इन प्रतियोगिताओं में 4 बार जीत हासिल कर चुकी हैं. वे कहती हैं कि जहां फिजीक ऐथलीट को मस्क्यूलर होने व ज्यादा थ्रेडेड रहने की जरूरत होती है वहीं फिगर ऐथलीट के लिए ऐसा होना जरूरी नहीं है. लेकिन उस की बौडी सिमिट्री व बालों, स्किन की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए. फैमिनिटी मैंटेन रहनी चाहिए. भारत में अभी तक सिर्फ फिजीक व फिटनैस डिविजन हैं, लेकिन बौडी पावर ऐक्सपो के कारण वे लड़कियां या महिलाएं जिन की बौडी टाइप बिकिनी फिगर में फिट बैठती है अब वे भी इन प्रतियोगिताओं में भाग ले सकती हैं. हमारे यहां बिकिनी फिगर या बिकिनी ऐथलीट की तुलना फिजिक ऐथलीट से की जाती है. यहां ड्रैस, पोजिंग का कोई स्टैंडर्ड फौर्मैट नहीं है. यहां सिर्फ क्राउडपुलिंग के लिए लड़कियों का प्रयोग होता है.

दीपिका बताती हैं कि फिगर ऐथलीट में कुल 4 पोज होते हैं. इन में आप को सामने देखते हुए अपने बौडी पार्ट्स को दिखाना होता है. फिर अपने ऐब्स को, टांगों की सभी मसल्स को और फिर पीठ की मसल्स को दिखाना होता है. साथ ही 130 किलोग्राम वजन भी उठाना पड़ता है. 102 दंडबैठक भी लगानी पड़ती हैं.

मातृत्व पर असर

लोगों का मानना है कि अगर महिलाएं बौडी बिल्डिंग करती हैं तो उस से उन के मां बनने के प्राकृतिक गुण पर प्रभाव पड़ता है. इस सवाल पर दीपिका का कहना है, ‘‘यह बिलकुल गलत है. इस का ताजा उदाहरण हैं बैंगलुरु की बौडी बिल्डर सोनाली स्वामी जो 2 बच्चों की मां हैं और प्रसिद्ध बौडी बिल्डर भी. फिटनैस या बौडी बिल्डिंग का मातृत्व से कोई लेनादेना नहीं है.’’ अपनी सुंदरता और सिक्स पैक को मैंटेन रखते हुए दीपिका अपने परिवार की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभा रही हैं. वे कहती हैं कि उन्हें अपने फिगर ऐथलीट बनने के निर्णय पर गर्व होता है.

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