नवरात्रि के 9 दिन हों या गणपति के 11 दिन, इन दिनों जश्न वाला माहौल होता है. भारत के हर शहर में गणेश उत्सव, दशहरा आदि मनाने के लिए हरकोई उत्साहित रहता है. लेकिन जैसेजैसे समय गुजर रहा है, लोग ज्यादा शिक्षित तो हो रहे हैं, मगर त्योहारों पर नियमकानून और सुरक्षा की तलवार लटकना शुरू हो गई है.

3 अक्तूबर, 2024 को नवरात्रि का त्योहार शुरू हुआ. इन दिनों खासतौर पर मुंबई व गुजरात में गरबा प्रेमियों की भीड़ अति व्यस्तता के बावजूद नवरात्रि स्थलों पर सजधज कर गरबा डांडिया खेलने पहुंच जाती है. इन नवरात्रि उत्सव मनाने वाले जगहों का टिकट और पास ₹500 से ₹1000 के करीब का होता है। कई जगहों पर तो 1 दिन का ₹800 तक का भी पास होता है. बावजूद इस के गरबा प्रेमी यहां पर पास या टिकट ले कर गरबा खेलने पहुंचते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से पुलिस कमिश्नर और मौजूदा सरकार द्वारा पास किए गए कानून के हिसाब से रात के 10:00 बजे तक ही गरबा खेलने की परमिशन है. ऐसे में कई गरबा प्रेमियों को अपनी इच्छा को मार कर घर बैठना पड़ता है जो अपना काम खत्म कर के और 2-3 घंटे की लंबी यात्रा कर के 9 बजे घर पर पहुंचते हैं. ऐसे में गरबा स्थान पर पहुंचने में ही उन्हें 10 बज जाते हैं जिस के चलते कई सारे लोग समय की पाबंदी के चलते गरबा खेलने नहीं जा पाते.

सख्त हिदायत

इस बार भी मुंबई के पुलिस कमिश्नर विवेक फनसलकर की सख्त हिदायत है कि नवरात्रि का समय 10 बजे तक का ही होगा। ऐसे में अगर कहीं भी 10:00 के बाद लाउड म्यूजिक सुनाई दिया तो उस पर सख्त कार्रवाई होगी.

मौजूदा सरकार और पुलिस के अनुसार सिर्फ शनिवार व रविवार को और नवरात्रि के आखिरी दिन रात 12 बजे तक गरबा खेला जा सकेगा. हालांकि बहुत सारे दिग्गज लोगों ने समय बढ़ाने के लिए सरकार के सामने गुहार भी लगाई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

ऐसे ही कुछ हालात दीवाली व होली और गणेशोत्सव के दौरान भी देखने को मिलती है। पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

सख्त कानून के पीछे खास वजह क्या है

एक समय था जब हिंदू,मुसलिम, सिख, इसाई धर्म में न सिर्फ एकदूसरे के धर्म की इज्जत करते थे बल्कि दोस्ती और भाईचारा निभाते हुए सभी धर्म के त्योहार भी साथ मिल कर मनाते थे. कोई हिंदू अगर मुसलमान के घर ईद मिलने जाता था तो मुसलमान भी अपने हिंदू दोस्त के घर दीवाली और होली मिलने आते थे. लेकिन जैसेजैसे समय बदला वैसेवैसे शिक्षित भी धर्म के नाम पर अशिक्षित जैसा व्यवहार करने लगे. जिस के चलते अगर मसजिद के सामने पटाखे फोड़ दिए जाएं तो उस पर भी विवाद शुरू हो जाता है.

अगर किसी मुसलिम को होली पर भूल से रंग लग जाए तो झगड़ा शुरू हो जाता है जोकि बाद में बड़ी दिक्कत के रूप में सामने आता है. एक समय में मुसलिम व हिंदू भाईभाई कहने वाले भारतीय अब मुसलमान को ले कर धर्म के नाम पर लड़ने लगे हैं. इसी के चलते कोई दंगाफसाद न हो इसलिए पुलिस को भी सख्ती बरतनी पड़ती है जिस के चलते न सिर्फ समय की पाबंदी हो गई है , बल्कि सभी त्योहारों पर कोई न कोई रोकटोक हो गई है.

त्योहारों का मजाक तो नहीं

होली पर रंगों को ले कर, दीवाली पर पटाखों को ले कर, नवरात्रि में समय को ले कर कई ऐसे कानून बन गए हैं जो त्योहार का मजाक किरकिरा करने के लिए काफी हैं. जिस में कभी पौलिटिकल इश्यू आता है, तो कभी धर्म के नाम पर इमोशनल और सैंसिटिव इश्यू. कभी हैल्थ को ले कर वाइस कंट्रोल करने का इशू सामने आ जाता है और ऐसे में दीवाली, होली नवरात्रि या गणपति जैसे त्योहारों का हम इंतजार जो बेसब्री से करते हैं वह कब ठंडाठंडा ही आ कर चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता.

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