पिछले कुछ समय से दिवंगत उद्योगपति के. के. मोदी के परिवार में 11,000 करोड़ रुपये की विरासत को लेकर विवाद चल रहा है. हाल ही में के. के. मोदी के छोटे बेटे और गॉडफ्रे फिलिप्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर समीर मोदी ने अपनी मां बीना मोदी पर हमले की साजिश रचने का आरोप लगाया है जिस से परिवार के सदस्यों के बीच विरासत को लेकर झगड़ा और बढ़ गया है.

समीर ने 31 मई को दिल्ली पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. इस में उन्होंने अपनी मां, उनके निजी सुरक्षा अधिकारी (PSO) और गॉडफ्रे फिलिप्स के डायरेक्टर्स पर उन्हें गंभीर चोट पहुंचाने का आरोप लगाया. बीना मोदी भी गॉडफ्रे फिलिप्स की डायरेक्टर हैं. समीर ने बताया कि 30 मई को जब वह दिल्ली के जसोला में जीपी की निर्धारित बोर्ड मीटिंग में घुसने की कोशिश की तो बीना मोदी के पीएसओ ने उन्हें मीटिंग में घुसने से रोक दिया. जब उन्होंने जोर दिया तो पीएसओ ने उन्हें धक्का देने की कोशिश की और कहा कि उन्हें बोर्ड मीटिंग में घुसने की अनुमति नहीं है.

बकौल समीर, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे ही कार्यालय में मेरे साथ मारपीट की जाएगी जबकि शेयरों के निपटान पर अदालत में मामला लंबित है, मैं अब अपनी हिस्सेदारी नहीं बेचूंगा. मुझे बोर्ड से हटाने का प्रयास किया जा रहा है जो संभव नहीं होगा.’

बाद में गॉडफ्रे फिलिप्स के प्रवक्ता ने इस आरोप को खारिज कर दिया मगर चोट समीर के हाथ और दिल पर देखी जा सकती है. अपनी ही मां के द्वारा इस तरह का व्यवहार किसी को भी चोट पहुंचा सकता है. मगर जब मामला संपत्ति का हो तो इस तरह रिश्तों में दूरियां आना बहुत स्वाभाविक है. विरासत की जंग अक्सर ऐसे ही मंजर ले कर आती है.

ललित मोदी ने भाई के साथ हुई इस घटना को  को ले कर X पर पोस्ट लिखा, ‘मेरे भाई को इस हालत में देखकर मेरा दिल टूट गया. एक मां का उसके सुरक्षाकर्मियों द्वारा बेटे को इस तरह पीटा जाना कि उसका हाथ खराब हो जाए चौकाने वाला है. जबकि समीर का एकमात्र दोष एक बैठक में भाग लेना था.’
दरअसल संपत्ति ऐसी चीज है जो रिश्तों में दूरी लाने का सब से बड़ा कारण बनती है. सम्पत्ति के लिए मां बेटे, बाप बेटे, भाई भाई या भाई बहन को भी झगड़ते देखा जा सकता है. साधारण परिवार हो या अरबों का साम्राज्य हो, संपत्ति के लिए रिश्तों में क्लेश और द्वेष का बढ़ना बहुत स्वाभाविक है. पैसा चीज ही ऐसी है जो रिश्तों में कड़वाहट लाती है. लोग आपस में ही उलझ जाते हैं. अपनों के बीच मुकदमेबाजी होती है. सालों कोर्ट कचहरी के चक्कर लगते हैं. एक दूसरे को ख़त्म करने के षड्यंत्र होते हैं. हाल में ऐसा ही नजारा कुछ बड़े नामचीन और अरबों खरबों का व्यवसाय चलाने वाले खानदानों में दिख रहा है. विरासत की लड़ाइयां उन्हें अपनों के विरुद्ध कोर्ट तक खींच कर ले जा रही है.

केके मोदी परिवार में विरासत की जंग

इस साल फरवरी में दिवंगत केके मोदी के बेटे समीर मोदी ने अपनी मां बीना मोदी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की. उन्होंने उन पर परिवार की 11,000 करोड़ रुपये की विरासत को गलत तरीके से संभालने का आरोप लगाया है. यह विवाद गॉडफ्रे फिलिप्स की हिस्सेदारी और मोदी समूह के अन्य शेयरों के वितरण से जुड़ा है. समीर जो पहले अपनी मां के साथ थे अब ट्रस्ट डीड के तत्काल क्रियान्वयन की मांग में अपने भाई ललित का समर्थन कर रहे हैं. परिवार ने शुरू में ट्रस्ट को भंग करने पर असहमति जताई थी जिस के कारण ललित मोदी ने पहले मां के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की थी. उस समय वह अकेले थे मगर अब भाई समीर भी उन के साथ है.

समीर मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में बीना मोदी पर अपने पिता द्वारा निष्पादित ट्रस्ट डीड में निर्धारित धन वितरित नहीं करने का आरोप लगाया है. उन्होंने उन पर गॉडफ्रे फिलिप्स के मामलों को नियंत्रित करने और ट्रस्ट डीड के अनुसार न चलने का भी आरोप लगाया है. विरासत में सूचीबद्ध गॉडफ्रे फिलिप्स में परिवार की लगभग 50% हिस्सेदारी शामिल है जिसकी मौजूदा कीमत 5,500 करोड़ रुपये से अधिक है. साथ ही कॉस्मेटिक्स, रिटेल और डायरेक्ट सेलिंग जैसे क्षेत्रों में मोदी समूह की अन्य फर्मों में भी शेयर शामिल हैं. बीना मोदी अब कंपनी के कामकाज को संभाल रही हैं. यही विवाद की जड़ है.

समीर मोदी चाहते हैं कि ट्रस्ट डीड को लागू किया जाए. आने वाले समय के लिए एक पारिवारिक समझौते की परिकल्पना की गई है जिसमें समीर मोदी, ललित मोदी और चारू मोदी कंपनियों और संपत्तियों के बराबर लाभार्थी और उत्तराधिकारी हों. बीना मोदी की भूमिका ऐसे समझौते को संभव बनाने तक ही सीमित होनी चाहिए.

शुरू में समीर मोदी और बहन चारू मोदी ने अपनी मां का समर्थन किया था जब उन्होंने केके मोदी की मृत्यु के बाद 30 नवंबर, 2019 को दुबई में एक पारिवारिक बैठक में फैसला किया था कि पारिवारिक ट्रस्ट जारी रहेगा. उस बैठक में ललित मोदी ने ट्रस्ट को भंग करने और विरासत की आय के वितरण की मांग की थी. उन्होंने विरासत को वितरित करने के लिए गॉडफ्रे फिलिप्स को बेचने का भी प्रस्ताव रखा था.

चारू और समीर मोदी ने ट्रस्ट को जारी रखने की अपनी मां की इच्छा का समर्थन किया था जिससे ललित मोदी अकेले असहमत रह गए थे. बीना मोदी ने तब विवाद को सुलझाने के लिए ललित मोदी को उनका हिस्सा देने की योजना बनाई थी. लेकिन समीर मोदी ने अब अपने भाई के साथ मिलकर मांग की है कि वितरण योजना का तुरंत पालन किया जाए.

केके मोदी ने अपनी पत्नी और तीन बच्चों के बीच विरासत को समान रूप से विभाजित करने का प्रस्ताव रखा था. उनकी पत्नी की मृत्यु की स्थिति में उनकी विरासत तीन बच्चों के बीच समान रूप से वितरित की जाएगी जो फिर इसे अपने वंशजों को दे सकते हैं. इसका मतलब यह था कि चारू, ललित और समीर अंततः पारिवारिक विरासत के एक तिहाई के हकदार होंगे.

ट्रस्ट डीड में शामिल चेतावनियों में उत्तराधिकारियों को ट्रस्ट को भंग करने और परिवार की संपत्ति को इस अनुपात में वितरित करने का विकल्प भी दिया गया था. इसमें यह भी बताया गया था कि यदि कोई सदस्य ट्रस्ट को जारी रखने का विरोध करता है तो उसे भंग करना होगा. उस समय बीना मोदी और उनके दो बच्चों ने इसे जारी रखने का समर्थन किया लेकिन ललित मोदी ने कानूनी रास्ता अपनाया था और भारत की अदालतों और सिंगापुर में मध्यस्थता न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि उनकी मां और भाई-बहनों ने उनकी मांग को स्वीकार नहीं किया था. उन मुकदमों का भी अभी तक फैसला नहीं हुआ है.

फैमिली बैकग्राउंड

ललित मोदी जून 2015 से ही भारत की वॉन्टेड लिस्ट में हैं और अभी भारत से भागकर लंदन में रह रहे हैं. आज के समय में भगौड़ा घोषित किए गए ललित मोदी का ताल्लुक देश के दिग्गज कारोबारी घराने से है. उनके दादा ने एक पूरा शहर बसाया था. ललित मोदी के दादा राय बहादुर सेठ गुजरमल मोदी ने पूरे मोदीनगर को बसाया था.  साल 1933 में उन्होंने दिल्ली से करीब 50 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के बेगमाबाद में 100 बीघा जमीन खरीदी. यहां पर उन्होंने इंग्लैंड से लाई मशीनों से एक चीनी मिल शुरू की. आज ये इलाका मोदीनगर के नाम से जाता है.

ललित मोदी के पिता कृष्ण कुमार मोदी यानी केके मोदी की शादी 1961 में बीना मोदी से हुई. शादी के वक्त बीना मोदी दिल्ली में थाई रेस्टोरेंट चलाती थीं. शादी के करीब दो साल बाद 29 नवंबर 1963 को ललित मोदी का जन्म हुआ. ललित मोदी के अलावा केके मोदी के दो और बच्चे हैं, चारू मोदी (सबसे बड़ी) और समीर मोदी (सबसे छोटे). चारू मोदी भारती मोदी ग्रुप की तरफ से चलाए जा रहे एजुकेशनल वेंचर को संभालती हैं. वहीं दूसरी ओर समीर मोदी रिटेल और कॉस्मेटिक्स वेंचर संभालते हैं. चारू मोदी के दो बच्चे हैं, बेटी प्रियल और बेटा अशरथ. समीर मोदी ने शिवानी से शादी की है और उनकी दो बेटियां वेदिका और जयती हैं. ललित मोदी के दो बच्चे हैं रुचिर और आलिया. रुचिर की एक सौतेली बहन भी हैं जिनका नाम करीमा सागरनी है.

ललित मोदी ने दो शादियां की. पहली शादी मीनल से की थी जो उनकी मां बीना मोदी की सहेली थीं. उस वक्त ललित मोदी से उम्र में 9 साल बड़ी मीनल से शादी करने को लेकर चर्चा में आए थे. फिर वह अपने से 12 साल छोटी सुष्मिता सेन के साथ रिश्ते को लेकर चर्चा में रहे. 2018 में मीनल मोदी का कैंसर के कारण निधन हो गया था. मीनल हिंदू थी लेकिन उन के पहले पति और बेटी मुस्लिम हैं. ललित मोदी उनके दूसरे पति थे. ललित मोदी करीमा के सौतेले पिता हैं जिनकी शादी डाबर समूह के विवेक बर्मन के बेटे गौरव बर्मन से हुई है. यानी ललित मोदी की सौतेली बेटी डाबर समूह की बहू भी हैं.

ललित मोदी के बेटे रुचिर मोदी फैमिली बिजनेस से जुड़े हुए हैं. नवंबर 2020 में  रुचिर ने कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री को पत्र लिखकर सेबी से जांच कराने की मांग तक कर डाली थी और दादी बीना मोदी पर आरोप लगाए थे. उन्होंने लिखा था कि पब्लिक शेयरहोल्डर्स की ओर से दादी बीना मोदी को बेदखल कर दिया गया. इसके बाद भी वो कंपनी को बतौर प्रेसिडेंट और डायरेक्टर संभाल रही हैं. पिछले साल ललित ने अपने बेटे रुचिर मोदी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर के बिजनेस संभालने की कमान सौंप दी. अब रुचिर मोदी के पास बिजनेस को बढ़ाने के साथ इस विवाद से निपटने की जिम्मेदारी भी है. ललित मोदी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाने के साथ 4,555 करोड़ रुपए की संपत्ति भी सौंपी है.

वह मोदी केयर और गॉडफ्रे फिलिप इंडिया लिमिटेड के डायरेक्टर हैं. कंपनी की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक रुचिर ही मोदी वेंचर्स के फाउंडर भी हैं. वह ट्वेंटी फोर सेवन कन्वीनियंस स्टोर्स और कलर बार कॉस्मेटिक ब्रांड के प्रोजेक्ट को लीड कर रहे हैं. ब्रिटेन से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वाले रुचिर राजस्थान में अलवर डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट भी हैं. पिता की तरह उन्हें भी क्रिकेट का शौक है.

इन लड़ाइयों से हासिल क्या होता है

इस तरह की संपत्ति की लड़ाइयां रिश्तों में दूरी लाती हैं, विद्वेष बढ़ता है, आप सी रंजिशें कई पीढ़ियों तक चलती हैं और इंसान अपनों के ही विरुद्ध फैसले लेने लगता है. रईस फैमिली हो या गरीब या फिर मध्यवर्गीय इस तरह के झगड़े हर तरह के परिवार में दिख जाते हैं. ऐसे में वकीलों की चांदी होती है और इंसान खुद अपनी मौजूदा संपत्ति और सम्मान भी गंवाता जाता है. इन लड़ाइयों की कोई सीमा नहीं. मुकदमों की सुनवाई सालों चलती है. फैसले आने में सदियां लग जाती हैं मगर हासिल क्या होता है? बेहतर है कि अपनों के विरुद्ध जाने से पहले इंसान मिल बैठ कर समस्या सुलझाने का प्रयास करे और कोई हल निकाले. अपनों के विरुद्ध कड़वाहटों को पीढ़ियों तक पहुंचाने से बेहतर क्या यह नहीं कि इंसान थोड़ा गम खा आकर भी आपसी सहमति से ही फैसले ले ले.

 

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