कारें एक बार फिर चर्चा में हैं. देश की राजधानी दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में कारों की आवाजाही पर रोक लगाए जाने की योजना बनाई जा रही है. फिलहाल 3 महीने के एक पायलट प्रोजैक्ट के तहत इस के भीतरी सर्कल को सिर्फ पैदल यात्रियों के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा. केंद्रीय ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि सरकार कारों की बेलगाम खरीद पर रोक लगाने पर विचार कर रही है. सैद्धांतिक रूप से इस पर सहमति भी बन चुकी है कि अब सिर्फ वही लोग कार खरीद पाएं, जिन के घर या सोसायटी में कार पार्क करने की एक सुनिश्चित जगह हो. इस में कोई शक नहीं है कि देश में कारों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जबकि सड़कों पर उन्हें समाने की जगह पर्याप्त नहीं है. देश में कारें बढ़ी हैं, पर वे जरूरत हैं या शौक, इस का खुलासा आयकर विभाग के एक आंकड़े से हो रहा है.
आयकर विभाग ने बीते 5 वर्षों के आंकड़ों के आधार पर दावा किया है कि देश में सिर्फ 24.4 लाख करदाताओं ने अपनी सालाना आय 10 लाख रुपए से ज्यादा बताई है, जबकि हर साल यहां 25 लाख कारें खरीदी जा रही हैं. खास बात यह है कि इन में से करीब 35 हजार कारें लग्जरी गाडि़यों में आती हैं जिन की कीमत 10 लाख रुपए से ज्यादा होती है. सवाल यह उठाया गया है कि जब आमदनी नहीं है तो महंगी कारें खरीदने वाले लोग आखिर कौन हैं? जाहिर है कि रिटर्न यानी आयकर विवरणी दाखिल करने वालों में से बहुत से लोग ऐसे हैं जिन की वास्तविक आय कहीं ज्यादा है, लेकिन उन्होंने खुद को टैक्स के दायरे से बाहर रखने के कानूनीगैरकानूनी उपाय कर रखे हैं. मसला भले ही टैक्स चोरी का है, लेकिन ऐशोआराम की जिस चीज यानी लग्जरी कारों के संदर्भ से ये आंकड़े उजागर किए गए हैं, उन से एक बार फिर कारों की जरूरत पर सवाल उठना लाजिमी है.
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