लो जी देश की औरतों और उन के परिवारों को (मंदिर और मसजिद भी) ले जाने के लिए प्रचार का धुआंधार कार्यक्रम ज्ञानवाणी मसजिद और मथुरा से चालू हो गया है. जितनी मंदिर के नाम पर सुर्खियां आएंगी उतने ज्यादा मंदिरों के ग्राहक बढ़ेंगे और पूजा सामग्री भी ज्यादा बिकेगी, मोहल्लेका मंदिर हो या चारधाम, लाइनें बढेंगी, लोग कुंडलियों, वास्तु, आयुर्वेद, शुभ समय, पूजापाठ को दोड़ेंगे. यह औरतों को पता भी नहीं चलेगा कि इस की कीमत वे दे रही हैं, वे तो इस बात से खुश हैं कि उन का धर्म चमचमा रहा है या इस बात से गम में कमजोर हो रही है कि उन के धर्म पर हमले हो रहे हैं.
मंदिर मसजिद विवाद का अंतिम असर जो जीवन भर दर्द रहेगा, औरत पर पड़ता है. यह उसी का बेटा या पति है जो उस भीड़ में गला फाड़ता है जो मंदिरमंदिर चिल्ला रही है और घर आ कर पूछता है खाने को क्या है? वह काम पर नहीं जाता पर खाना ज्यादा मांगना है क्योंकि उस का गला सूख रहा है, बदन दर्द कर रहा है.
जो चंदा मंदिर के नाम पर उपद्रव करने के लिए जमा किया वह औरत की आय का हिस्सा है. जिस का घर जलाया गया, बुलडोजर से तोड़ा गया वह औरत की सुरक्षा की छाया थी. जिसे रात्रि जागरण के लिए बुलाया गया, 4 घंटे जमीन पर बैठा कर कीर्तन गाए गए जिस के अंत में मंदिर वहीं चाहिए के नारे लगे वह औरतें ही थीं. ये वे औरतें हैं जो घर लौट कर कपड़े धोएंगी, सुखाएंगी, राशन, लाएंगी, खाना बनाएंगी, पर घर साफ रखेंगी. न मंदिर यह काम करेगा, न मसजिद.
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