सुनामी और भूकंप तो वैसे ही बदनाम थे अब बारिश भी रिमझिम न रह कर लुटेरी बन गई. जिन सावन के झोंकों का बेसब्री से इंतजार करा जाता था, उन्होंने तमिलनाडु में कहर ढा कर 80 लाख की आबादी वाले शहर चेन्नई को वर्षों के लिए गहरा घाव दे दिया है. बारिश की वजह से लगभग पूरा शहर एक विशाल स्विमिंग पूल बन गया और दशकों से बसीं गृहस्थियां एकदम भूख के कगार पर आ गईं. 2 सप्ताह की बारिश और शहर के साथ मखौल उड़ाने की सजा इस पुराने शहर को मिली है और कितने साल लगेंगे इस का हरजाना पूरा करने में कुछ कहा नहीं जा सकता. गनीमत यही है कि मकान यहां अमेरिका की तरह कच्चे नहीं थे और सिवा निचली मंजिलों वाले या झोंपडि़यों के मकानों के मकान के ऊपरी हिस्सों में जा कर जानें बच गईं पर तिनकातिनका जोड़ कर बनाया गया सारा सामान नष्ट हो गया.
कहने को तो दफ्तरों में पानी घुसा, बैंकों में घुसा, हवाईअड्डे पर खड़े हवाईजहाजों में घुसा, गाडि़यां डूबीं, बेसमैंट के लौकर, दुकानें, गोदाम डूबे पर जो दर्द एक गृहिणी को अपनी शादी की कांजीवरम की साड़ी के भीग कर नष्ट हो जाने का होता है, उसे बयां नहीं करा जा सकता. ब्लेम गेम में कहा जा रहा है कि गलती तो यह है कि प्लेटनुमा इलाकों में जहां से पानी की निकासी कभी नहीं हो सकती, वहां मकान बनने ही नहीं चाहिए पर जब शहरी जमीन की जरूरत हो तो चाहे जो हो, जोखिम वाले मकान बनाए ही जाएंगे और लोग रहेंगे भी. लोग बाढ़ वाली नदियों के किनारे भी मकान बनाते हैं और पहाड़ों पर भी, जहां बर्फ जमी रहती है. तमिलनाडु की सरकार देश की अन्य सरकारों की तरह है, जो 10-15 साल की नहीं, आज की सोचती है. वह भी आज की मुसीबतों से इतनी घिरी रहती है कि 10-15 साल बाद क्या होगा या सुनामी, भूकंप, बाढ़ अथवा बारिश में क्या होगा, यह सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. जब देश की राजधानी दिल्ली को बढ़ते प्रदूषण और जहरीली होती हवा पर सोचने की फुरसत नहीं तो चेन्नई के पोएस गार्डन यानी जयललिता के घर से क्यों कोई उम्मीद की जाए? फिलहाल तो यही हो सकता है कि यदि आप के रिश्तेदार व दोस्त तमिलनाडु में हैं, तो उन की कुछ सहायता करें. छोटे बच्चे हों तो उन्हें अपने पास बुला लें और रख सकें तो 8-10 दिन रखें. कुछ नएपुराने कपड़े,९९ अन्य सामान अपने परिचितों को दें. कुछ आर्थिक सहायता करें.