समलैंगिक विवाह अब एक अच्छी खासी बहस पैदा कर रहे हैं. स्त्रीस्त्री व पुरुषपुरुष का विवाह वैसे तो विवाह करने वालों का आपसी मामला है पर सदियों से समाज, धर्म और उन के कहने पर राजाओं के कानून लोगों के व्यक्तिगत जीवन को कंट्रोल करते रहे हैं. स्त्री समलैंगिक विवाह 2 जनों की अपनी इच्छा साथ रहने की है और इस से न तो नैतिकता का पड़ता है न सामाजिक कानून व्यवस्था को.
बंद कमरों में कौनकौन क्या कर रहा है, यह किसी की ङ्क्षचता नहीं होनी चाहिए. पर हर समाज, देश और खासतौर पर धर्म इस बात से घुले जाता है कि बंद मकान में क्या हो रहा है. उस की कुछ वजह तो यह कही जाती है कि आसपास के लोगों को अपने बच्चों की ङ्क्षचता होती है कि कहीं वे भी ऐसा न करने लगें पर
ज्यादातर यह तकलीफ उन को होती हैं जिन की रोजीरोटी समाज को एक सीधे
बचे बचाए रास्ते पर चलाने से मिलती है.
एक साधारण विवाह जिस में बच्चे हों धर्म के दुकानदारों के लिए भारी इंकम का सांसे है. पहले तो जीवन साथी की खोज करने के लिए पैसा मिलता है. भारत में तो बहुत मोटा पैसा पंडित कमा लेते है सिर्फ लडक़ेलडक़ी को ढूंढऩे में. ङ्क्षहदुओं में गुंडली बनवाने में ही खूब पैसा मिलता है. फिर उन के दोष निकालने पर पैसा मिलता है.
विवाह के समय लंबीचौड़ी लिस्टें छोटेमोटे अनुष्ठानों की बनती हैं जिन में घर की औरतों के व्यस्त तो रखा ही जाता है, पंडितों को हर बार कुछ न कुछ मिलता है. विवाह बाद बच्चे को पैदा होने के लिए तरहतरह से पूजापाठ किए जाते हैं, पंडितों की हर जगह कमाई होती है. बच्चा गर्भ में आ जाए तो फिर एक लंबी फेहरिस्त तैयार हो जाती है पूजापाठों की जिन में पंडित पुरोहितों का योगदान होता है. आज
के जमाने में इस कमाई में डाक्टर भी आ गए हैं. प्रीनेटेल केयर के नाम पर पैसा मिलने लगा है, वे भी इसी बात में रूचि रखते हैं कि विवाह ऐसे हो जिन में बच्चों हों ताकि यह धंधा बढ़ें. विवाह होता है तो वे विवाद भी होते हैं. इन विवादों में धर्म के दुकानदारों और वकीलों व दोनों की बनती है. स्त्रीपुरुष विवाहों में विवाद ज्यादा होते हैं क्योंकि इसमें एक पार्टनर हावी होता है, दूसरा दबा हुआ. सेमसैक्स मैरिज में भी एकदूसरे
पर हावी हो सकते है पर दोनों लगभग बराबर के से होंगे तो फैसले आसान होंगे और यह बहुतों को मंजूर नहीं है.
सेमसैक्स मैरिज से बच्चे नहीं होंगे तो जनसंख्या नियंत्रण में रहेगी यह पक्का पर फिर भी जो लोग जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना चाहते हैं वे ही इस का विरोधकर रहे हैं. असल में वे बच्चे कला नहीं चाहते 2 से ज्यादा बच्चों के मातापिताओं को गुलामी की लाइन के परे धकेल देना चाहते हैं. उन्हें अपराधी बना
देना चाहते हैं ताकि उन से कैदियों की तरह का काम लिया जा सके. सेमसैक्स मैरिज कितनी होंगी इस का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता पर जहां इन्हें कानूनी मान्यता मिली है वहां भी बहुत नहीं हुई हैं और वहां भी जोड़े फिर बच्चे गोद न लेने में लग जाते हैं, बच्चे पैदा करने की प्राकृतिक आवश्यकता प्रेम पर देरसबेर हावी हो जाती है पर यह फैसला हर जनें का अपना है और किसी को हक नहीं कि इस में दखल दें.
भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस का विरोध कर रही है क्योंकि यह तो आजकल पूजापाठियों की है जो पौराणिक तौरतरीका लाना चाहते हैं जिस में पुत्र जन्म सब से महत्वपूर्ण है क्योंकि वही ङ्क्षपडदान करेगा तो मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलेगी.
भारत सरकार कह रही है कि इस से सामाजिक परेशानियां पैदा होंगी, सैंकड़ों कानूनों को बदलना होगा. ये तर्क निरर्थक है. अगर पुराने कानून किसी तरह व्यक्ति की आजादी को छीनते हैं तो उन्हें बदलने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए.