वस्तुतः हमेशा इस बात का हल्ला मचता रहता है कि हमारे समाज के विकास के लिए लैंगिक समानता बहुत जरूरी है. मन जाता है कि स्त्रीपुरुष के बीच में भेदभाव की सोचसमझ कर एक खाई बनाई गई है. स्त्रियों को सामान अधिकार और पोजीशन नहीं मिलता जिस की वे हकदार हैं. वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा 2017 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स की बात करें तो भारत 144 देशों की सूची में 108 नंबर पर आता  हैं. देखा जाए तो स्त्रीपुरुष समानता की हम भले ही कितनी भी बातें कर लें मगर इस सच से इंकार नहीं कर सकते कि ऐसे कई तथ्य हैं, बातें हैं जो स्त्रियों को कमजोर बनाती हैं या फिर जिन की वजह से वे औफिस को कम समय दे पाती हैं और उन के ओवरआल परफॉरमेंस पर असर पड़ता है.  प्रकृति द्वारा किये गए इस भेदभाव को हम चाह कर भी नकार नहीं सकते. जिन महिलाओं ने इन्हे नकारा वे आगे बढ़ीं. उन्हें बढ़ने से रोका नहीं गया. मगर उन्हें अपवाद ही कहा जा सकता है. सामान्य जीवन में स्त्रियों को आगे बढ़ने में काफी अड़चनों का सामना करना पड़ता है.

1. प्रेगनेंसी और चाइल्ड केयर

प्रकृति ने स्त्री को मातृत्व का सुख दिया है तो साथ में 9 महीने बच्चे को कोख में रखने और फिर दूध पिला कर उसे बड़ा करने की जिम्मेदारी भी दी है. इस दौर से सामान्यतया हर स्त्री को गुजरना होता है. कम से कम जीवन में 2 बार प्रेगनेंसी और 3- 4 दफा अबॉर्शन का दौर तो हर शादीशुदा महिला की जिंदगी में आता ही है. इस दौरान वह कितना भी प्रयास कर ले ऑफिसियल काम के बजाय उस के लिए अपने शरीर और घरपरिवार के प्रति जिम्मेदारियां निभाना ज्यादा जरूरी हो जाता है.

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