कोमल जैसे ही स्लीवलेस टॉप और कार्गो पैंट पहन कर बाहर निकलने को हुई कि उस की सुमन आंटी पीछे से उस की मां को सुनाती हुई बोली,” सविता कुछ अपनी बेटी को भी समझाया कर. देख किस तरह के कपड़े पहन कर जा रही है. मेरी बेटी अगर ऐसी जाती तो उसे घर से निकलने नहीं देती. बुरा मत मानना बहन पर तेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई है लेकिन पहनने ओढ़ने की समझ नहीं है. मैं ने अक्सर देखा है पता नहीं कैसे कटे फटे कपड़े पहन कर निकल जाती है.”

कोमल ने पीछे मुड़ कर देखा. सुमन आंटी उस के घर आई हुई थी और बैठ कर चाय पीते हुए उस पर कमैंट्स कर रही थी. कोमल करीब जाते हुए बोली,” आंटी आप को पता है मैं हमेशा ट्रेंडी और स्टाइलिश कपड़े पहनने पसंद करती हूँ ताकि कहीं भी कॉन्फिडेंस के साथ जाऊं. मैं आज के समय के कपड़े पहन रही हूँ और आप चाहती हो कि मैं आप के समय के कपड़े पहनूं. मगर क्यों? ”

” क्या मतलब तू 18 साल की हो गई है ना. अब तुझे मन नहीं करता सलवार सूट दुपट्टा लेकर बलखाती हुई खूबसूरत सी बन कर जाए. इस तरह के स्लीवलेस कपड़े पजामा या फिर कटे फटे कपड़े पहन अजीब नहीं लगता ?

“ओह आंटी कटे फटे कपड़े नहीं वह आजकल की ट्रेंड वाले कपड़े हैं. स्टाइलिश लगते हैं. ” कोमल ने कहा.

” तुझे लगते होंगे स्टाइलिश मुझे तो भिखारी के कपड़े लगते हैं. मेरी बात मान दो चार ढंग के कपड़े खरीद कर ला और उसे पहन कर निकल. 10 लोग देखेंगे तुझे. पसंद करेंगे. तेरी शादी भी हो जाएगी.” सुमन आंटी अपनी रौ में बोलती गई.

” बस आंटी शादी जरूर हो जाए. जैसा आप ने खुद किया, 17 साल में आप ने शादी कर ली थी. 18 साल में मां बन गई और फिर एक एक करके 4 बच्चों ने जन्म ले लिया. आप की जिंदगी में अब तक क्या रहा? बस खाना बनाना , बच्चे को जन्म देना, उन्हें खिलाना , बड़ा करना और धार्मिक रीति रिवाज निभाना. मैं ऐसी जिंदगी कभी नहीं जी सकती. ”

” उस से अच्छा सुख है क्या औरत की जिंदगी में ? एक औरत तभी पूर्ण बनती है जब वह एक अच्छी मां , अच्छी पत्नी और अच्छी बहू बनती है समझी.” सुमन आंटी अपनी बात पर कायम थी.

” क्यों उसे खुद सुखी रहने का हक़ नहीं है? अपने बारे में सोचने या अपना अलग वजूद बनाने का हक़ नहीं? आप अभी 40 – 45 साल की हो ना पर आप लगते हो 60 की. एक तो आप की पुरानी सोच और एक आप का रहन सहन सब पुरातन पंथी. ” कह कर कोमल गुस्से में चली गई. उस का मूड ऑफ़ हो चुका था.

इधर सुमन आंटी उसकी मां को समझती रही,” देख सविता मैं तुझ से बड़ी हूं ना. तेरे भले के लिए समझा रही हूं. तेरी बच्ची अभी बड़ी नासमझ है. उसे कुछ दुनियादारी की बातें बताओ.”

” अच्छा सुमन बहन वो सब छोड़ो. तुम बताओ एग्जाम में तुम्हारे दीपक के नंबर क्या आए है ? हमारी बेटी ने तो कॉलेज में टॉप किया है”.

” मेरा बेटा भी बहुत तेज है. बहुत जल्दी नौकरी करने लगेगा फिर लड़कियों की लाइन लग जाएगी” सुमन आंटी अपने बेटे के गुण गाने लगी.

इसी तरह मानसी जो हॉस्टल में रह कर पढ़ती है, जब भी घर आती है तो उस की बगल वाली आंटी जरूर चली आती है. फिर उस से खोदखोद कर पूछती है,” वहां हॉस्टल में लड़के तो नहीं आते? तुम लोगों को रात में आने को मना नहीं किया जाता ? तेरा कोई बॉयफ्रेंड तो नहीं? तेरी उम्र हो रही है अब हॉस्टल छोड़ और घर में रह. घर के कामकाज सीख और शादी कर. ”

मानसी चिढ़ कर कहती,” आंटी मेरी जिंदगी है न. मैं जी लूंगी जैसा दिल करे. आप क्यों चिंता करती हो?”

” देख बच्ची तेरे भले के लिए कह रही थी. बाकी तू समझ तेरी मां समझे. ” कह कर वह चली जाती. लेकिन हर बार कुछ इसी तरह के कॉमेंट्स जरूर करती.

दरअसल जितनी चिंता बेटी की शादी, उसके पहनावे, उसकी पढ़ाई लिखाई या उसके कैरेक्टर को ले कर घर में मां बाप को या बड़े भाई बहन को नहीं होती उस से बहुत ज्यादा चिंता अगल बगल की आंटियां करती हैं. ऐसी आंटियां जिन का खुद तो कभी पढ़ाई या नौकरी करने से वास्ता नहीं रहा. जिंदगीभर घर के चौक चूल्हे में सिमटी रही और इस वजह से उनकी सोच भी उतनी ही संकुचित रह जाती है.

संकुचित धार्मिक सोच का असर

उनके पास काम क्या होता है या तो दूसरे के घर में झांकना, दूसरे के बच्चों पर कमेंट करना, पड़ोसियों के अवैध संबंधों की जांच पड़ताल करना, जासूसी करना और दूसरों पर नजर रखना. इसी क्रम में वह अपनी घटिया, संकुचित और रूढ़िवादी सोच दूसरों पर थोपती हैं. अपनी जिंदगी में उन्होंने कुछ किया नहीं और आगे करने की कोई संभावना भी नहीं है. आगे बढ़ती जनरेशन की समझ वे आत्मसात नहीं कर पाती और उन्हें कमेंट करके अपनी फ्रस्ट्रेशन निकालती है कि लड़कियों की जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद शादी है और इसलिए बचपन से ही लड़कियों को चौका चूल्हा सीखना चाहिए , दाब ढक कर रहना चाहिए. मतलब जो सोच एक समय में दादी परदादी की होती थी ऐसी सोच अगल-बगल की आंटियां भी रखती हैं.

वह खुद क्या करती हैं ? वे या तो भजन कीर्तन में चली जाती है या किटी पार्टी में समय बर्बाद करती है. जो थोड़ी पैसे वाली होती है वह किटी पार्टी में समय बर्बाद करती है. जिनकी हैसियत पार्टी अटेंड करने की नहीं है तो वह धार्मिक धर्म कर्म पूजा पाठ में अपना समय लगाती है. उनका समय कटता नहीं तो फिर वह इधर-उधर नजर रखने लगती है. दूसरों के कैरेक्टर के का पोस्टमार्टम करती है और फिर एक दूसरे को चुगली करती है.

दरअसल आंटियों की भी गलती नहीं है. उन्हें शुरू से ही समझाया गया कि धर्म कर्म,, पूजा पाठ चौका चूल्हा बच्चे घर गृहस्ती यही सब उनकी जिंदगी है. उन को हमेशा से धर्म कर्म की कहानी सुनाई गई है. वह इसी पिछली सोच के साथ जीती हैं.

फैशन की समझ नहीं

ऐसी आंटियों को आजकल के फैशन की कोई जानकारी नहीं है. ना ही उन्होंने कभी खुद अपनी जिंदगी में खूबसूरत और स्मार्ट दिखने की कोशिश की. अब उनकी उम्र भी नहीं रही और उम्र अगर है भी तो भी उन्होंने अपने शरीर को इतना बेडौल बना रखा है कि उस पर कुछ जंचेगा नहीं. अपने चेहरे और पर्सनालिटी को इतना बोरिंग बनाया हुआ है कि उन पर कुछ फैशनेबल ड्रेस सूट नहीं करेंगे. वह खुद तो वह सब कर नहीं सकती है फिर दूसरों को कैसे करने दे और फिर उनकी सोच भी संकुचित है. उन्हें पढ़ाई लिखाई से कभी ज्यादा वास्ता रहा नहीं. अच्छे लोगों में उठने बैठने की समझ नहीं. वह तो घर परिवार या अपने जैसी चार-पांच महिलाओं का ग्रुप बनाकर दूसरों पर छींटाकशी करने का काम करती हैं.

खुद भी बदलें

अगर ये आंटियां कोशिश करें तो खुद अपनी जिंदगी भी बदल सकती है. यह किटी पार्टी और कर्म कर्म से ऊपर उठकर कुछ अपनी पर्सनालिटी को सुधारने की कोशिश करती. कुछ ऐसे काम करती की बड़े लोगों मतलब पढ़े लिखे लोगों से संपर्क बनता. अपनी हॉबीज को में अपना समय लगाती और उससे पैसे कमाने का जुगाड़ करती. तरीके तो बहुत है. अगर वह चौके चूल्हे में ही लगी रहती है तो उसी से उठकर वह टिफिन सर्विस का काम कर सकती है. वह अगर पढ़ी-लिखी हो तो बच्चों को पढ़ाने का काम कर सकती है. अगर ड्राइंग , पेंटिंग कहानी कविता वगैरह में रुचि है तो क्रिएटिव काम कर सकती है. वह चाहे तो समाज के लिए कुछ अच्छे काम करके दिखा सकती है. सोशल एक्टिविस्ट बन सकती है. पर नहीं उन को करना क्या है तो दूसरों को आगे बढ़ता देख उनका रास्ता काटना है. दूसरों के बच्चों पर छींटाकशी करना और उन्हें सही रास्ता दिखाने की बात कहते हुए गलत रास्ते पर लाने की कोशिश करना.

कॉन्फिडेंस जरुरी

जब तक एक लड़की ढंग के कपड़े पहनकर निकलेगी नहीं तो उसके अंदर आत्मविश्वास कैसे आएगा? स्टाइलिश ट्रेंडी और खूबसूरत स्मार्ट कपड़े पहन कर या मेकअप कर के लड़कियों में आत्मविश्वास आता है. आज के समय में जब इतना कंपटीशन है तो उस के लिए कम से कम कपड़े तो ऐसे हो कि जिन को लेकर वह अनकंफरटेबल ना हो. हर तरह के काम कर सके. हर जगह आना-जाना कर सके. न कि अपना दुपट्टा और साड़ी संभालती रहे. इसलिए समय आ गया है की आंटियां अपने आप को कहीं अच्छी जगह इंवॉल्व करें ना कि दूसरों पर नजर रखें. कम उम्र की लड़कियों को उनके समय और उनकी उम्र के हिसाब से जीने का मौका दें और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करें ना कि उन्हें बात सुनाएं.

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