हमारी रगरग में यह सोच भरी है कि अगर किसी के साथ कुछ  बुरा हुआ है, तो बुरा करने वाले से ज्यादा दोषी पीड़ित है. यह या तो उस के कर्मों का फल माना जाता है या फिर यह समझा जाता है कि ईश्वर, अल्लाह, भगवान को यही मंजूर था. आमतौर पर पीडि़त से कहा जाता है कि नुकसान से जितना जो बच गया उस के लिए ऊपर वाले को धन्यवाद करे और चुप  बैठ जाओ.  चंडीगढ़ में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की बेटी को रात 12 बजे गाड़ी में अकेले आते देख खुद को साक्षात ईश्वर सम्मत पार्टी के नुमाइंदे मानने वाले  2 युवाओं ने उस की गाड़ी रोकनी चाही. अब इन ‘निर्दोष’ बच्चों  में से चूंकि एक भारतीय जनता  पार्टी के हरियाणा अध्यक्ष का बेटा था, तो दोष तो पीडि़ता का ही  होना चाहिए.

जिस देश का वातावरण ऐसा हो गया है कि आज की हर खराबी के लिए 67 साल के कांग्रेसी राज को दोष दे कर मुक्त हो जाओ, वहां मामला सामने आते ही भाजपाइयों की फौज पीडि़ता से सवाल करने लगी है.  सुरक्षा व्यवस्था में कमजोरी की जिम्मेदारी लेने की जगह  पीडि़ता का इतिहास खंगाला जा रहा है. देश भर के भाजपाई कार्यकर्ता पार्टी की आबरू बचाने के लिए लड़की के मनमरजी के समय घूमने की आजादी पर सवाल उठाने लग गए हैं और उस की आबरू को सरेआम तारतार करने लगे.

यह मानसिकता कोई नई  हीं है और न ही भाजपा की देन  है. यह पुरानी है जिसे कांग्रेसियों  ने खूब पालापोसा पर उसी का नतीजा भाजपा सरकार है. यह मानसिकता समाजवादी पार्टी के शोहदों में भी भरपूर है. देश का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा, जहां पार्टी चाहे  कोई हो, कानून की रक्षा सही ढंग से हो रही हो.  चोर, डाकू, बलात्कारी हर युग में, हर समाज में होंगे. फर्क यहां यह है कि उन्हें सरकारी तौर पर बचाया जा रहा है. तुरतफुरत जमानत दी जा रही है. मुख्यमंत्री मामले को टाल रहे हैं, उसे मामूली घटना बताया जा रहा है.  औरतों को गुलाम मानने और पूजापाठ में बंद रख कर गुलामी  के फूलों की जंजीरों से बांध कर रखने वालों का विचार है कि उन्हें जो जनसमर्थन मिला है वह उन के हर काम को सही सिद्ध करता है. ठीक वैसे ही जैसे जब इंद्र ने अहिल्या का बलात्कार किया था, तो दोषी बन कर अहिल्या पत्थर की शिला बन गई. चंडीगढ़ की लड़की से कहा जा रहा है कि वह दोषी है, शिला बन कर सड़क पर पड़ी रहे और सरकारी ओहदे पर बैठे ‘इंद्र’ को कुछ न कहे.

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