एक नहीं बल्कि यह कई शोध और सर्वेक्षणों से साबित हो चुका है कि आम से आम व्यक्ति अगर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, वह सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों में सक्रिय है और अपने तमाम दूसरे कामों में इंटरनेट की सहायता लेता है तो निश्चित रूप से वह जब भी किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या का शिकार होता है या उसके घर परिवार के लोग होते हैं, तो वह सबसे पहले इस समस्या की बुनियादी जानकारी और इलाज संबंधी जानकारियां डॉ. गूगल से ही जानना चाहते हैं. उसके पास बहुत सारे सवाल होते हैं और उसे डॉ. गूगल से ही इन तमाम सवालों को पूछना आसान लगता है. ऐसा वो लोग भी करते हैं, जो बात-बात पर दूसरों को ऐसा न करने की सलाह देते हैं.

सवाल है क्या लोग यह गलत करते हैं? शायद तब तक नहीं, जब तक उनके सवाल बीमारी की बुनियादी जानकारी तक ही सीमित रहती है. जब लोग डॉ. गूगल से तुरत फुरत यानी रेडिमेड इलाज पूछते हैं और आंख मूंदकर उस पर अमल भी कर लेते हैं, तो समझिये बहुत बड़ा ब्लंडर करते हैं. लेकिन शुरुआती जानकारी खास करके लक्षणों को स्पष्टता से समझने के लिए डॉ. गूगल की सहायता लेना जरा भी गलत नहीं है. लेकिन अगर आप किसी प्रशिक्षित डॉ. से इस संबंध में पूछेंगे तो वह छूटते ही कहेगा कि यह भी गलत है. कोई भी डॉ. नहीं चाहता कि दुनिया का एक भी मरीज अपनी बीमारी के बारे में जानें और किसी और से जाने या तो बिल्कुल ही नहीं जाने. इसलिए पारंपरिक डॉक्टरों ने भी डॉ. गूगल को कुछ ज्यादा ही बदनाम कर रखा है. क्योंकि डॉ. गूगल इन डॉक्टरों की कमायी में आड़े आते हैं.

बहरहाल पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में डॉ. गूगल से जानकारियां हासिल करने और उनके नुस्खों पर अमल करने की बढ़ती संख्या के कारण पूरी दुनिया में आज यह बहस का विषय है कि डॉ. गूगल हमारे स्वास्थ्य के दोस्त हैं या दुश्मन. जाहिर है पढ़ा-लिखा यानी प्रशिक्षित डॉक्टर इसे दुश्मन ही बताता है. लेकिन अब सवाल यह है कि लोग इस दुश्मन डॉक्टर के पास जाते क्यों हैं? इसकी कई वजहें होती है. एक तो डॉक्टरों से अपाॅइंटमेंट पाना आसान नहीं होता. जो जितना प्रसिद्ध होता है, उससे अपाॅइंटमेंट पाना उतना ही मुश्किल होता है. एक तो डॉक्टर मरीज को या आशंकित मरीज को उसकी सुविधा का समय नहीं देते. साथ ही अच्छी खासी फीस चार्ज करते हैं, चाहे मरीज या आशंकित मरीज देने की स्थिति में हो या न हो. जबकि डॉ.गूगल 24 घंटे किसी को भी अपनी सेवा देने के लिए हाजिर रहते हैं और वह भी बिल्कुल मुफ्त.

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जैसा कि हम सब जानते हैं दुनिया में करीब एक तिहाई गरीब लोग इस वजह से गरीब होते हैं कि उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते उनके सारे आर्थिक स्रोत खर्च हो गये होते हैं. डॉ. गूगल के पास न जाने की डॉक्टरों की बार बार दी गई सलाह को इसलिए भी लोग नहीं मानते. एक कारण यह भी है कि जहां कोई डॉक्टर इलाज का सिर्फ एक तरीका और कुछ गिनी चुनी दवाईयों के बारे में ही बताता है, वहीं डॉ. गूगल कई किस्म के इलाजों का विकल्प बताते हैं और तमाम तरह की दवाईयों के बारे में भी बताते हैं, जो सस्ती होती हैं. एक बात यह भी है कि अगर इसी समय किसी बीमारी के बारे में बहुत गंभीर चर्चा छिड़ी हो, उसे बहुत खतरनाक माना जा रहा हो और कोई आम आदमी महसूस करता है कि उसे भी यह बीमारी है, तो ऐसा आदमी भी किसी पड़ोस के डॉक्टर के पास जाने की बजाय डॉ. गूगल के पास ही जाता है. इसमें आशंकित मरीज को यह डर भी होता है कि कहीं उसकी आशंका सच न निकल जाए.

हमें यह मानने में भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि टेक्नोलाॅजी ने हम सबको कामचलाऊ स्मार्ट तो बना ही दिया है. ऐसे में हम किसी पर निर्भर रहने की बजाय डॉ. गूगल से कंसल्ट करना ज्यादा आसान समझते हैं. आजकल शायद ही कोई शख्स हो जो अपनी मेडिकल रिपोर्ट के नतीजे डॉ. गूगल पर चेक न करता हो. इसकी एक वजह लगातार बढ़ता भ्रष्टाचार भी है. आये दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि फलानी लैब में बिना कोई जांच किये जांच रिपोर्ट बना दी या किसी क्लीनिक में तमाम सैंपल फेंक दिये जाते हैं और मनमानी रिपोर्ट दे दी जाती है. इस तरह की घटनाओं और अफवाहों से भी लोग डॉ. गूगल के पास जाना पसंद करते हैं.

कुछ दिनों पहले हुए एक बड़े सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी थी कि डॉ. गूगल से इलाज करवाने में महिलाएं पुरुषों से कहीं आगे हैं. इस सर्वे के मुताबिक 25 प्रतिशत महिलाओं ने डॉ. गूगल के बताय रास्ते पर चलकर अपने लक्षणों का गलत नतीजा निकाला और न सिर्फ खुद को गंभीर रूप से बीमार मानकर अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ किया बल्कि परिवार को भी सांसत में डाला. आम तौरपर जिन बीमारियों को लेकर आम इंटरनेट सैवी गलतफहमी का शिकार होता है, वे बीमारियां कुछ यूं हैं- ब्रेस्ट कैंसर तथा दूसरे तमाम किस्म के कैंसर, वैजाइनल इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, आर्थराइटिस, डायबिटीज, सेक्सुअल हेल्थ प्राॅब्लम्स और थायराॅइड जैसी प्राॅब्लम्स को लेकर आम लोग हमेशा चिंतित रहते हैं और इन्हीं चीजों में सबसे ज्यादा डॉ. गूगल का सहारा लेते हैं.

डॉ. गूगल की ज्यादा मदद लेने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाओं ने माना है कि कुछ ऐसी हेल्थ प्राॅब्लम्स होती हैं, जिन्हें वो परिवार या दोस्तों की बजाय डॉ.गूगल से बताने में अधिक सहजता महसूस करती हैं. 50 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि ऐसी हेल्थ प्राॅब्लम्स, जिसे दूसरी को बताने में उन्हें शर्म आती है, उसका इलाज करने की जो खूब कोशिश करती है. ऐसे एक सर्वे के मुताबिक डॉ. गूगल का इस्तेमाल करने वाले आम लोग खुद ही मेडिकल स्टोर से दवा खरीदकर अपना इलाज शुरु कर देती हैं. हालांकि अभी तक कोई नहीं जानता कि इस तरह के इलाजों का कितना बुरा नतीजा भी हो सकता है. क्योंकि जरूरी नहीं होता कि इंटरनेट पर दी गई सारी जानकारी सही ही हो. बहुत सी बोगस वेबसाइट्स महज अपने प्रोडक्ट्स की बिक्री के लिए ऐसी सनसनीखेज खबरें प्रकाशित करती रहती हैं.

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कहने का मतलब यह कि डॉ. गूगल वाकई खतरनाक है. मगर सवाल है कि क्या यह बात आम लोग नहीं जानते? निश्चित रूप से जानते हैं और कोई भी जो इस सच को जानता है, खुद को इसके चक्रव्यूह में नहीं फंसाना चाहता. मगर मजबूरी यह है कि वास्तविक डॉक्टर यानी डिग्रीधारी पढ़े लिखे डॉक्टर आम आदमी को अपनी जानकारियां देने के एवज में उन्हें इतना लूटता है कि न चाहते हुए भी वो डॉ. गूगल के चक्रव्यूह में फंस जाता है. इसलिए डॉ. गूगल की आलोचना करने वाले पूरे दुनिया के डॉक्टर ईमानदारी से यह स्वीकारें तो कि लोग डॉ. गूगल के पास इसलिए जा रहे है. क्योंकि असल डॉक्टर उन्हें जीने ही नहीं दे रहा.

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