सोने के गहने खरीदने का हक हर औरत का एक बुनियादी हक है. यह न केवल उस के व्यक्तित्व को बल देता है, यह वह संपत्ति है जिसे वह पति, सास, बच्चों से छिपा कर रख सकती है, चुपचाप खरीद कर आड़े समय बेच सकती है. जिस औरत के पास सोना है, स्वाभाविक है या तो उस ने अपनी कमाई से खरीदा होगा या पति अथवा पिता की कमाई से.
काले धन पर अंकुश लगाने के नाम पर अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी को यह हक वोटरों ने हरगिज नहीं दिया कि वे औरतों के इस मूलभूत हक को छीन लें. अब जो नियम आयकर और सोने की बिक्री के लिए बने हैं उन में क्व50 हजार की सोने की खरीद से ज्यादा पर खरीदार महिला को घर का पूरा चिट्ठा दुकानदार को देना होगा ताकि वह सैकड़ों अफसरों की फाइलों में जमा हो सके. औरत की निजी प्राइवेट सुरक्षा को कानून की एक कलम से कुचल दिया गया है.
यह असल में औरतों के आर्थिक बलात्कार की श्रेणी सा है. आज नकदी तो सुरक्षित है ही नहीं, अब सोना भी औरत की सुरक्षा नहीं रहा है. नोटबंदी के बाद सरकार की हिम्मत बढ़ गई है कि वह औरतों की साडि़यों के पीछे छिपी नकदी को या तो रंगीन कागज बना सके या उसे बदलवाने के लिए लाइनों में खड़ा होने को मजबूर कर सके और उस की छिपी संपत्ति का रहस्य खुलवा सके. ऊपर से सोने की खरीदफरोख्त पर तानाशाही हमला कर के सरकार ने नादिर शाह की लूट को भी कम कर दिया है, तब कम से कम जमीन में गड़ा धन तो बचा था पर अब सरकार ने उसे भी बेकार कर दिया है.