नरेंद्र मोदी सरकार को एक के बाद एक अपने भगवा एजेंडों को लागू करने की कोशिशों से पीछे हटना पड़ रहा है. सब से नया कदम लैटरल ऐंट्री सिस्टम में अफसरों की नियुक्ति है जिस में सरकार विज्ञापन दे कर प्राइवेट सैक्टर या पब्लिक सैक्टर के विशेषज्ञों को केंद्र सरकार के मंत्रालयों में बहुत ऊंची पोस्टों पर 5 साल या इस से ज्यादा समय के कौंट्रैक्ट पर रखती थी.
ये अपौइंटमैंट्स हालांकि होती यूपीएससी के मार्फत ही हैं पर इन में न तो अनुच्छेद 311 के संवैधानिक आरक्षण की व्यवस्था है और न ही कोई परीक्षा होती है. जिन पोस्टों पर ये लोग काम करने को नियुक्त किए जाते हैं उन के समकक्ष काम कर रहे अफसर जवानी से सरकारी नौकरी में हैं और आरक्षण का लाभ या आरक्षण के शिकार, जैसा जो चाहे उस से कटे होते हैं.
इन लैटरल ऐंट्री अफसरों को एक तरह से प्रधानमंत्री खुद नियुक्त करते रहे हैं क्योंकि 2018 के बाद जब से यह प्रक्रिया शुरू हुई है किसी और मंत्री की तो हैसीयत ही नहीं थी कि वह किसी की सिफारिश कर दे.
इस लैटरल ऐंट्री द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मंत्रालय में अपना जासूस अधिकारी नियुक्त कर रहे थे जो उन की निजी नीतियों को लागू करे जिन में अधिकांश कट्टर हिंदू सोच वाले फैसले करने होते थे. लोकतंत्र में स्वतंत्र नौकरशाही को, जिस संवैधानिक सुरक्षा अनुच्छेद 311 से प्राप्त है, इस लैटरल ऐंट्री ने समाप्त कर दिया था. 17 अगस्त को जब यूपीएससी ने 45 और स्थानों के लिए विज्ञापन दिया जिस में कई तकनीकी मंत्रालयों में नियुक्ति होनी थी, हंगामा मच गया.