कोविड-19 के आंकड़ों के साथसाथ इस समय पैट्रोलडीजल के दामों के आंकड़े भी बेहद बुरी तरह बढ़ रहे हैं. सरकार तीनों फ्रंटों पर बुरी तरह फेल हुई, वास्तविक देश के फ्रंट की तो बात ही न करें.
देश में डीजल और पैट्रोल के दाम विदेशों में इन के दाम बढ़ने से ऊपर नहीं जा रहे, ये सरकारी करों के कारण ऊपर जा रहे हैं. जैसे अंगरेज और जमींदार अकाल में भी लगान वसूल करते रहे हैं, हमारी लोकप्रिय सरकार भी हर बात को मुमकिन करते हुए डीजल और पैट्रोल के माध्यम से खाली हुई जेबों से आखिरी पैसे भी झटक रही है. घरेलू गैस के दाम भी बढ़ रहे हैं.
सरकार कोशिश कर रही है कि राम मंदिर, धारा 370 और नागरिक संशोधन कानून से जो मालामाल उस ने आम जनता को किया है,
उस का एक हिस्सा तो वह वसूल ले. पैट्रोल व डीजल के दामों में बढ़ोतरी किस तरह आम आदमी की जेब पर भारी पड़ती है यह बताना जरूरी नहीं. ये अब विलासिता की वस्तुएं नहीं, आवश्यकताएं हैं, जिन से बचना संभव ही नहीं है. यह पूरे घर को हिला कर रख देने वाली वृद्धि है.
कोविड-19 की वजह से वैसे ही लोगों को अपने छोटेबड़े घरों में दुबक कर रहना पड़ रहा है. अब न मित्रों से मिलना हो रहा है
न रिश्तेदारों से और न ही पड़ोस के बागों में घूमना. अपने वाहन पर थोड़ा टहलना काफी सुरक्षित है
पर सरकार इस पर भारी टैक्स लगा कर इस सुख को भी छीन रही है.
सरकारी खजाने में पैसे की कमी है तो सरकारी बरबादी को बंद करना चाहिए. राजनीति और सरकारी नौकरी में लोग जाते ही इसलिए हैं कि वहां सरकार जनता का पैसा जम कर लुटाती है. सरकार की हिम्मत नहीं है कि वह अपने लोगों पर कोई अंकुश लगा सके. उसे तो वह जनता मिली हुई है, जो विरोध करनाभूल चुकी है. उसे धर्म का झुनझुना दे कर चुप कराना अब एकदम आसान है.
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