पार्किंग की समस्या सारे देश में गंभीर होती जा रही है. पहले खातेपीते घरों में एक कार होती थी, अब खातेपीते घर वे हैं, जिन में हर सदस्य के लिए एक कार है और सदस्यों में 2 साल के बच्चे भी शामिल हैं. घरों में तो पार्किंग की सुविधा दशकों पहले हुआ करती थी, अब तो सड़कों पर भी नहीं है और देश को मंदिर बनाने से फुरसत हो तो पार्किंग बनाए न.
घर बनाते हुए पार्किंग की सुविधाएं जुटाना एक आफत और खर्चीला काम है पर अब जरूरी हो गया है. मगर हमारे नीतिनिर्धारक भूसे में कुत्तों की तरह बैठे रहते हैं और न करते हैं न करने देते हैं. अगर घरों में 2 मंजिला तहखाने और ऊपर 2 मंजिलों में पार्किंग के लिए अनुमति दे दी जाए तो बहुत लोग पार्किंग तैयार करना शुरू कर देंगे. किराए पर देने की इजाजत हो तो वे बाहरी लोगों को भी दे देंगे बशर्ते कि कौरपोरेशन और पुलिस वाले हिस्सा मांगने न आ जाएं.
उसी तरह मौल्स, स्टोरों, सिनेमाघरों, अस्पतालों को भरपूर पार्किंग की जगह बनाने की छूट दे दी जाए तो समस्या का हल निकल सकता है. आखिर लोगों ने कच्ची झोंपडि़यों की जगह सीमेंट के पक्के मकान बनाने की आदत भी तो डाली ही है. पेड़ के नीचे बैठ कर बतियाने की जगह लोगों ने पक्के कौफी कैफे डे, फूड कोर्ट व क्लब बनाए ही हैं. जरूरत हो तो सब कुछ संभव हो सकता है पर सरकार जहां बीच में हो तो समझ लो कुछ भी नहीं हो सकता. यह न भूलें कि गृहिणियों को पार्किंग की सुविधाअसुविधा का सामना ज्यादा करना पड़ता है. दफ्तरों में तो इस काम के लिए आदमी रख दिए जाते हैं पर गृहिणियों के लिए पड़ोसिन से इस बारे में विवाद के लिए खड़ा हो जाना पड़ जाता है.