किराए की कोख पर कानून बना कर सरकार ने औरतों के शरीर पर उन के अपने हक को एक बार फिर कम किया है. गर्भपात पर नियंत्रण, अल्ट्रासाउंड पर कंट्रोल, शरीर दिखाने को अश्लीलता कहना आदि औरतों के निजी हकों को कम करना है और किसी समाज और सरकार को मूलभूत तौर पर इस तरह के कानून एक जैंडर के लिए बनाने का खुद को हक देना गलत है.
जरा गिनती कर के बताइए कि इस प्रकार के कितने कानून आदमियों के बारे में हैं? क्या दौड़ने की गति सीमा तय करने वाला कोई कानून आदमियों पर लागू होता है? क्या अपने सिक्स पैक बनाने पर कानून बनाएगी सरकार? आदमी सिर्फ लंगोट पहने कहीं भी घूम सकते हैं पर औरतें नहीं.
कोख को किराए पर देने पर कानून में चाहे कहा जाए कि यह औरतों की सुरक्षा के लिए है ताकि उन का व्यापार न किया जाए पर इस बहाने उन की एक आय पर अंकुश लगा है.
औरत की कोख आराम से जीवन में 10-12 बच्चे जन सकती है. अगर उसे सही मुआवजा मिले तो कोख में किसी और के भू्रण को रखने में क्या हरज है? यह कोई जोरजबरदस्ती का मामला नहीं है. यह बलात्कार भी नहीं है.
यह तो टैस्ट ट्यूब बेबी वाला मामला है, जिस में पुरुष शुक्राणु और महिला एग को बाहर लैब में फर्टिलाइज किया जाता है और फिर किसी तीसरी की कोख में डाला जाता है. किराए पर कोख देने वाली को पता भी नहीं होता कि यह बच्चा है किस का.
ठीक है इस तरह का काम धंधे का रूप ले चुका है पर बहुत काम हैं जो धंधे की शक्ल ले चुके हैं. धर्मांध मानते हैं कि विवाह के जोड़े ऊपर वाला बनाता है पर कोनकोने में विवाह बिचौलिए दिख जाएंगे. धर्मांध कहते हैं कि ईश्वर सब कुछ जानता है पर हर गली के नुक्कड़ पर धर्म का धंधा करने वाली दुकानें दिख जाएंगी, जो जोरशोर से ढोलनगाड़े पीट रही होंगी कि और ग्राहक आएं.
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