डाक्टर युवक, डाक्टर युवती. दोनों ने 2017 में विवाह किया. 2018 में झगड़ा हो गया. आज 2022 में भी वे अदालतों के बरामदों में खड़े है क्योंकि हमारा तलाक कानून बेहद क्रूर है और बिना चिंता किए अलग हुए पति और पत्नी के कठोर सजा देना है. 2018 में ही पत्नी की पति से नहीं बनी तो वह बर्दवान, पश्चिमी बंगाल से चली गई और पिता के घर शामली, उत्तर प्रदेश आ कर रहने लगी. पति ने बर्दवान में फैमिली कोर्ट में तलाक का दावा कर दिया. अब 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की एप्लीकेशन पर मामले को शामली में ट्रांसफर कर के एक जीत तो पत्नी को पकड़ा दी पर किस कीमत पर? उस के 4 साल तो अदालतों के चक्करों में गुजर ही चुके हैं.
अब मामला शामली कोर्ट में चलेगा और पति बर्दवान से आएगा. 5-7 साल बाद फैसला होगा. दोनों में से एक उच्च न्यायालय जाएगा. अगर बीच में कोई फैसला नहीं हुआ तो फिर सुप्रीम कोर्ट जाना हो सकता है.
इस बीच दोनों की डाक्टरी तो प्रभावित होगी ही, बालों के रंग सफेद होने लगेंगे. बैंक बैलेंस वकीलों, रेलों, हवाई जहाजों और टैक्सियों के खातों में शिफ्ट होने लगेगा. बच्चे पैदा कर के सुखी परिवार के सपने भी देखने बंद हो जाएंगे. कानूनी घटाघोप अंधेरा उन की िजदगी पर रहेगा. जब कुछ घंटों में शादी हो सकती तो तलाक के लिए इतनी मुश्किल क्यों खासतौर पर तब जब दोनों के कोई बच्चा भी न हो. पहली अदालत पहले आवेदन पर बिना दूसरे पक्ष की सुने आखिर तलाक क्यों नहीं दे सकती? क्या नुकसान हो जाएगा अगर एक की ही शिकायत पर उन्हें मुक्त कर दिया जाए. जब दोनों में से एक भी साथ रहने को तैयार नहीं तो शादी की इन अदृश्य जंजीरों पर कानूनी ताले क्यों लगे रहें?