कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म आई थी शुभ मंगल ज़्यादा सावधान उसमें के समलैंगिक जोड़े को अपनी शादी के लिए परिवार समाज और माता पिता से संघर्ष करते हुए दिखाया था वो कहीं न कहीं हमारे समाज की सच्चाई और समलैंगिकों के प्रति होने वाले व्यवहार के बहुत करीब थी.

अब जबकि समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं रही है ऐसे में समलैंगिक लोग खुलकर सामने आ रहे हैं . पहले अपने रिश्तों को स्वीकारने में ऐसे जोड़ों को जो झिझक होती थी अब वो कम हुई है. कानून कुछ भी कहे पर समाज में अभी भी ऐसे जोड़ों को स्वीकृति नहीं मिली है. लोग ऐसे जोड़ों को स्वीकारने में संकोच करते हैं क्योंकि उनके मन मे इन लोगों को लेकर कई प्रकार की धारणाएँ और पूर्वाग्रह हैं. कुछ ऐसे ही मिथकों के बारे में हम बता रहे हैं.

मिथक-ये वंशानुगत है

सच-समलैंगिकता वंशानुगत नहीं होती है इसके लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं. कई लोग बचपन से ही अपने माँ या पिता या भाई बहन पर भावनात्मक रूप से निर्भर रहते हैं इसके कारण उनकी रुचि पुरुष या महिलाओं में हो सकती है और वो समलैंगिकता अपना सकते हैं. जेंडर आइडेन्टिटी डिसऑर्डर भी इसकी एक वाजिब वजह है. ये एक ऐसी बीमारी है जो समलैंगिकता के लिए जिम्मेदार है. इस बारे में कई थ्योरी हैं जिनके आधार पर बात की जाती है. अभी सही सही कारणों का पता तो नहीं लग पाया है फिर भी ये मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि समान सेक्स के लिए शारीरिक आकर्षण अप्राकृतिक तो नहीं है.  वैसे भी स्वभाव से मनुष्य बाइसेक्सुअल होता है ऐसे में उसकी रुचि किसी मेभी हो सकती है. डॉ रीना ने बताया कि मेरे पास आने वाले जोड़ों में किसी के घर मे कोई समलैंगिक नही था. उनके अनुसार किसी को समलैंगिक बनाया नहीं जा सकता है . समलैंगिक होना भी उतना ही स्वाभाविक है जितना एक स्त्री और पुरुष के बीच का रिश्ता़ें.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...