सरकार को गहनों से लदीफंदी औरतों से बहुत चिढ़ है. वर्षों से आयकर विभाग की निगाहें औरतों के गहनों पर ही रही हैं और जब भी किसी अमीर के घर पर आयकर विभाग छापा मारता है, तो अफसरों की निगाहें औरतों के गहनों पर ही रहती हैं और उन्हें ही जब्त कर के मालखाने ले जाया जाता है. पतिदेव के तो कागज ही होते हैं जो जाते हैं. अब नीरव मोदी से जिन्होंने पिछले सालों में गहने खरीदे थे, उन से पूछताछ हो रही है भले, चैक दे कर भुगतान करा था या नक्द. यह सरासर ज्यादती है. पत्नी को इस से कोई सरोकार नहीं कि उसे जो गहने मिले वे पति के सफेद पैसे से खरीदे गए थे या काले पैसे से. उसे तो जेवरों से मतलब है. उस के जेवर सुरक्षित रहने चाहिए और हरगिज मालखाने की शोभा नहीं बढ़ानी चाहिए.
आजकल आयकर विभाग पहले के राजाओं के कारिंदों की तरह औरतों के गहने जब्त कर ले जाता है. यदि उन की रसीद भी दिखा दी जाए कि ये निहायत सफेद पैसे से खरीदे गए थे तो भी उन्हें यह कह कर ले जाते हैं कि ये वही गहने नहीं हैं जो ज्वैलर से मिली रसीद में लिखे हैं. अगर मां या सास ने पुश्तैनी जेवर दिए थे तो वे तो आयकर विभाग के अनुसार काले स्याह ही हैं. वह मांग करने लगेगा कि डिक्लेयर क्यों नहीं किए? अरे भई, डिक्लेयर तो कितनी ही शादियों में किए थे. अब मैली सरकारी फाइलों के लिए क्या जरूरी है कि संपत्ति कर की रिटर्न में दर्ज किए जाएं? जेवर वैसे भी संपत्ति नहीं हैं. ये तो सजावटी होते हैं, दिखाने के लिए. इन की महत्ता तो रोब डालने की होती है पर सत्यानाश हो सरकार का कि वह इन्हें पाप समझती है.