घरेलू हिंसा की घटनाएं सालों से चली आ रही है, लेकिन इसमें कमी जितनी आनी चाहिए थी, उतनी नहीं आई है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाईजेशन द्वारा प्रकाशित अनुमानों से संकेत मिलता है कि विश्व स्तर पर लगभग 3 में से 1 (30%) महिलाएं अपने जीवनकाल में या तो शारीरिक या सेक्सुअल इंटिमेट पार्टनर वायलेंस या नॉन पार्टनर सेक्सुअल वायलेंस की शिकार हुई हैं. इस हिंसा में से अधिकांश इंटिमेट पार्टनर वायलेंस है. दुनिया भर में, 15-49 वर्ष की उम्र की लगभग एक तिहाई (27%) महिलाएं, जो किसी रिश्ते में रही हैं, उन्हें ही अपने इंटिमेट पार्टनर के द्वारा किसी प्रकार की शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा है, जो उनके शारीरिक, मानसिक, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है और कुछ स्थितियों में एचआईवी होने का खतरा बढ़ सकता है.
असल में महिलाएं बाहर आकर अपने साथ हुए हिंसा को कहने से शर्माती है. पढ़े – लिखे समाज की महिलाएं ही इसकी अधिक शिकार हो रही है, इसलिए मेरी कोशिश है कि महिलाएं खुद अपने अधिकार को समझे, किसी भी हिंसा से बाहर निकलकर अपने अधिकार को लें और अच्छी जिंदगी जिये, कहती है 27 साल से काम कर रही साक्षी एनजीओ की सोशल वर्कर स्मिता भारती. उन्होंने घरेलू हिंसा और यौन उत्पीडन की शिकार महिलाओं के लिए विशाखा वर्सेज स्टेट ऑफ़ राजस्थान, साक्षी वर्सेज यूनियन ऑफ़ इंडिया पिटीशन दायर किया, जिसके तहत विशाखा गाइड लाइन्स 1997 में निकाला. इसके बाद पॉश (2013) और सेक्सुअल असाल्ट बिल (2010) पोक्सो (2012 )अमेनमेंट पास हुआ, जो महिलाओं के हित के लिए बनाया गया है. उनका उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना नहीं, बल्कि अधिकार के साथ जीना है. उनके इस काम में उनके दोनों बच्चे और दोस्त सभी साथ देते है.
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