बैंक आजकल मोटा मुनाफा कमा रहे हैं जबकि उन के ग्राहक चाहे आम घरेलू गृहिणियां हों या बड़े कौरपोरेट, पैसेपैसे को स्ट्रगल कर रहे हैं. यह मोदी सरकार की फाइनैंशियल नीतियों का नतीजा है जो 2016 की नोटबंदी से शुरू हुआ था. लोगों के हाथों से पैसा छीन जबरन बैकों में डलवा दिया गया जहां सेविंग बैंक में नाममात्र का ब्याज दिया जाता है पर लोन देने पर बैंक चमड़ी उधेड़ लेते हैं. क्रैडिट कार्डों पर 35-40% से भी ज्यादा ब्याज वसूला जाता है और जमा राशि पर 4% का ब्याज दिया जाता है तो मुनाफा होगा ही.

एक तरह से हमारे बैंक मंदिरों की तरह हो गए हैं. जनता को कहा जाता है कि अगले जन्म या भविष्य को सुरक्षित करना है तो मंदिर में चढ़ावा चढ़ाओ और भूल जाओ, तुम्हारा भविष्य अपनेआप अच्छा हो जाएगा. बैंक मिनिमम बैलेंस, केवाईसी, मिसमैच सिग्नेचर, अनऔपरेटिव अकाउंटों के नाम पर सालों ग्राहकों का पैसा दबाए रखते हैं, बिना ब्याज दिए और फिर कहते हैं कि हम ने अपनी कुशलता से मुनाफा कमाया.

हमारे देश में पैसा कमाने का सब से बड़ा और अच्छा तरीका एक तो महाजनी है और दूसरा लौटरी या सट्टा बाजार चलाना. बैंक दोनों में सीधे या इनडाइरैक्टली लगे हैं. बैंकों के एजेंट इंश्योरैंस या डिपौजिट प्लान बेचते समय वे सपने दिखाते हैं कि हजारों जमा करें, करोड़ों हो जाएंगे. बहुत से ग्राहक कागज भूल जाते हैं, सिग्नेचर बदल जाते हैं, मृत्यु हो जाती है. इन मामलों में बैंकों के पास पैसा मुफ्त का जमा रह जाता है.

बैंकों के बिना इकौनौमी की कल्पना नहीं की जा सकती पर वे कस्टमर फ्रैंडली बनें यह बहुत जरूरी है. रिजर्व बैंक औफ इंडिया का हवाला दे कर ग्राहकों का पैसा दबा लेता लेना या छोटेछोटे कामों के लिए फीस लेना एक गलत काम है पर यही छोटामोटा पैसा बड़ा हो कर बैंकों के 3 लाख करोड़ रुपए का मुनाफा बन गया है. मोदी सरकार ने लोगों को जबरन बैंकों की ओर धकेला है, उन की जेब से नक्द निकाल कर.

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