पति-पत्नी में मनमुटाव और झगड़ा होने पर जहां दोनों के परिजन, पड़ोसी, रिश्तेदार तलाक लेने की सलाह देने में देर नहीं लगाते, वहीं तलाक हो जाने पर मायके लौटने वाली लड़की कुछ ही सालों में मां-बाप और भाइयों को बोझ लगने लगती है. अगर वह खुद अपने पैरों पर नहीं खड़ी है तो इस बोझ से सभी जल्दी ही छुटकारा पाना चाहते हैं.

रश्मि के पिता ने ऋषभ से उसकी शादी के वक्त जहां लड़के का रंग-रूप, व्यवहार, घर-परिवार, कमाई सब ठोंक बजा कर देखा था, वहीं अब वह चाहते हैं कि जो भी लड़का उसकी तलाकशुदा बेटी का हाथ थामने को तैयार हो जाए, वह उसके अहसानमंद रहेंगे. अब वे लड़के का रंग-रूप, कद-काठी, आय, परिवार की ज्यादा जानकारी नहीं चाहते, बस यह चाहते हैं कि किसी तरह कोई भी ऐसा लड़का मिल जाए जो ज्यादा दहेज की मांग किये बिना उनकी लड़की को ब्याह ले जाए. वहीं रश्मि के दोनों भाई अपनी-अपनी बीवी-बच्चों के साथ ही बिजी रहते हैं. रश्मि के खर्चे के लिए एक पैसा उनकी जेब से नहीं निकलता. कहते हैं कि उनकी तनख्वाह में उनके अपने खर्चे पूरे नहीं होते, बहन का खर्चा कहां से उठाएं. ऐसे में रश्मि को भी समझ में आने लगा है कि बिना नौकरी किये उसका गुजारा मायके में होना मुश्किल ही है.

अनुभव दिखाते हैं कि शादी टूटने पर अकसर पत्नी को भयंकर आर्थिक समस्या से जूझना पड़ता है. जल्दी से जल्दी आत्मनिर्भर होना उनके सामने बड़ी चुनौती होती है. अगर उसके साथ उसके बच्चे भी हैं तो यह समस्या और बड़ी हो जाती है. कई बार आपसी समझौते के तहत हुए तलाक में पति की ओर से मिले मुआवजे की राशि इतनी नहीं होती कि उससे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा किया जा सके. वहीं मुस्लिम समाज में तो हालत और बदतर है. वहां तलाक के बाद बस मेहर की रकम ही लड़की को लौटायी जाती है. यह राशि आम भारतीय परिवारों में पांच सौ रुपये से लेकर कुछ हजार तक ही होती है. ऐसे में खुद का और अपने बच्चों का पालन पोषण करने के लिए तलाकशुदा लड़की का नौकरी करना लाजमी हो जाता है. इसके लिए शैक्षिक योग्यता और अनुभव की मांग होती है.

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