चेहरा व्यक्तित्व को संवारता है. दिन की शुरुआत हम अपने चेहरे की खूबसूरती को देख कर ही करते हैं. लेकिन यही चेहरा अगर ऐसा हो, जिसे देख कर आप खुद ही दुखी हो जाएं, तो फिर आप क्या करेंगी? क्या आप अपनेआप को दोषी ठहराएंगी या फिर परिवार, समाज या आसपास के लोगों को, जो हर बार आप को याद दिलाते रहते हैं कि आप उन से अलग हैं, कुरूप हैं?

आप का चेहरा देखने पर उन का दिन खराब हो जाता है. तरहतरह के ताने आप को सुनने पड़ते हैं. आप का घर से निकल कर आजाद घूमना बंद हो जाता है. कोई आप से बात नहीं करता. परिवारदोस्त सब आप से किनारा करते हैं.

मगर क्या किसी ने उसे जलील किया, उसे टोका जिस की वजह से आप की ऐसी दशा हुई? आप की इच्छा के बिना, आप ऐसी जिल्लत की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. कोर्टकचहरी से ले कर आम इनसान तक उस व्यक्ति के गुनाह को भुला देता है. लेकिन अगर आप में हौसला है, तो आप उस कठिन स्थिति का सामना हिम्मत से कर सकती हैं. खुद को सभी के आगे मजबूत कर सकती हैं.

इन की हिम्मत का जवाब नहीं

ऐसी ही सच्ची घटना की शिकार हुई थी 1 महीने की शब्बो, जो आज 21 साल की हो चुकी है और एक कौल सैंटर में काम करती है. वह महीने में 12 हजार कमा कर आत्मनिर्भर हो चुकी है और अकेले मुंबई में रहती है.

सीढि़यों से चढ़ कर जब छरहरी शब्बो सामने आई तो उस का खिला चेहरा और होंठों पर लगी लाली उस की खुशहाली को बयां कर रही थी. हंसती हुई वह बगल में बैठ गई. उस के चेहरे का आधा हिस्सा ऐसिड अटैक से पूरी तरह खराब हो चुका है. उस की एक आंख में रोशनी नहीं है. लेकिन वह आत्मविश्वास से पूरी तरह भरी हुई थी.

उसे अपने बारे में बात करने से किसी तरह की हिचक नहीं थी. उस के काम और उस की इस हालत के बारे में पूछे जाने पर वह बताती है, ‘‘जब मुझे कोई काम नहीं मिल रहा था तो स्वात कंपनी की प्रीति अरोड़ा मैडम ने मुझे अपनी कंपनी में काम दिया. मुझे बहुत अच्छा लगा. अपनी जौब छूटने के बाद मैं दूसरा काम ढूंढ़ रही थी. फेस की वजह से काम नहीं मिल रहा था.

‘‘ऐसिड अटैक फाउंडेशन चलाने वाली प्रणाली शाह ने मुझे प्रीति मैडम का नंबर दिया और कहा कि वे ऐसिड सर्वाइवर और डिसैबल्ड को काम देती हैं. मैं ने कौंटैक्ट किया. इंटरव्यू हुआ और मैं चुन ली गई. यहां सब फ्रैंड की तरह हैं.

पहले दिन से ही मुझे सब का अच्छा व्यवहार मिला. कभी किसी ने मेरे चेहरे का मजाक नहीं उड़ाया. हम सब साथ मिल कर काम भी करते हैं और घूमने भी जाते हैं.

संघर्ष जैसे जीवन का हिस्सा बन चुका

‘‘मैं ने अपना सुंदर चेहरा कभी नहीं देखा है पर अब देखना चाहती हूं. इसलिए सर्जरी करवा रही हूं. अपनी इस हालत की दोषी मैं नहीं, मेरे पिता हैं, जो जेल में हैं. जब मैं 1 महीने की थी. एक दिन मैं मां की गोद में थी, तभी मेरे पिता ने मेरी मां पर गुस्से से ऐसिड फेंक  दिया. उस का कुछ भाग मेरे चेहरे पर आ पड़ा.

मुझे बताया गया कि मां की मृत्यु उसी दौरान हो गई थी और पापा जेल चले गए थे. मुझे कुछ पता नहीं था. 5 साल तक मैं सायन हौस्पिटल में थी. इस के बाद बगल में स्थित अनाथालय श्री मानव सेवा संघ में मुझे डाल दिया गया. मेरी पढ़ाईलिखाई सब कुछ वहीं से हुआ. मुझे पढ़ने का बहुत शौक था.

‘‘एक बार जब मेरा आई क्यू टैस्ट किया गया तो मेरा टैस्ट काफी अच्छा निकला. पहले मुझे अलग स्कूल में डालने की सब की इच्छा थी, लेकिन प्रिंसिपल ने पाया कि मेरी बुद्घि साधारण बच्चों की तरह है. फिर मुझे नौर्मल स्कूल में ऐडमिशन मिला. मैं पढ़ाई में बहुत होशियार थी. हर तरह के क्विज में भाग लेती थी. अनाथालय के प्रैसिडैंट मुझे बहुत बढ़ावा देते थे. इस से मुझ में आगे बढ़ने की इच्छा पैदा होती गई. इस के बाद मैं ने मुंबई की प्रसिद्घ कालेज एसएनडीटी स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

आत्मनिर्भर होने का एहसास

शब्बो को पढ़ाई पूरी करने के बाद से एक अच्छी कंपनी में जौब मिल गई. लेकिन कुछ औफिस कर्मचारियों के आपत्ति करने पर उसे वहां से निकाल दिया गया. वह नम आंखों से कहती है, ‘‘वे कहते थे कि सुबहसुबह ऐसी सूरत देखने से पूरा दिन खराब जाता है. इसलिए 2 महीनों में ही मुझे निकाल दिया. लेकिन मैं क्या करूं? यह मेरी गलती तो नहीं कि लोग मुझे ऐसा कहते हैं.’’

इतना ही नहीं शब्बो पढ़ाई के दौरान भी कई प्रकार की समस्याओं से गुजर चुकी है. वह हंसती हुई कहती है, ‘‘मैं पढ़ने में होशियार थी, पर कोई मुझ से दोस्ती नहीं करता था. मैं अपनी क्लास कभी मिस नहीं करती थी और मेरा काम हमेशा पूरा रहता था. लेकिन जो लड़कियां कालेज बंक करती थीं, उन्हें मेरे नोट्स की जरूरत पड़ती थी. इस तरह धीरेधीरे वे मेरी दोस्त बन गईं.’’

जौब के बाद लाइफ कितनी बदली है? यह पूछे जाने पर शब्बो बताती है, ‘‘अब मैं काम करती हूं, वेतन मिलने पर उसे अपने हिसाब से खर्च कर सकती हूं. मेरा कोई भी नहीं है. मैं ने आज तक किसी रिश्तेदार को नहीं देखा है. मातापिता जब थे, तो रिश्तेदार भी अवश्य रहे होंगे, पर कोई मेरे पास नहीं आया. इसलिए मुझे आत्मनिर्भर होने का एहसास बहुत अच्छा लगता है. मैं थोड़ी दुबली हूं, इस की वजह समय से खाना न खा पाना है. अब मेरे पास पैसा है. मेरा इलाज भी नानावती हौस्पिटल में चल रहा है. मुझे अधिक धूप से बचना पड़ता है. गरमी के मौसम में त्वचा में जलन होती है.

नहीं बनीं जिंदा लाश

ऐसिड अटैक से ग्रस्त महिलाओं के लिए शब्बो संदेश देते हुए कहती है, ‘‘खुद को हमेशा मोटीवेट करें. हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई समस्या है, इसलिए जरूरी नहीं कि आप घर बैठ कर लोगों से दूर रह कर मनोरोगी बनें. यह ठीक नहीं है. बहुतों के पास परिवार हैं पर मेरे पास तो कोई भी नहीं था. किताबें पढ़ कर ही मैं अपनेआप को साहस दे पाई.

‘‘खुद से प्यार करना, खुद के बारे में सोच कर ही आप आगे बढ़ सकते हैं. मुझे देख कर कई ऐसिड अटैक से ग्रस्त लड़कियां जौब के लिए कहती हैं पर बिना शिक्षा के कुछ मिलना संभव नहीं होता, इसलिए उन्हें किसी भी हालत में शिक्षा पूरी करनी चाहिए.’’

हौसले को मिला साथ

शब्बो को पढ़नेलिखने, पेंटिंग बनाने, सिंगिंग व डांसिंग का शौक है. शब्बो को अपनी पहचान बनाने की दिशा में काम करने वाली ‘स्वात कंसल्टैंसी सर्विसेज लिमिटेड’ की ओनर और उ-मी प्रीति अरोड़ा को हमेशा लगता था कि कुछ काम इन के लिए किया जाए. उन्होंने कई बार अखबारों में देखा कि ऐसिड सर्वाइवर की जिंदगी कई प्रकार की जिल्लतों से भरी होती है. समाज उस के साथ बहुत बुरा बरताव करता है.

युवावस्था में कुछ लड़कियों के साथ ऐसे हालात हो जाते हैं. अधिकतर ऐसे केसेज वन साइड लव के होते हैं. उन के मातापिता उन्हें ले कर परेशान हो जाते हैं. वे क्या करें, कैसे उन की जिंदगी सवारें, यह एक बड़ी समस्या उन के सामने आ जाती है. अगर ये लड़कियां काम के लिए जाती हैं तो इन्हें काम नहीं मिलता. ये शारीरिक रूप से शिकार हुई हैं पर इन का मानसिक स्तर तो ठीक है, यही सोच प्रीति को इस तरफ ले आई.

वे कहती हैं, ‘‘सरकार ने ऐसिड अटैक की शिकार लड़कियों को शारीरिक विकलांग का टाइटल दे दिया है, लेकिन क्यों? वे मानसिक रूप से काफी मजबूत होती हैं. इस के अलावा सरकार केवल 3 लाख नुकसान भरपाई के

रूप में एक बार में दे देती है. इस से क्या होता है? इन की पूरी जिंदगी कैसे चलेगी? मैं इस के लिए भी लड़ रही हूं, क्योंकि इस तरह की महिलाएं केवल शारीरिक रूप से पीडि़त नहीं होतीं, बल्कि मानसिक रूप से भी कहीं अधिक पीडि़त होती हैं. पूरी जिंदगी इन्हें अपनेआप से लड़ना पड़ता है. ये एक जिंदा लाश की तरह

होती हैं.’’

सराहनीय प्रयास

ऐसिड अटैक सर्वाइवर को बसाने की दिशा में प्रीति ने कई एनजीओ का सहारा लिया है, जहां उन्हें काम के बारे में जानकारी दी जाती है. ये लोग आम कर्मचारी के बीच में रह कर काम करते हैं. प्रीति की कंपनी की शाखाएं विदेश में भी हैं. यहां आने वाली महिलाओं को उन की योग्यता के अनुसार काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

प्रीति बताती हैं, ‘‘जब मैं शब्बो से मिली थी तो बहुत शौक हो गई थी कि यह कैसे रोज अपनी सूरत को देखती होगी, जबकि हम एक मुंहासे से परेशान हो जाते हैं. लेकिन इस का आत्मविश्वास मुझे बहुत अच्छा लगा. एक आंख से वह कंप्यूटर से ले कर हर लिखापढ़ी का काम अच्छी तरह कर लेती है. काफी सर्वाइवर्स ऐसे होते हैं, जो बाहर निकलने से डरते हैं. ये लड़कियां बहुत अच्छा काम करती हैं.

‘‘कम पढ़ीलिखी सर्वाइवर्स के लिए मैं कई और कंपनियों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अधिकतर साथ देने से मना कर देती हैं. मैं अपनी कुछ और शाखाएं भी खोलने की कोशिश कर रही हूं, जहां मैं इन्हें ट्रेनिंग दे कर काम दे सकूं. अभी तक मैं ने सरकार से कोई अपील नहीं की है, लेकिन आगे चल कर ऐसे सर्वाइवर्स को जौब की गारंटी हो, ऐसी कोशिश जरूर करूंगी. यह जरूरी है ताकि वे किसी पर निर्भर न हों.’’

दास्तां और भी हैं

शब्बो की तरह आरती ठाकुर भी ऐसिड अटैक सर्वाइवर है और काम करती है. उस की कहानी बहुत ही दर्दनाक है. एक शाम जब वह काम से घर लौट रही थी, तो एक लड़के ने उस के पीछे से आ कर ऐसिड फेंक दिया. गनीमत थी कि उस का चेहरा दुपट्टे से ढका था. फलस्वरूप ऐसिड उस के चेहरे पर न गिर कर गरदन और छाती पर गिरा. जलन के मारे वह चिल्लाने लगी. एक पल के लिए तो उसे समझ में ही नहीं आया कि क्या करे. आसपास के लोगों ने उस पर पानी फेंका. फिर पुलिस आई. तब तक वह 10 से 15% तक जल चुकी थी.

आरती के मकानमालिक का बेटा जो आरती से एकतरफा प्यार करता था, जिसे आरती ने शादी से मना किया था, उसी ने आरती पर ऐसिड अटैक किया था. इस सिरफिरे लड़के ने आरती को अपने साथ शादी करने के लिए दबाव बनाया, जिसे आरती ने मना कर दिया. आरती पर ऐसिड अटैक उस वक्त किया गया जब वह अपने बौयफ्रैंड से शादी करने वाली थी.

सख्त कानून जरूरी

आरती अपनी 1 बहन और मां के साथ मुंबई के सबरबन एरिया में रहती है. वह बताती है, ‘‘वह दिन मेरे जीवन का सब से दुखद था, जब मैं ने अपने बदन को जलते देखा था. मैं जब हौस्पिटल में थी, तब मेरी मां और बहन ने बताया कि अपराधी पकड़ा गया है पर 6 महीने बाद वह बेल पर छूट गया. मैं इस हादसे से टूट चुकी थी. 1 साल तक बाहर नहीं निकली. डर लगता था कि कोई मेरे ऊपर नजर तो नहीं रख रहा. लेकिन जब बाहर निकलने की कोशिश की तो आसपास के लोग मुझे ऐसे घूरते थे जैसे गलती मेरी ही थी. मेरी नौकरी चली गई, शादी टूट गई. लेकिन एक दिन लगा कि मैं गलत नहीं हूं, मैं छिप कर क्यों बैठूं?

‘‘ऐसिड डालने वाला लड़का मेरे मकानमालिक का बेटा था. उस ने पहले भी मुझे 2 बार और मारने की कोशिश की थी, जो मुझे बाद में पता चला. पहली बार अटैक के बाद मैं ने मालवानी पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की थी, क्योंकि तब मैं वहां किराए पर रहती थी. लेकिन पुलिस ने आनाकानी की और कहा कि आप लड़की हो इस झंझट में मत पड़ो. जब समझ में आया कि अपराधी कौन है तब तक देर हो चुकी थी. पुलिस भी ऐसे केसेज में लड़कियों का साथ नहीं देती. ऐसिड अटैक के बाद जब पहली बार औफिस गई तो सब मेरा मजाक उड़ाने लगे, जो काफी बुरा लगा.’’

नहीं टूटा हौसला

आरती का इलाज मुंबई के केईएम हौस्पिटल में फ्री में हो रहा है. वह अब फिर जौब कर रही है. नौकरी ने उस के मानसिक तनाव को कम कर दिया है. वह कहती है, ‘‘अब मैं डरती नहीं, मेरे हिसाब से डरना उसे चाहिए जिस ने अपराध किया है. पुलिस की लापरवाही की वजह से अधिक समस्या आ रही है, पर मैं उसे फिर से जेल भिजवा कर दम लूंगी. मैं केस लड़ रही हूं. मैं उन ऐसिड अटैक लड़कियों से भी कहना चाहती हूं कि मजबूती के साथ आगे बढ़ें. आत्मविश्वास ही आप को किसी भी स्थिति से लड़ना सिखाता है.

‘‘साथ ही मैं सरकार से भी अपील करती हूं कि ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान तो है पर उस का ईमानदारी से पालन नहीं किया जाता, जिस से अपराधी खुलेआम घूमते हैं. सजा ऐसी होनी चाहिए कि कोई भी उस में तोड़मरोड़ न कर पाए और अगर कोई करे तो उसे भी सजा हो.’’

यह सही है कि ऐसिड अटैक सर्वाइवर की कहानी कोई नहीं सुनना चाहता, कोई काम नहीं देना चाहता. ऐसे में उन्हें फिर से नई जिंदगी देना आसान नहीं होता. प्रीति अरोड़ा की ऐसे लोगों को फिर से बसाने की मुहीम काबिलेतारीफ है. गृहशोभा के माध्यम से वे उन सभी पीडि़तों से अपील करती हैं कि ऐसिड अटैक से शिकार लड़कियां हिम्मत न खोएं. वे ऐसिड अटैक से ग्रस्त हर लड़की का घर बसाना चाहती हैं. उसे नौकरी दिला कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं.                 

खुद से करें प्यार

यह सही है कि ऐसिड अटैक के बाद कोईर् भी मानसिक और शारीरिक रूप से टूट जाता है. ऐसे में उस के लिए इस सदमे से बाहर निकलना आसान नहीं होता. उसे फिर भी खुद यह समझने की जरूरत होती है कम से कम जान तो बच गई, जो बहुत कीमती है. शारीरिक कमी हुई है, पर मानसिक रूप से वह कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत है.

इस के साथसाथ इन बातों पर भी अमल करें:

– अपने अंदर अपराधबोध की भावना न पालें, क्योंकि गलती आप ने नहीं, उस अपराधी ने की है.

– लोग क्या कहेंगे, इस बारे में सोचना बंद करें. खुद से प्यार करना सीखें. सोचें कि मैं जैसी हूं वैसी ही खुश रह सकती हूं.

– अगर आप अधिक डिप्रैस्ड महसूस करती हैं और उस से निकलने में असमर्थ हैं, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लें.

– डा. संजोय मुखर्जी, मनोवैज्ञानिक, बी पौजिटिव  

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