कामकाजी महिलाओं की संख्या हर दिन बढ़ रही है और बढ़ती ही जाएगी. यह शुभ संकेत है पर महिला के शिक्षित और सुदृढ़ होने पर खुशी कहां अकेली आती है? अपने साथ कुछ मुसीबतें भी तो ले आती है. कामकाजी महिला घरबाहर के सारे काम संभालती है, फिर भी यही सुनती है कि तुम करती क्या हो? काम करती हो तो इतना जताती क्यों हो? क्या सिर्फ तुम ही काम करती हो? आजकल तो सब औरतें काम करती हैं, फिर इतना हल्ला क्यों?

कामकाजी महिलाएं घरबाहर, बच्चों की परवरिश से जुड़े कई मोरचे संभालती हैं, पर तब उतनी ही दुखी भी हो जाती हैं जब उन्हें सहयोग और प्रशंसा नहीं मिलती. उन्हें सहयोग, प्रशंसा की जगह ताने क्यों सुनने पड़ते हैं? पति सहयोगी क्यों नहीं हो पाते? यदि वह अकेली है, तो यह दर्द और भी बढ़ जाता है.

इस की जगह कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें सहयोग, समर्थन ज्यादा मिलता है. क्या कारण और तरीके हैं, जो इस समस्या को सुलझा कर सुकून दे सकते हैं?

विवाह की शुरुआत सतरंगी होती है. वह समय है अपनेआप को स्थापित करने का. आप आगे की सोच कर यदि अभी से पति को भी घरबाहर के कामों में शामिल करेंगी, तो उन्हें भी इस की आदत हो जाएगी. पर सावधान, इस समय की पतिभक्ति उन्हें कहीं नवाब न बना दे. जैसाकि सपना ने किया. पति नेवी में औफिसर हैं. वह खुद कालेज में लैक्चरर है. एक बार जब पति बाहर से आए तो सपना बीमार हो गई. सुबह की चाय पति ने बना कर दी. बहुत स्वाभाविक और सही था, पर सपना की प्रतिक्रिया थी कि आज तक मैं ने इन से घर का कोई काम नहीं करवाया. इन की जूठी थाली भी हमेशा मैं ने ही उठाई है. आज जब इन्होंने मुझे चाय दी तो मैं ने मन ही मन कुदरत से कहा कि ऐसा दिन मत दिखाना कि मेरे पति को काम करना पड़े. मुझे हमेशा स्वस्थ रखना.

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