आजकल बिना शादी किए एक छत के नीचे एक लडक़ेलडक़ी का साथसाथ रहना कम से कम बड़े शहरों में सहज स्वीकार होने लगा है और चाहे मकान किराए पर मिलने में कठिनाई हो पर ऐसे उदार मकान मालिकों की कमी नहीं है जो कहते हैं कि हमारी बला से कि तुम दोनों में किस तरह का रिश्ता है, हमें किराए से मतलब है. लेकिन लिवइन रिलेशनशिप में कठिनाई जब आती है जब दोनों में से कोई एक शादीशुदा हो या दोनों शादीशुदा और उन के विवाहित शादी लडऩेमरने को आ जाए.

राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक ऐसे जोड़े को पुलिस प्रोटेक्शन दिलवाने से इंकार कर दिया क्योंकि जज साहब की दृष्टि में यह अनैतिक है. विवाहित लोगों को अपनेअपने साथी के साथ ही रहने का हक है. यह संदेश उन्होंने छिपे शब्दों में दे दिया.

कामकाजी औरतों के युग में विवाहित पुरुष का दूसरे की बीवी के साथ एक साथ रहने लगना अब अजीब नहीं रह गया है. विवाहित पुरुष तो सदियों से दूसरी अविवाहित लड़कियों के साथ रहते रहते हैं और उन की पत्नियां इसे अपने भाग्य समझ कर घर में फटेहाल पड़ी रहती थीं पर अब जब 2 जोड़ों में चारों कमाऊ हो तो पतिपत्नी के अलावा जोड़ा बन जाए तो कानून कहां आता है, यह सवाल तब उठता है जब कोई अपराधिक घटना हो जाए.

समाज ही नहीं घरपरिवार के लोग भी इस तरह के जोड़े को संदेह की दृष्टि से देखते हैं और छोड़े गए पति व पत्नी सब की निगाहों में सिंपैथी तो पा ही लेते हैं.

यह तो पक्का है कि विवाह का आधार चाहे धाॢमक हो या न हो, यह कानूनी तो अवश्य बन चुका है. विरासत के कानून में, गोद लेने के कानून में, ङ्क्षहसा के मामलों में जो अधिकार कानूनी पत्नी को हैं, वे लिवइन में रह रहा ‘पत्नी’ को नहीं है. अगर वह अपने कानूनी पति को छोड़ कर किसी और के साथ रह रही है, तो उस से कोई भी हमदर्दी नहीं रखता न ही उसे किसी तरह की प्रोटेक्शन मिलती है. गैर शादीशुदा लडक़ी को तो फिर भी कुछ बच्चा समझ कर कुछ सपोर्ट मिल जाती है पर शादीशुदा पत्नी जब किसी और के साथ रहे तो आफत ही रहती है.

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