आज जब पूरे विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में नित नए आयाम स्थापित किए जा रहे हैं, वैज्ञानिक चांद और मंगल पर बस्तियां बसाने की कोशिश में प्रयासरत हैं, वहीं हमारा देश सांप्रदायिक विद्वेश और पाखंड में उलझता चला जा रहा है.

धर्म के नाम पर तर्क शास्त्र और शास्त्रार्थ की परंपरा को समाप्त कर दिया है और दिनोंदिन पाखंड में दिखावा बढ़ता जा रहा है जिस की वजह से पाखंड महंगा होता जा रहा है. हमारा मीडिया और सोशल साइट्स पाखंड और अंधविश्वास को बढ़ाने में अपना भरपूर सहयोग कर रही हैं.

गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं, हज करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है तो ईसाइयों के लिए पवित्र जल बहुत महत्त्वपूर्ण है. वैसे ही सिखों के लिए पवित्र सरोवर और गुरु ग्रंथ साहिब और मुसलमानों के लिए कुरान. इन ग्रंथों के अपमान के नाम पर हत्या और दंगे आएदिन की बात है. यह पाखंड नहीं तो क्या है? साथ में हज या अन्य किसी भी दूरदराज स्थान की तीर्थयात्राएं सामान्य वर्ग के लिए बहुत महंगी होती हैं. वर्तमान सरकार भी तीर्थयात्राओं को आसान व सुविधापूर्ण बनाने के लिए काफी प्रयासरत दिखाई पड़ रही है. आजकल चारों तरफ विशाल मंदिरों, मसजिदों का जाल फैलता चला जा रहा है.

ठगने का धंधा

आज के युग में लोग इतने भयभीत रहने लगे हैं कि हनुमान, शिव एवं शनि मंदिरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. स्कूल और अस्पतालों के स्थान पर मंदिर और मसजिदों की संख्या तथा उन का पुनर्निर्माण धूमधाम एवं भव्य होता जा रहा है. प्रत्येक समाज का अपना अलग त्योहार एवं तीर्थ हो चला है. ज्योतिषी लोगों को उन का भविष्य बताने और दुखों को दूर करने वाले टोटके बता कर समाज में पाखंड और अंधविश्वास फैला कर अपनी रोजीरोटी चलाने का धंधा कर रहे हैं. विभिन्न टीवी चैनल दिनरात जनता को पाखंड के जाल में फंसाने के लिए तरहतरह के उपाय बता कर ठगने का धंधा कर रहे हैं और हमारा सरकारी तंत्र आंखकान बंद कर बैठा है.

हिंदू धर्म में दान करने की महिमा का बारबार वर्णन किया गया है इसलिए लोगों के मन  में पाखंड करने की इच्छा तो परिवार में बचपन से ही कूटकूट कर भर दी जाती हैं. दान का महिमामंडन करते हुए कहा है-

‘हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कंठस्य भूषणं,

श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रं भूषणै: किं प्रयोजनम्.’

हाथ का आभूषण दान है, कंठ का सत्य है और कान का आभूषण शास्त्र है, फिर अन्य किसी आभूषण की क्या आवश्यकता है?

हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का बहुत महत्त्व है. संस्कार का तात्पर्य उन धार्मिक कृत्यों से है जो किसी समुदाय का योग्य सदस्य बना कर उस के मनमस्तिष्क को पवित्र करें परंतु वर्तमान में लोग एकदूसरे का अनुकरण करते हुए भेड़चाल चलते ज्यादा दिखाई दे रहे हैं.

पाखंड पर विश्वास क्यों

हिमाचल प्रदेश के फौजी परिवार की रिया  बैंगलुरु में आईटी कंपनी में काम करती थी और वहीं पर सहकर्मी अक्षर को पसंद करने लगी थी. दोनों ने 2-3 साल लिव इन में रहने के बाद जब शादी कर लेने का निर्णय कर लिया तो अक्षर के घर वालों ने जन्मकुंडली में काल सर्प योग बता कर उस की पूजा करवाने को कहा तो पढ़ीलिखी रिया और उस के मातापिता ने साफ मना कर दिया कि वे इस तरह के पाखंड की बातों पर विश्वास नहीं करते. अक्षर के दबाव में बु?ो मन से मांबाप शादी के लिए राजी हो गए. पंडितजी के बताए हुए शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी धूमधाम से हो गई.

रिया ने अक्षर के लिए सरप्राइज प्लान कर के हनीमून पैकेज ले कर कश्मीर की वादियों की बुकिंग करवा रखी थी. अक्षर के पेरैंट्स उत्तर प्रदेश के उन्नाव के रहने वाले थे. काल सर्प योग के डर से उन लोगों ने अक्षर को अपना निर्णय सुना दिया कि नासिक के त्रयंबकेश्वर मंदिर में काल सर्प योग की पूजा के बाद ही हनीमून संभव है. उस की आंखों में आंसू बह निकले थे, लेकिन  अक्षर एक तरफ मांबाप को खुश करने के लिए नासिक की ट्रेन के टिकट और पूजा के लिए पंडित औनलाइन खोजता रहा तो दूसरी तरफ रिया के सामने कान पकड़ कर गिड़गिड़ाता रहा. वह अपने हनीमून पीरियड में परिवार के साथ सर्पों की पूजा कर रही थी. डरे हुए पेरैंट्स चांदी, तांबे और सोने का सर्प बनवा कर अपने साथ लाए थे.

बाद में पछताना पड़ता है

काल सर्प योग की शांति पूजा 3 घंटे में समाप्त हो गई, पूजा का खर्च तो क्व7 हजार था  परंतु पंडित को खुश करने के लिए पेरैंट्स उन के लिए कपड़ा, दक्षिणा आदि देने के बाद पंडित ने सम?ा लिया कि शिकार पूरी तरह उन के कब्जे में है, तो उंगलियों पर गिनती करते हुए रिया के साथ शादी को अक्षर के जीवन के लिए खतरा बताते हुए महामृत्युंजय की पूजा के लिए संकल्प करवा कर क्व25 हजार और ले लिए. रिया भोले पेरैंट्स को लुटते देखती रही और मन ही मन उस घड़ी को कोसती रही जब अक्षर से उस की मुलाकात हुई थी. अक्षर मिट्टी का माधो सा खड़ा सब देखता रहा.

हनीमून का सपना सपना ही बना रह गया. दोनों के संबंध में ऐसी गांठ पड़ गई, जिसे सुल?ाना आसान नहीं था और वह आज तक रिया पूजा की याद कर के गुस्से से भर उठती है.

उन की कीमती छुट्टियां और बुकिंग के रुपए बरबाद हो गए इस मूर्खता के पाखंड के कारण. अक्षर की बेचारगी देख वह अपने निर्णय पर बारबार पछता रही थी.

पूजा के नाम पर नाटक

मध्य प्रदेश के भिंड की रहने वाली संजना और आरव की शादी धूमधाम से हुई. दोनों संपन्न और दकियानूसी परिवार थे. अरेंज्ड मैरिज थी. संजना फिजियोथेरैपिस्ट थी और आरव सीए दोनों की मुलाकात एक पार्टी में हुई थी. दोनों वर्किंग थे और खुश थे. संजना प्रैगनैंट हो गई तो आरव की मां की हिदायतों ने उसे परेशान कर के रख दिया. बेटा हुआ तो तुरंत पंडित से औनलाइन संपर्क शुरू हुआ और पंडित ने बता दिया कि बच्चा मूल नक्षत्र में पैदा हुआ है और पिता के स्वास्थ्य के लिए भारी है. संयोगवश आरव की गाड़ी किसी बाइक से टकरा गई.

अब तो भिंड से मूल शांति के लिए पंडितजी ने जो लंबी लिस्ट लिखवाई कि आरव ने उसे देखते ही हाथ जोड़ दिए. लेकिन संजना की मां तुरंत आ गईं और जबरदस्ती उसे पूजा करवाने के लिए मजबूर कर दिया. फिर तो उसे नन्हे को ले कर भिंड आना पड़ा और पूजा के नाम पर ऐसा नाटक हुआ कि पूछो मत. वह और आरव दोनों ही चुपचाप 27 कुंओं का जल, 7 जगह की मिट्टी, 7 तरह का अनाज, सोने की मूल नक्षत्र की मूर्ति और जाने क्याक्या. नाई के लिए कपड़े, पंडितजी के लिए सिल्क का धोतीकुरता व सोने की

अंगूठी नन्हे बच्चे के बराबर तोल कर अन्न दान, 27 ब्राह्मणों का भोजन, उन की दक्षिणा, नातेरिश्तेदारों के लिए गिफ्ट और दावत.

मूल शांति के नाम पर कुल मिला कर लाखों का खर्च किया गया ऊपर से आरव का क्लोजिंग ईयर का टाइम चल रहा था, इसलिए उन दिनों छुट्टी लेने की वजह से उस की प्रमौशन अलग से रुक गई.

आजकल यहांवहां भागवत् कथा का धूमधाम से आयोजन देखा जा सकता है- इन दिनों संगीतमय भागवत् का बहुत प्रचलन दिखाई दे रहा है, जिस का न्यूनतम खर्च क्व2-3 लाख तक आ जाता है. यदि कोई नामी कथा वाचक है तो केवल उस की फीस ही लाखों में होती है.

कमाई पर ध्यान

मेरे पड़ोस में सार्वजनिक भागवत् कथा का आयोजन हुआ, जिस में कहने के लिए कथावाचक ने कोई फीस नहीं ली परंतु उन के संगीत बजाने वाले 7-8 लोगों की टीम को क्व1 हजार प्रतिदिन देना तय हुआ. टैंट वाले ने क्व40 हजार लिए संगीत के उपकरणों के लिए भी क्व20 हजार लगे. अन्य संसाधन जुटाने में क्व15-20 हजार लगे.

रोज के फूलफल, मिष्ठान्न आदि पर

क्व1 हजार प्रतिदिन लगते रहे. लोग भक्तिभाव से भरपूर चढ़ावा चढ़ाते रहे. आरती में हजारों रुपए आ जाते.

भीड़ बढ़ती गई और साथ में चढ़ावे की रकम भी. वह सब चढ़ावा कथावाचक समेटते रहे. उन के कर्मचारी पूरे समय दान का डब्बा ले कर भीड़ में चक्कर लगाते रहते. डब्बे पर ताला लगा कर रखा था जिसे वह चुपचाप खोलते और समेट कर अंदर कर लेते. कोई क्व500 देता तो तुरंत माइक पर नाम अनाउंस करते. इस तरह कथा कम होती बस कमाई पर ज्यादा ध्यान रहता .

अंत में भंडारे के आयोजन पर लगभग

50 हजार रुपये का खर्च आया. इस के अतिरिक्त कार्यक्रम के दौरान प्रतिदिन की पूजा, विभिन्न कथा प्रसंगों के लिए कभी साड़ी, कभी चावल, कभी सोनाचांदी का दान, कभी कलश स्थापना और पूजा आदि का खर्च भी प्रति परिवार 15 से 20 रुपये हजार अलग से हुआ. जो मुख्य जजमान बना उस का व्यक्तिगत खर्च 20 से 25 हजार रुपये हुआ. अभी कथावाचक के लिए वस्त्र और दक्षिणा के साथ कुछ सोने की अंगूठियों का खर्च नहीं जोड़ा गया है.

यहांवहां पूछताछ करने पर एक प्रमुख कथावाचक ने भागवत् सुनाने की केवल अपनी  फीस 25 लाख रुपये बताई थी. सोचिए कि पाखंड दिनोंदिन कितना महंगा होता जा रहा है .

कथा के नाम पर फूहड़ डांस

मेरे एक परिचित ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उन के परिवार ने भागवत् कथा के आयोजन के लिए गांव की जमीन बेच दी और वहां से मिले रुपयों में से लगभग 15 से 20 लाख रुपये का खर्च इस भागवत् कथा के आयोजन पर किया क्योंकि समाज में उन्हें अपना नाम करना था. कथा का तो नाम था वहां पर फिल्मी धुन पर भजन के नाम पर उलटेसीधे गाने गाए जाते थे और फूहड़ डांस होता रहता था.

कभी कृष्णराधा की झंकी तो कभी गरीब सुदामा तो कभी नंद बाबा और बाल कृष्ण के जन्म की झंकी लोगों के आकर्षण का केंद्रबिंदु बन गई थी. भीड़ और चढ़ावा दोनों भलीभांति बढ़ते जा रहे थे और साथ में कथावाचक की कथा के बजाय झंकियों पर ज्यादा जोर होता चला गया था. कुल मिला कर कथावाचक का ध्यान पैसे की उगाही में लगा रहता था. आज कृष्ण जन्म उत्सव, तो कल गिरिराजजी की पूजा तो परसों रुक्मिणी विवाह के लिए साड़ी और सुहाग का सामान. इस तरह से रोज एक नया नाटक होता रहता.

बाद में मालूम हुआ कि धंधे से अनापशनाप पैसे इन धार्मिक कार्यों, आयोजनों में लगाने और साथ में अपना शोरूम अपने विश्वस्त लोगों पर छोड़ देने से उन्हें भारी नुकसान हो गया. कोठी भी बिक गई और बेटे ने बुढ़ापे में वृद्धाश्रम में रहने के लिए भेज दिया. सारे धर्मकर्म धरे रह गए.

पूजा भी ठेके की तरह हो गई

उत्तर प्रदेश के रहने वाले आयुष एवं पूर्वी ने मुंबई में 3 करोड़ रुपये में अपना फ्लैट खरीदा तो उन की मां ने गृहप्रवेश की पूजा को जरूरी बताया. इस के अतिरिक्त सभी लोगों ने वास्तु पूजा और गृहप्रवेश की पूजा करने को आवश्यक बताया तो दोनों ने औनलाइन पंडित और पूजा के विषय में जानने के लिए सर्च करना शुरू किया. दोनों ही पूजन सामग्री की लिस्ट देख कर ही आश्चर्यचकित हो गए थे.

उन लोगों ने गूगल पर नंबर देख कर यहांवहां फोन मिलाए तो मालूम हुआ. गृह प्रवेश और वास्तु पूजा और ग्रह शांति पूजा के नाम पर 25 हजार रुपये से शुरू हो कर लाखों वाले पंडित उपलब्ध हो रहे थे. उन लोगों ने अंतत: गायत्री परिवार के पंडित जो 11 हजार रुपये में पूजा कर रहे थे उन्हें बुलाया, लेकिन पूजा कर के उन के मन को शांति कम अशांति एवं पैसे और समय की बरबादी ज्यादा लगी. पंडितजी ने 11 हजार रुपये के बजाय लगभग 20 हजार रुपये खर्च करवा दिए. वे सोचने लगे कि इस से तो कोई नया सामान ले लेते, जो उन के काम आता.

महानगर में पूजा भी ठेके की तरह हो गई है. जिस स्तर की पूजा करवानी है, उसी स्तर के पुजारी उपलब्ध हैं, सस्ते वाले गायत्री परिवार के 11 हजार रुपये से शुरू हो कर 51 हजार रुपये या लाखों में किया जा सकता है. अब पंडितजी पूजन सामग्री अपने साथ भी ले कर आते हैं जिस का मूल्य वे अपने कौंट्रैक्ट में ले लेते हैं. पूजा के नाम पर लोग अपने खर्च में कटौती कर के जी खोल कर पूजा और धार्मिक कार्यों पर खर्च करते हैं. इस के लिए चाहे उधार ले कर करना पड़े, लेकिन ऐसे आयोजन अवश्य करते हैं क्योंकि उन की सोच होती है कि उन्हें पूजा कर के सीधा स्वर्ग का टिकट मिलने वाला होता है.

20 से 25 हजार रुपये तो साधारण पूजा में लगने ही हैं. पंडित के कपड़े और दक्षिणा उस के स्तर के अनुसार होनी चाहिए. आप का समय चाहे कितना कीमती है 7-8 घंटे तो लगने ही हैं. ज्यादा ताम?ाम वाला करना है तो 1 से 3 दिन तक लग सकते हैं.

पूरी निगाह चढ़ावे पर

आजकल समाज में सुंदरकांड और माता की चौकी का जगहजगह आयोजन देखा जाता है. ये लोग भी एक कौंट्रैक्ट जैसा तय कर लेते हैं जिस की शुरुआत 21 हजार रुपये से होती है. यदि बहुत साधारण स्तर का है तो 11 हजार रुपये में भी राजी हो जाते हैं, लेकिन इन की पूरी निगाह चढ़ावे पर होती है. बातबात पर रुपए की मांग करते हैं और फलमिठाई और चढ़ावे, आरती के सारे रुपए समेट कर रख लेते हैं. इस में भी 7-8 लोगों की टीम होती है जो अपने संगीत उपकरण अपने साथ ले कर आते हैं जैसे ढोलक मजीरा, हारमोनियम, कैसियो, तबला आदि आप से डैक या लाउडस्पीकर लगवाने की फरमाइश करते हैं.

कानफोड़ू आवाज में फिल्मी धुन पर सुंदरकांड हो या माता के भजन गाते हैं. मैं ने स्वयं देखा कि  एक आयोजन में एक बच्चे को शेर का मुखौटा पहना दिया और दूसरे बच्चे का दुर्गा माता का स्वरूप बना कर उस पर बैठा दिया और चारों तरफ शोर मच गया माता प्रकट हो गईं कह कर लोग अपना सिर नवा कर दुर्गा माता की जयजयकार करने लगे. उन पर रुपयों की बौछार शुरू हो गई. बहुत हास्यास्पद दृश्य उपस्थित कर दिया गया था. संयोजक ने बताया कि माता की चौकी करवाने के लिए प्रसाद, चढ़ावा, टैंट आदि के बाद खाना करने में लगभग 50 हजार रुपये खर्च हो गए.

इस तरह के दृश्य बना कर लोगों के मन में भक्तिभाव जगा कर अघिक से अधिक धन उगाही करना उन का मुख्य उद्देश्य होता है. सभी उपस्थित भक्तिभाव से प्रसन्न मन से उन पर रुपयों की बौछार करने लग जाते हैं .

नीरजा की बेटी बुखार से तप रही थी. डाक्टर से उन की अपौइंटमैंट थी. रास्ते में ट्रैफिक जाम की वजह से रुकना पड़ा. डीजे की कानफोड़ू आवाज उन्हें विचलित कर रही थी. बीमार बच्ची के कानों को उन्होंने जोर से बंद किया. शोर के कारण उन का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. संगीत संगीत न हो कर विध्वंसक सुर में बदल गया. उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था. 15-20 लड़के समूह में डीजे के साथ नाच रहे थे. एक ठेले पर माता की ज्योत को ले जाया जा रहा था. पता लगा कि नशे में झूमतेनाचते ये लड़के वैष्णव माता के दरबार में जा रहे हैं. यह कैसा पाखंड जो बढ़ता

जा रहा है? वहां पर भक्ति और आस्था का

तो नामोनिशान नहीं था. था तो केवल पाखंड

का दिखावा.

शिकारी आएगा जाल में फंसाएगा

भारत ही एक ऐसा विचित्र देश है, जहां धर्म के नाम पर पाखंड का इतना बोलबाला है. यहां हर गली कूचे में स्कूल और अस्पताल के स्थान पर मंदिर या मसजिद मिल जाएगी. हमारे देश मे सब को आजादी है कि वह अपने तरीके से अपने धर्म का प्रचारप्रसार कर सकता है. धर्म के नाम पर बढ़ते पाखंड के दिखावे पर रोक लगना आवश्यक है. आज यहांवहां बड़ेबड़े धार्मिक आयोजन बहुत बड़े स्तर पर आयोजित किए जाते हैं, जिन में दिखावे के लिए पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है और इन साधूसंतों और अन्य धर्मगुरुओं ने अपना एक नैटवर्क बना लिया है जहां देश की भोली जनता यहां तक कि युवा पीढ़ी भी तात्कालिक लाभ पाने के लिए उन के जाल में फंस जाती हैं.

यह भी देखने में आ रहा है कि युवा पीढ़ी धार्मिक कार्यक्रमों को भी मौजमस्ती में ढालती जा रही है. पाखंड दिखावे के कारण दिनोंदिन महंगा होता जा रहा है. जब तक डीजे को तेज आवाज में नहीं बजाएंगे, धार्मिक यात्राएं, बड़ेबड़े यज्ञ, हवन  के आयोजन नहीं किए जाएंगे, हजारों लोगों के भंडारे का आयोजन कर के भीड़ नहीं इकट्ठी करेंगे, डीजे की आवाज पर बरातियों की तरह नाचेंगे नहीं, तब तक भगवान को कैसे पता लगेगा कि उन के मन में कितनी श्रद्धा है और वहे भगवान के कितने बड़े भक्त हैं.

जितना बड़ा मंदिर, जितना ज्यादा दिखावा, जितना ज्यादा खर्च, समाज में उतना बड़ा नाम. यह आज के पाखंड  का स्वरूप है. वर्तमान सरकार भी अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए जनता की धार्मिक भावनाओं का सहारा ले कर मंदिरों के पुनर्निर्माण और अन्य सुविधाओं पर पैसा खर्च कर रही है.

आज पूजापाखंड पर मंदिरों की यात्राओं के आयोजन, फूलफल प्रसाद पर पैसे खर्च करने के स्थान पर शिक्षा के लिए स्कूलों की व्यवस्था और अस्पतालों पर यदि पैसे खर्च किए जाए तो आम जनता ज्यादा लाभांवित होगी और देश की स्थिति अधिक सुधर सकती है.

आज धर्म के सही अर्थ को समझने की आवश्यकता है. एक स्वर और एक आवाज में धर्म की सच्ची राह सब को विशेष कर युवा पीढ़ी को दिखाना बहुत जरूरी हो गया है. शोरशराबे, पाखंड और दिखावे को छोड़ कर सच्ची भावना के साथ, लोकहित की कामना को ले कर धर्म के मार्ग पर चलना ही सच्चा मानव धर्म है.

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