Sheetal Devi : कौन कहता है आसमान में सूराख नहीं होता, एक पत्थर तबीयत से उछालो यारो’ इस कहावत को शीतल देवी ने महज 17 साल की उम्र में चरितार्थ किया जब उन्होंने पैरिस पैरालंपिक 2024 में मिक्स्ड कंपाउंड आर्चरी में ब्रौंज मैडल जीता. उन्हें देख कर कई युवतियों ने प्रेरणा ली और माना कि मजबूती शरीर में नहीं बल्कि हौसलो में होनी चाहिए.

कई लड़कियां स्पोर्ट्स के प्रति सजग हुईं और आर्चरी को उन्होंने अपना स्पोर्ट चुना. यही कारण भी था कि 20 मार्च को दिल्ली के ट्रावनकोर हाउस में गृहशोभा इंस्पायर आवर्ड में शीतल देवी को अवार्ड से सम्मानित किया गया.

यह दिलचस्प है कि पैरालंपिक में ब्रौंज मैडल जीतने वाली वे भारत की सब से कम उम्र की पैरालंपिक मैडलिस्ट बन गईं और पैरालंपिक के इतिहास की दूसरी आर्मलैस आर्चर.

यह कोई आम बात नहीं है. शीतल जम्मूकश्मीर के छोटे से गांव लोइधर से आती हैं. मगर असल ट्रैजेडी यह कि उन का जन्म फोकोमेलिया जैसी गंभीर कंडीशन के साथ हुआ. यह एक ऐसी कंडीशन मानी जाती है जिस में हाथों या पैरों का डैवलपमैंट रुक जाता है और हुआ भी यही कि जैसेजैसे शीतल बड़ी हुई उन की आर्म्स डैवलप नहीं हो पाईं.

हौंसलों को ताकत बनाया

मगर ऊंचाइयों को छूने वाले कहीं रुके हैं भला. शीतल ने ऐसी ऊंचाई छुई जो इतिहास बन गया. साथ ही यह बताया कि उन्होंने अपनी शारीरक अक्षमता को अपनी मजबूरी नहीं बनाया बल्कि अपने हौसलों को अपनी ताकत बनाया.

यही कारण भी था कि 2023 में वर्ल्ड आर्चरी पैराचैंपियनशिप में उन्होंने इंटरनैशनली डेब्यू करते हुए सिल्वर मैडल जीता और वे इस पदक को जीतने वाली इस चैंपियनशिप में पहली महिला आर्मलैस आर्चर बनीं. उन की अचीव करने की यह जर्नी यहीं नहीं रुकी. 2023 में ही उन्होंने एशियाई पैरागेम्स में गोल्ड मैडल जीता. हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था. बड़े मंचों में पहुंच कर कारनामे को अंजाम देने के पीछे कई संघर्ष छिपे थे.

जब शीतल छोटी थीं तब उन का पसंदीदा खेल पेड़ों पर चढ़ना था. यह वह ऐक्टिविटी थी जिस ने उन की अपर बौडी को मजबूत बनाया.

पैरा आर्चरी में शीतल देवी के कैरियर को आगे बढ़ाने में इंडियन आर्मी ने भी अहम भूमिका निभाई. 2021 में जम्मूकश्मीर के किश्तवाड़ में इंडियन आर्मी ने एक यूथ ऐक्टिविटी प्रोग्राम चलाया जहां शीतल देवी की स्किल्स का पता चला और वे नजरों में आईं.

शीतल के कोच ने शुरू में उन्हें प्रोस्थैटिक्स के साथ प्रैक्टिस करने का प्लान बनाया लेकिन यह कारगर नहीं हुआ. थोड़ीबहुत रिसर्च की तो पैरा प्लेयर मैट स्टुट्जमैन के बारे में पता चला जो एक आर्मलैस आर्चर थे, जिन्होंने लंदन 2012 पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल किया था.

टर्निंग पौइंट

यह शीतल के लिए टर्निंग पौइंट था क्योंकि उन्होंने उसी विधा को अपनाया जो मैट स्टुट्जमैन ने अपनाया. इस में पैरों और पंजों से आर्चरी को होल्ड किया जाता है फिर कमान को अपने कंधे से खींचा जाता है.

शीतल ने पूर्व आर्चर प्लेयर कुलदीप वेदवान की अकादमी जौइन की और अपनी प्रैक्टिस की. इस में कोई दोराए नहीं कि शीतल यंग लड़कियों के लिए किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं. जिन हालात से वे आईं और जिन तकलीफों को उन्होंने सहा उस से सीखने की जरूरत है कि हालात चाहे जो हों अगर हिम्मत है तो बहुत कुछ पाया जा सकता है.

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