आजकलहर तरफ मर्द बाबा और संतों की चर्चा है. कहीं आसाराम बापू खबरों में हैं, तो कहीं हरियाणा के बाबा रामपाल. बाबा रामदेव अपने योगा और औषधियों को ले कर हमेशा खबरों में रहते हैं, तो रामरहीम अपनी फिल्म को ले कर. उन की फिल्म ‘मैसेंजर औफ गौड’ देख कर मेरी चिंता और बढ़ गई. एक औरत होने के नाते मुझे लगा कि अब तो राखी सावंत भी नहीं है, जो हर मर्द को टक्कर दे सके. अब कौन औरतों की लाज रखेगा? क्या हमारी अपनी कोई नारी संत नहीं होगी, जो चमकदमक में सब को पीछे छोड़ दे. भगवान ने मेरी फरियाद सुन ली. हमारी अपनी लाल परी राधे मां के आने से सुकून आ गया. अगर बाबाजी का रंगीला और पौप स्टार लुक था, तो हमारी राधे मां मिनी स्कर्ट और लाल वार्डरोब के साथ जवाब दे रही हैं. अगर संतजी का मन अलगअलग रंगों में घूमता है, तो हमारी मां का एक ही अलग रंग है- लाल कपड़े, लाल जूते, लाल लिपस्टिक. मानो वे भगवान के प्यार में लाललाल हो गईं. मुझे डर है कि एवररेडी बैटरी का ऐड ‘गिव मी रैड’ अक्षय कुमार के हाथों से खींच कर कहीं राधे मां को न दे दिया जाए.
राखी सावंत ने हिंदुस्तान के लोगों का एक सनसनीखेज शख्सीयत से परिचय करवाया. उस के बाद कमाल खान भी जी तोड़ कोशिश में लगे रहे, लेकिन बाजी संत रामरहीम और राधे मां ने मार ली, जो भगवान का नाम जपतेजपते धार्मिक सुपरस्टार बन गए. पिछले 10 सालों में हमारी जिंदगी बदल गई है. हमारे धर्म, मुहब्बत, जिंदगी, व्यवसाय, टेलैंट सब के फंडे बदल गए हैं. और हर चीज में हम सहूलियत और तेजी चाहते हैं. हर चीज में हम छोटा रास्ता ढूंढ़ते हैं. हम जल्दीजल्दी अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहते हैं. राधे मां ने भी धर्म के माने बदल दिए. एक नई ताजगी ले आईं वे वरना कौन से गुरु आप को बौलीवुड के नवीनतम हिट गानों पर डांस करवाते हैं? आप खुद सोचिए, अगर हमें अपने पसंदीदा गाने पर नाचने से सच, शांति और भगवान मिले, तो हम सब के लिए निर्वाण कितना आसान है. तब और भी आसान अगर राधे मां एक लाल परी के अवतार में आप के साथ झूम रही हों.
सोचिए आप कि किस माहौल में पूजा होती है. हर तरफ फूलों की सजावट, फिल्मी स्टाइल में राधे मां का शिष्यों में प्रकट होना, गुलाब और गेंदे के फूलों से उन का स्वागत, उन का चेहरा तिलक और लाल लिपस्टिक से दमकता हुआ. बौलीवुड संगीत, मां का कभी किसी भक्त की गोद में बैठना, तो कभी किसी की. मां के बाल तो इतना सब कुछ होने के बावजूद ऐसे अपनी जगह पर हैं जैसे ‘मेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता’ मुहावरा सच हो रहा हो. अब बताइए यह स्वर्ग नहीं है तो और क्या है? मां को कोटिकोटि प्रणाम कि उन्होंने धरती पर ही स्वर्ग के दर्शन करवा दिए.
जहां हुस्न की, ग्लैमर की, मुक्ति की, और ज्ञान की बात हो तो क्या यह हो सकता है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री पीछे रह जाए? मुझे तो फिक्र यह लगी है कि अभी तक मां को कोई रोल क्यों नहीं औफर हुआ? पर बेचारे फिल्मी लोग, वे तो खुद अंधविश्वास और फिल्म के सुपरहिट होने के टोटकों में फंसे हुए हैं. वे क्या मां को रास्ता दिखाएंगे? हमारी आजकल की हिंदी फिल्में चाहे अब नई पगडंडियां ढूंढ़ रही हो, पर बी टाउन के ज्यादातर लोग आज भी अंधविश्वास, बदकिस्मती, काला जादू जैसे टोटकों में पूरा विश्वास रखते हैं. तभी तो राधे मां की शरण में आए बहुत से भक्तगण फिल्म इंडस्ट्री से हैं.मेरे लिए सुखविंदर कौर, एक कपड़े सिलने वाली औरत से बनी राधे मां, एक करोड़ के धार्मिक साम्राज्य की मलिका की कहानी नारी शक्ति की कहानी है. हम क्यों किसी कंपनी के सीईओ या कंट्री हैड बनने की ख्वाहिश रखें, जबकि हम धर्म का व्यापार कर सकते हैं? यही एक अकेला ऐसा बिजनैस है, जो शतप्रतिशत कामयाब है. सुखविंदर से राधे मां बनने की कहानी यह भी है कि हम कैसे बेवकूफ बन जाते हैं, बारबार, हर बार, लगातार.